आज निजी कम्पनियो के लाखों के पेकेज का लालच हमारे / हमारी सेतानो के सामाजिक / पारिवारिक जीवन के लिये नासूर बन चुका है। समझिये समस्या को इस तरह :
1. कम्पनियां लाखों का पैकेज देकर हमारी संतानो से 14 से 16 घंटे काम लेती है अर्थ है डबल ड्यूटी । सी धा सा अर्थ है वास्तविक पेकेज जो 16 लाख स्पये दिखता है वह वास्तव मे 8 लाख स्पये प्रति वर्ष है। जिस मे सभी भत्ते शामिल है। कोई आवास सुविधा / चिकित्सा सुविधा नही
2. इस सोलह लाख मे से 30% आयकर मे अर्थात लगभग 5 लाख स्पये चला जाता है वास्तविक आय 11 लाख स्पये
3, इस 11 लाख मे से अन्य शहर मे रहते है तो लगभग 3 लाख स्पये वार्षिक मकान किराया देना होता है शेष बचे 8 लाख स्पये
4.8 लाख स्पये मे से वर्ष मे 1-2 बार माता पिता से मिलने आने पर एक लाख स्पया आने जाने का व्यय
सोचिये वास्तव मे क्या पाया हमने -क्या खोया यह देखिये
1. 40 वर्ष की आयु तक कम्पनियो द्वारा हमारे युवाओ का 14 से 16 घंटे काम करवाकर पूरा शोषण । यह युवा 40 वर्ष की आयु तक मानसिक व शारीरिक स्प से थक चुके / बेकार हो चुके होते है
2. इनका परिवार से नाता कट चुका होता है। माता -पिता की बीमारी पर भी वह उन्हे संभाल नही पाते
3. समाज के किसी काम के नही रहते । इनका समाज के लिये योगदान शून्य होता है।
4. परिवार – बसाने / विवाह के लिये भी इन्हे समय नही मिल पाता । ना पत्नि के लिये समय ना बच्चों के लिये ना ही माता पिता ‘ परिवार / समाज / धर्म व देश के लिये। अतः बहुत से युवा विवाह से विमुख हो रहे हैं। यदि विवाह कर भी लिया तो भी संतान उत्पन्न नही करना चाहते क्योंकि उनके पास परिवार चलाने का समय ही नही है। मातृत्व एवं पितृत्व का महत्व वे जानते ही नही । सीधा अर्थ है समाज की समाप्ति की और बढ़ते कदम
5. पिता द्वारा बनाये गये व्यवसाय एवं करोडो की सम्पत्ति को कोई संभालने वाला नही बचता
ऐसी कम्पनीयो मे हम मुर्ख लोग हमारी संतानों को लाखो के पैकेज के लालच मे उलझाकर उनका जीवन तबाह करके फूला नही समाते और समाज परिवार को नष्ट करने पर तुले है।
समाधान क्या है ?
1. बच्चो को सलाह दे कि इन निजी कम्पनियो के गुलाम बनने से बेहतर है सरकारी नौकरियो की तैयारी करे। हमारे प्रतिभावान युवक / युवतियाँ कितना भी आरक्षण का दौर हो नौकरी हासिल करने मे सक्षम है। जहाँ नौ करी के साथ अपने पारिवारिक /सामाजिक दायित्वो का निर्वहन किया जा सकता है साथ मे रोजगार की गारन्टी / सुरक्षित आजिविका
2. लाखों की नौकरियो के लिये पिता के करोडो के व्यवसाय व सम्पत्तियो पर ध्यान ना देना मुर्खता के सिवाय कुछ नही है।
3. शिक्षा हमारा ज्ञान बढ़ाने के लिये होती है ना कि इन कम्पनीयो की गुलामी करने के
4. युवतियो को शिक्षा बुरे वक्त मे सम्मान जनक कार्य करने मे सक्षम बनाने के लिये दिलायी जानी चाहिये ना कि नौकरी के लिये। युवतियो पर वैसे भी घर व परिवार चलाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है जिसकी कीमत स्पये से नही आंकी जा सकते।
हम मुर्ख लोग अब भी समझ जाये और अपने परिवार व समाज को इन लाखों स्पये के पेकेज के लालच से बचाये रख कर समाज को बचा ले। वरना हमारे युवा युवतियो को अच्छी आर्थिक स्थिति होते हुये भी इन कम्पनियो मे नोकरिया कराकर समाज को नष्ट करने के लिये हमारी यह पीढ़ी जिम्मदार होगी
धूपेश – मधु कासलीवाल