दिगंबर जैन लोगों के अभाव के कारण जैन मंदिर हिंदूओं के हाथों में चला गया और हम सिर्फ पछताने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहे

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4अप्रैल 2022//चैत्र शुक्ल तृतीया /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
वारंगल की कहानी मेरी ज़ुबानी

जैन धर्म की प्राचीनता पर अक्सर ही सवाल खड़े किये जाते हैं लेकिन जैन धर्म की हजारों वर्ष प्राचीन मूर्तियां हजारों सालों से ही अलग -अलग कालखंडों में विभिन्न सभ्यताओं, पर्वतों की कंदराओं और नदियों के मुहानों पर प्रकट होकर इसकी गौरव गाथा को बयां कर देती हैं।

वहीं अनेक गुफाओं में शिलालेखों पर ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में वर्णित जैन धर्म का इतिहास भी इसकी प्राचीन होने की कहानी कहता है।

्तेलंगाना राज्य के वारंगल शहर में भी हजारों वर्ष पुरानी पर्वतों पर उकेरी हुई दिगम्बर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं सभी के संज्ञान में आयी हैं जो पहले पर्वतों पर झाड़ियों में छुपे होने से लोगों की नजर से दूर थी लेकिन हाल ही में तेलंगाना सरकार ने हनमकोंडा क्षेत्र में स्थित इस पहाड़ी को जैन समाज को सौंप दिया है।
इसके कारण हैदराबाद और आसपास के जैन समुदाय में हर्ष की लहर है और लोग इस पहाड़ी के दर्शन करने के लिये दौड़े चले आ रहे हैं।

आज नववर्ष की शुरुआत पर उगादी के दिन हम लोगों ने भी यहां जाने का कार्यक्रम बनाया।
हैदराबाद से वारंगल तीन सौ किमी दूर है और पहुंचने में लगभग तीन से चार घंटे लगते हैं। मंदिर के मुख्य दरवाजे से ऊपर पहाड़ी तक जाने के लिये लगभग सौ सीढियां हैं। पहाड़ी पर पहुंचते ही सबसे पहले खड्गासन मुद्रा में मूलनायक शांतिनाथ भगवान की उकेरी हुई प्रतिमा है और उसके बाजू में ही पद्मासन मुद्रा में पार्श्वनाथ भगवान और आदिनाथ भगवान की प्रतिमाएं भी उकेरी हुई हैं।

वहीं उस पहाड़ी से थोड़ा सा नीचे की पहाड़ी और उसके ऊपर की पहाड़ी की चट्टानों व एक गुफा में भी और दूसरे तीर्थंकरों की मूर्तियां उकेरी गयी हैं। सभी मूर्तियां बहुत ही मनोहारी हैं और हजारों सालों की गाथा को बहुत ही खूबसूरती से सुना रही हैं।
लेकिन अभी मंदिर का आमूलचूल विकास होने व मूर्तियों का पंचकल्याणक होने में एक से दो वर्ष का समय लगेगा। सारा कार्य हैदराबाद आगापुरा मंदिर से जुड़े धर्मात्मा और समाजसेवी सुमेर पांड्या जी और राजेश पहाड़े जी की देखरेख में किया जा रहा है।

इसी पहाड़ी के ठीक सामने पद्मावती माता का मंदिर है। जिसमें अब वहां के स्थानीय हिंदू लोग पद्माक्षी देवी मंदिर कहकर पूजा अर्चना करते हैं।
दिगम्बर मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस पद्मावती मंदिर में भी कई दिगम्बर तीर्थंकरों की मूर्तियां हैं । इसलिए इस माता के मंदिर में भी जाने की इच्छा हुई।

वहां जाकर देखा तो आंखों को सच समझने में देर नहीं लगी। माता का यह मंदिर भी दिगंबर जैन मंदिर ही है । मंदिर में प्रवेश करते ही एक छोटा मानस्तम्भ है
और दीवारों पर चारों तरफ ज्यादातर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाएं ही उत्कीर्णित हैं और माता के गर्भगृह में भी पद्मावती माता के बगल में दिगम्बर भगवान की खड्गासन मूर्ति है जिस पर एक दुशाला शॉल की तरह लगाया हुआ है और वहीं एक और काले रंग की मूर्ति है जिस पर चौबीसों तीर्थंकर बने हुए हैं। ज्यादातर मूर्तियों की आंखों , अधरों को गहरे रंगों से रंगा हुआ है।

हकीकत में जैन विरासत और कैसे बदल दी हिंदुओं के पद्माक्षी मंदिर में। इसकी पूरी रिपोर्ट, मंगलवार सांय 8:00 बजे यूट्यूब , चैनल महालक्ष्मी पर देखिए । वर्तमान के चित्रों के साथ, कैसे हम अपनी विरासत एक होते जा रहे हैं।
वारंगल में दिगंबर जैन लोगों के अभाव के कारण शायद यह मंदिर वहां के स्थानीय हिंदूओं के हाथों में चला गया और अब सच दिखाई देते हुये भी यह मंदिर पूरी तरह माता का मंदिर बन चुका है।

यह सब सच्चाई जानकर और देखकर मन बहुत दुखी हुआ । अक्सर दूसरे धर्म और संप्रदायों के लोग जैन भगवानों की मूर्तियों को वस्त्र पहनाकर उन्हें हिंदू देवी -देवताओं में परिवर्तित कर देते हैं लेकिन इस माता के मंदिर में ज्यादातर मूर्तियां दीवारों पर उकेरी होने से उन्हें वस्त्र पहनाना भी आसान नहीं है जिस कारण मंदिर अपने दिगम्बर होने की शान से गवाही दे रहा है।
आज जैन समुदाय के अल्पसंख्यक होने के कारण हमारे असंख्य मंदिर और पूजा स्थल हमसे छीन लिये गये हैं और हम सिर्फ पछताने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

स्वाती जैन पत्रकार, हैदराबाद
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