पूज्य 105 श्री आर्यिका विशुद्धमती माताजी की समाधि दिवस 22 जनवरी , आचार्य श्री शांति सागर जी की 5 पीढ़ी समाधि हेतु मौजूद रही

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विशेष परिचय
पूर्व नाम श्री सुमित्राबाई
पिता जी एवम माताजी
श्रीमान् सिंघई लक्ष्मणलालजी
माता श्रीमती मथुराबाई
भाई बहन 5
श्री नीरज जैन श्री निर्मल जी
श्री सुमित्रा जी स्वयम
श्रीमती चंदन देवी जी श्रीमती लीला देवी जी
जाति गोला पूर्व दिगम्बर जैन

जन्मस्थान : ग्राम रीठी, जिला जबलपुर (म.प्र.)
जन्मतिथि : चैत्र शुक्ला तृतीया शुक्रवार सं. 1986 दिनांक 12 अप्रैल 1929
संघर्ष मय जीवन : ग्राम बाकल में 15 वर्ष की उम्र में विवाह हुआ
छोटी वय 13 वर्ष की उम्र में पिता का वियोग
विवाह के बाद सन 1944 में माता का वियोग
विवाह के 18 माह के भीतर पति वियोग

शिक्षण
शास्त्री, साहित्यरत्न, विद्यालंकार धार्मिक शिक्षण एवम कार्य क्षेत्र डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य दिगम्बर जैन महिलाश्रम सागर बारह वर्ष तक प्रधानाध्यापिका

प्रेरणाप्रद संस्कार
व्रत नियम
पूज्य १०५ श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी परमपूज्य १०८ श्री आचार्य धर्मसागरजी तब मुनि थे उनसे 7 प्रतिमा के नियम लिए
प्रोत्साहन
संघस्थ १०८ श्री सन्मतिसागर जी
आर्यिका दीक्षा
विक्रम संवत 2021 श्रावण शुक्ला सप्तमी 1008 श्री पारस नाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक दिवस 14 अगस्त 1964 को अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी मे आचार्य श्री शांति सागर जी परम्परा के दिव्तीय पट्टाधीश आचार्य श्री शिव सागर जी से आर्यिका दीक्षा लेकर पूज्य आर्यिका श्री विशुद्ध मति जी नामकरण हुआ

12 वर्ष की नियम सल्लेखना
चारित्र चक्र वति आचार्य श्री शांति सागर जी परम्परा के चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री अजित सागर जी से वर्ष 1990 में 12 वर्ष की उत्कृष्ट नियम सल्लेखना ली
वर्ष 1999 चातुर्मास से एक दिन छोड़कर आहार
वर्ष 2000 के चातुर्मास में 2 दिन छोड़कर आहार
27 जून 2001 से अनाज में आहार में केवल चावल

समस्त अनाज का त्याग
आचार्य श्री की समाधि के बाद पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने निर्यापकाचार्य का उत्तर दायित्व वहन किया माताजी ने 38 वे दीक्षा दिवस श्रावण शुक्ला सप्तमी 27 जुलाई 2001 को समस्त संघ से क्षमा याचना कर समस्त अनाज के आहार का त्याग किया

शिक्षा गुरु
आचार्य कल्प १०८ श्री श्रुतसागर जी
पूज्य मुनि १०८ श्री अजितसागरजीपूज्य माताजी के
साहित्य सृजन
आर्षमार्ग पोषक अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी
पूज्य आर्यिका १०५ श्री विशुद्धमती माताजी द्वारा विरचित वाड्.मय

● भाषा टीकाएं :
१. सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमीचन्द्राचार्य विरचित त्रिलोकसार टीका
२. भट्टारक सकलकीर्ति विरचित सिद्धान्तसारदीपक टीका।
३. यतिवृषभाचार्य विरचित तिलोयपण्णत्ती की हिन्दी टीका (तीन खण्डों में)
४. क्षपणासार
५. अमितगति आचार्यविरचित-योगसार
६. मरणकण्डिका

मौलिक रचनाएं :
१. श्रुतनिकुंज के किंचित् प्रसून २. गुरु गौरव
३. श्रावक सोपान और बारह भावना ● प्रश्नोत्तर लेखन
४. आनन्द की पद्धति अहिंसा
५. निर्माल्य ग्रहण पाप है.
: १. धर्मप्रवेशिका प्रश्नोत्तर माला २. थर्मोद्योत प्रश्नोत्तर माला
३. छहढाला
४. इष्टोपदेश
५. स्वरूपसम्बोधनपंचविंशति

D संकलन-सम्पादन
1 . वत्थुविज्जा (प्रथमखण्ड-गृहशिल्प)
2. वत्थुविज्जा (द्धितीयखण्ड-मन्दिरशिल्प)
3 वास्तुविज्ञान परिचय
4 श्रमणचर्या
5 नित्यनियमपूजा एवं दीपावली पूजन
6 समाधिदीपक
7 . दीपवली पूजनविधि
8 शान्तिथर्मप्रदीप अपरनाम दानविचार
9 . नारी बनो सदाचारी
10 . श्रावक सुमन संचय
11 महावीरकीर्ति स्मृति ग्रन्थः एक अनुशीलन
12 स्तोत्र संग्रह
13 श्रावक सोपान
14 . ऐसे थे चारित्र चक्रवर्ती
15 आर्यिका आर्यिका है
16 चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर चरित्र
17 . संस्कार ज्योति
18 पाक्षिक श्रावक प्रतिक्रमण सामायिक विधि
19 वृहद् सामायिक पाठ एवं व्रती श्रावक प्रतिक्रमण
20 . आचार्य शान्तिसागरजी महाराज का संक्षिप्त जीवनवृत्त
21. रात्रिक/देवसिक प्रतिक्रमण (अन्वयार्थसहित)
22. पाक्षिकादि प्रतिक्रमण (अन्वयार्थ सहित

कभी दीक्षाएं नही दी
परमपूज्य आर्यिका माताजी ने अपने साधु जीवन मे कभी दीक्षाएं नही दी किंतु अनेक भव्य आत्माओं श्रावक श्राविकाओं को नियम अणुव्रत महाव्रत के लिए प्रेरित भी किया
आपके संघस्थ श्री मीठा लाल जी उदयपुर बाद में आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी से दीक्षा लेकर मुनि श्री देवप्रभ सागर जी बने, ऐसे अनेक उदाहरण है

वर्षायोग
1 दीक्षावर्ष 1964 में पपौरा,
2 1965 श्रीमहावीरजी,
3 1966 कोटा,
4 1967 उदयपुर,
5 1968ब। परतावगढ़,
6 1969 टोडारायसिंह,
7 1970 भीण्डर,
8 1971 उदयपुर,
9 1972 अजमेर,
10 1973 निवाई,
11 1974 रैनवाल,
12 1975 सवाई माधौपुर,
13 1976 सीकर,
14 1977 रैनवाल,
15 1978 निवाई,
16 1979 निवाई,
17 1980 टोडाराय सिंह,
18 1981 उदयपुर,
19 1982 उदयपुर,
20 1983 उदयपुर,
21 1984 भीण्डर,
22 1985 उदयपुर,
23 1986 कूण,
24 1987 भीलवाड़ा,
25 1988 उदयपुर,
26 1989 भीण्डर,
27 1990 पारसोला,
28 1991 अणिन्दा पार्श्वनाथ
29 1992 , फलासिया,
30 1993 ईडर,
31 1994 रामगढ़,
32 1995 गनौड़ा,
33 1996 गींगला,
34 1997 नन्दनवन,
35 1998 मुंगाणा,
36 1999 नन्दनवन,
37 2000 नन्दनवन,
38 2001 में पुनः नन्दनवन।

अद्भुत संयोग
वर्ष 2001 में नंदन वन में प्रथमाचार्य चारित्र चक्र वति आचार्य श्री शांति सागर जी की 5 पीढ़ी समाधि हेतु मौजूद रही
आचार्य श्री वीर सागर जी की शिष्या आर्यिका श्री सुपार्श्व मति जी
आचार्य श्री शिव सागर जी की स्वयम माताजी शिष्या
आचार्य श्री धर्म सागर जी के शिष्य स्वयम आचार्य श्री तथा आर्यिका श्री शुभ मति जी
आचार्य श्री अजित सागर जी के शिष्य मुनि श्री चिन्मय सागर जी आर्यिका श्री चैत्य मति जी
तथा पंचम पट्टा धीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का संघ
मुनि श्री दया सागर जी की शिष्या आर्यिका श्री प्रशान्त मति जी

समाधि : 22 जनवरी 2002 को नंदन वन धरियावद में वात्सल्य वारिधि निर्यापका चार्य आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ससंघ सानिध्य में ब्रह्म मुहर्त में समाधि हुई
साभार श्री निर्मल जी श्री नीरज जी सतना द्वारा लिखित जीवन परिचय पुस्तक
संकलन कर्ता राजेश पंचोलिया इंदौर

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