भैया ! कितना ही आटा हो , नमक की डली जरा – सी होती है , पर तुम्हारी पूरी रोटी को स्वादिष्ट कर देती है । ऐसे – ही जिनशासन है , जो सारे देश को मधुरता देने वाला है ।
भैया ! ” मूलाचार ” जी ग्रन्थ में नमक के लिये मधुर रस में ही रखा गया है , क्योंकि भोजन में मधुरता देने वाला नमक है ।
सारे ब्रह्मांड में अध्यात्म की मधुरता देने वाला कोई है , तो ये दिगम्बर जैनाम्नाय का आगम सार है । यही समयसार है ।
ज्ञानी ! जीवन में भूल नहीं कर लेना कभी भी । टूटते हुये को जोड़ने के लिये तो जिन शासन है , जोड़े हृदय को तोड़ने के लिये जिनशासन नहीं है । जब – जब इतिहास पढ़ता हूँ , तब लगता है कि हमारे वीतरागी आचार्यों ने कितना पुरुषार्थ किया ? सबकुछ झेलते हुये भी जिनशासन को नीचे नहीं होने दिया ।
जयवन्त हों ” भद्रवाहुस्वामी ” । धर्म की रक्षा के लिये देश छोड़ कर चले गये थे, प्रांत छोड़कर चले गये थे । उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर चले गये । ये बड़ी गहरी बात समझना । स्थान का राग नहीं करना कभी भी यदि स्वच्छ रहना चाहते हो तो ।
ज्ञानी ! कंस के अत्याचारों से बचाने के लिये , नन्दगोप के यहाँ कृष्ण नारायण को सुरक्षित रखा गया । यशोदा के आँगन में , नन्दगोप के यहाँ रहे नारायण श्रीकृष्ण , तब भी बलभद्र बलराम आँख में आँसू नहीं डाल रहे थे, क्योंकि ज्ञात था कि मेरे आँगन में नहीं है , पर बेटा आँगन में हैं । ज्ञानी आँगन के राग में आँगन में रखते , तो बेटा आँगन में होता नहीं । इसलिए क्षेत्र का राग नहीं करना
:- आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ( रयणसार )