यथार्थ में चातुर्मास बुद्धिमान चतुर चारित्रवान नरों के लिए नारायण बनने की प्रक्रिया है: दिगम्बराचार्य विशुद्धसागर जी

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11 जुलाई 2022/ आषाढ़ शुक्ल दवादिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

श्री खंडेलवाल दिगंबर जैन मंदिर सन्मति नगर, गली नं.4, फाफाडीह, रायपुर
कलश स्थापना मंगलवार 12 जुलाई 2022 दोपहर 1 बजे से गुरु पूर्णिमा बुधवार 13 जुलाई 2022 वीर शासन जयंती गुरुवार 14 जुलाई 2022

विशुद्ध चातुर्मासोत्सव

श्रुतसंवेगी श्रमण सुव्रतसागर
दया धर्म का सार है। दया-करुणा से शून्य धर्म नहीं होता है। जीव रक्षा ही पवित्र धर्म है। जीव रक्षा सर्व धर्मों में सार है। अहिंसा ही परम धर्म है। अहिंसा, दया, करुणा, अध्यात्मयोग से ही आत्म शांति संभव है। आत्मज्ञान के बिना धर्म संभव नहीं है। अंतरंग वात्सल्य, दया, करुणा का बोधक मैत्री है। विश्व मैत्री के साथ ही धर्म की सार्थकता है। परोपकार मानवता की पहचान है। जगती के जीवों का रक्षक ही सज्जन, साधु हो सकता है। जिनमत का मूल अहिंसा है। सर्व व्रतों में प्रधान ‘अहिंसा’ है। अहिंसा ही विश्वशांति, विश्वमैत्री और आत्मशांति का एक मात्र उपाय है। अनेकान्त, स्याद्वाद, अहिंसा जैनत्व के शाश्वत सिद्धान्त हैं। ‘जियो और जीने दो’ की भावना ही सदाचरण है। सदाचरण ही सिद्धि का आधार है। विनम्रता, विनय, अनुशासन एवं सद्-साहित्य के अध्ययन से ही समाज, धर्म, संस्कार एवं संस्कृति की रक्षा संभव है।

जैन दर्शन की महानता
जैन धर्म एवं इसकी पवित्र-प्रेरक गौरवशाली-संस्कृति विश्व वसुन्धरा पर अनादि सनातन से विद्यमान है। इसके विश्व व्यापी हितकारी सिद्धांतों से जन-जन प्रभावित है। वेदों में भी जैनत्व का स्तुत्य उल्लेख है। सम्पूर्ण विश्व में दिगम्बर मुनियों की प्राञ्जल-प्रज्ञा पूज्यता को प्राप्त है। जैनों की पवित्र-भावना, भोजन पद्धति, मैत्री, करुणा, दया, धर्म, संस्कृति, राष्ट्र भक्ति, पुरातत्व संरक्षण और सद्-साहित्य प्रियता सर्व मानवों को आदर्श है।
जैन दर्शन (धर्म) के तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारत’ विख्यात है, यही जैनत्व की गुरुता का प्रतीक है। जैन दर्शन विश्व में अध्यात्म, ध्यान, योग, ज्ञान-विज्ञान, सात्विकता और तप-संयम-साधना के लिए जाना जाता है।

वर्षायोग का उद्देश्य
जैन साधक परम्परा में वर्षायोग सनातन परम्परा है। चातुर्मास, वर्षायोग, वर्षावास, वर्षा प्रवास एकार्थक हैं। वर्षायोग में संयमी साधक, आत्म साधना हेतु चार माह तक किसी एक शहर, गांव या तीर्थ पर ठहर कर आत्मानुष्ठान में संलग्न रहते हैं। चातुर्मास आत्म साधनार्थ ही किया जाता है। चातुर्मास का मूल उद्देश्य अहिंसा धर्म का पालन करना है। जीवों पर दया, करुणा, जीव रक्षा एवं आत्मिक उत्थान हेतु साधक वर्षावास में विशेष आत्मानुष्ठान करते हैं।

चातुर्मास स्थापना
शास्त्रीय आगमिक परम्परानुसार साधक आचार्य, मुनि, आर्यिका संघ, आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को भक्ति पाठ कर निश्चित दूरी की मर्यादा करके चातुर्मास की स्थापना करते हैं। किसी कारण वश उचित स्थान पर नहीं पहुंचने पर, श्रावण कृष्ण पंचमी तक स्थापना कर सकते हैं। तदोपरान्त वर्तमान शासन नायक तीर्थेकर भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस, दीपावली अर्थात कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन वर्षायोग पूर्ण होता है। वर्तमान में साधक समाज के मध्य, स्व-स्व संघ परम्परा अनुसार वर्षायोग की स्थापना करते हैं। कलश स्थापना आदि यह वर्तमान की व्यवस्था है।

चातुर्मास के अनुष्ठान
समाज के मध्य साधकों का प्रवास निश्चित ही श्रावकों को धर्म से ओत प्रोत कर देता है। साधुओं के द्वारा नित्य प्रवचन, शास्त्र अध्ययन, धार्मिक शिक्षा द्वारा धर्म की महती प्रभावना होती है। एक ओर साधक आत्म साधना करते हैं, तो दूसरी ओर श्रावक भी तपस्वी जनों की सेवा के साथ-साथ संयमाचरण का पवित्र अनुष्ठान करता है। वर्षाकाल में गुरु पूर्णिमा, वीर शासन जयन्ती, मोक्ष सप्तमी, रक्षा बंधन, पर्युषण, रत्नत्रयव्रत, धन्य तेरस, दीपोत्सव आदि अनेक महोत्सव उत्साह पूर्वक मनाये जाते हैं। विद्वत संगोष्ठी, श्रावक संस्कार शिविर, शिक्षण शिविर भी आयोजित होते हैं।

चातुर्मास में विशेष साधना
वर्षायोग में वीतरागी तपोधन, निर्ग्रन्थाचार्य, मुनिराज, आर्यिका माता जी, ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिका माता जी, प्रतिमाधारी, ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणी एवं अन्य श्रावक-श्राविकायें, स्व-स्व योग्यता, शक्ति अनुसार उपवास, जप-तप, बेला, तेला, रस त्याग, अनाज त्याग, हरी त्याग, वाहन त्याग, गमनागमन त्याग के साथ-साथ मौन आदि साधनायें करते हैं। यथार्थ में चातुर्मास बुद्धिमान चतुर चारित्रवान नरों के लिए नारायण बनने की प्रक्रिया है। वर्षयोग में साधक विभिन्न प्रकार से तपादि के माध्यम से राग को कम कर वैराग्य को वर्धमान करता है। वर्षायोग आत्म-संस्कार के लिए एक अनुष्ठान है। वर्षायोग के माध्यम से साधक आत्म-साधना के साथ श्रुत का सृजन एवं जैन -जैनेत्तरों में धर्म की महिमा को प्रकट करता है। मोह-ममता का वियोग हो, धर्म का उद्योत हो, पाप का क्षय हो, संयम निर्मल हो यही तो वर्षायोग है।

चातुर्मास के अधिकारी
परम अहिंसा के पालक आचार्य, उपाध्याय, साधु, गणिनी, श्रमणी-आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक एवं क्षुल्लिका माता जी अनिवार्य रूप से वर्षावास करते हैं। श्वेताम्बर परम्परा के साथ अन्य धर्मों में भी वर्षावास की परम्परा है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने भी वनवास काल में वर्षावास किया था। प्रत्येक अहिंसक के लिए यह उपादेय है।

चातुर्मास की अनिवार्यता
वर्षाकाल में सम्मूर्छन जीवों की उत्पत्ति बहुत अधिक मात्रा में हो जाती है, साथ ही सांप, बिच्छू, मेंढक, चींटी आदि के बिलों में पानी भरने से वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं अथवा वह मार्ग में वाहनों से मरकर प्राण गंवाते हैं। रात-दिन सड़कों पर दौड़ते वाहनों से करोड़ों मूक प्राणी मृत्यु को प्राप्त होते हैं, जिनका दोष वाहन वाहक एवं यात्रा करने वालों को ही लगता है।
अहिंसक मानवों को कम से कम वर्षाकाल में पूर्णत: वाहनों के प्रयोग का त्याग कर देना चाहिए। प्राणियों पर दया, प्राणी रक्षा हेतु, हिंसा से बचने के लिए वर्तमान काल में भी चातुर्मास करने हितकर है।

दिगम्बराचार्य विशुद्धसागर जी का वर्षावास
सुव्रतों के स्वामी, वस्तुत्व महाकाव्यकार, सत्यार्थ-बोध प्रदाता, आध्यात्मिक देशनाकार, श्रुतनिष्ठ, प्रत्युत्पन्नमति, सत्य-अहिंसा के पथिक, पग-विहारी, कर पात्री, समताधारी, क्षमाशील, न्याय प्रवीण, निर्ग्रन्थ पथ के पथिक, विश्वमैत्री के पक्षधर, ज्ञानी -ध्यानी, सर्वमान्य तत्व मनीषी, आत्म साधक, मौन प्रिय आचार्य गुरुवर श्री विशुद्ध सागर जी (21 दिगम्बरों) के साथ ससंघ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर फाफडीह में करेंगे वर्षावास।
आचार्य भगवन चार माह तक रायपुर में करेंगे धर्म प्रभावना। प्रतिदिन श्रमण सुत्तं एवं परमात्म-प्रकाश ग्रंथ पर होगी आध्यात्मिक देशना। जप-तप में लीन रहकर करेंगे मौन की साधना। गुरुवर के सान्निध्य में 21 मुनिराज एवं 25 ब्रह्मचारी भैया जी भी करेंगे वर्षायोग।

आचार्य श्री विशुद्धसागर जी के वर्षायोग (1983 से 2022 तक)
आचार्य श्री विशुद्धसागर जी क्षुल्लक, ऐलक, मुनि एवं आचार्य पद पर अभी तक 33 वर्षायोग पूर्ण कर चुके हैं। सर्वप्रथम सन् 1989 में भिण्ड (म.प्र.), 1990 में टीकमगढ़, 1991 में श्रेयांसगिरि, 1992 में द्रौणगिरि, 1993 में श्रेयांसगिरि, 1994 में बीना, 1995 में पन्ना, 1996 में छतरपुर, 1997 में दुर्ग (छ.ग.), 1998 में भिलाई, 1999 में करगुवां (उ.प्र.), 2000 में सागर, 2001 में सिलवानी, 2002 भोपाल, 2003 में ललितपुर, 2004 में विदिशा, 2005 अमरावती (महा.), 2006 में सोलापुर, 2007 में इंदौर, 2008 में जबलपुर, 2009 में अशोक नगर, 2010 में उज्जैन, 2011 में सागर, 2012 में आगरा, 2013 में नागपुर, 2014 में भोपाल, 2015 मे भीलवाड़ा (राज.), 2016 में भिलाई, 2017 में इन्दौर, 2018 में औरंगाबाद (महा.) 2019 में भिण्ड, 2020 में वैशाली (बिहार), 2021 में श्री सम्मेद शिखरजी (झारखण्ड), 2022 में रायपुर में सम्पन्न हो रहा है।

विशुद्ध वर्षायोग: 2022 रायपुर (छ.ग.)

रायपुर में श्रुतसंवेगी श्रमण सुव्रत सागर जी, तपस्वी श्रमण अनुत्तर सागर जी, उग्र साधक श्रमण आराध्य सागर जी, छ. ग. गौरव श्रमण प्रणेय सागर जी, आंग्लभाषा मर्मज्ञ श्रमण प्रणीत सागर जी, मनोज्ञमुनि श्रमण प्रणव सागर जी, श्रेष्ठ शास्त्र संकलज्ञ श्रमण प्रणुतसागर जी, प्रभावनाकर श्रमण सर्वार्थ सागर जी, संस्कृतज्ञ श्रमण साम्य सागर जी, ध्यानी श्रमण संकल्प सागर जी, प्राकृत प्रवीण श्रमण सारस्वत सागर जी, निस्पृह योगी श्रमण संजयंत सागर जी, श्रमण संयत सागर जी, श्रमण यशोधर सागरजी, वैयावृत्य निपुण श्रमण योग्य सागरजी, सरल स्वभावी श्रमण यतीन्द्र सागर जी, प्रयत्नशील श्रमण यत्न सागर जी, सेवा भावी श्रमण निर्ग्रन्थ सागर जी, रमण निर्मोह सागर जी, अध्ययनशील श्रमण निसंग सागर जी, सहज स्वभावी श्रमण निर्विकल्प सागर जी आचार्य श्री विशुद्ध सागर के साथ करेंगे वर्षावास।