लंकेश ( रावण ) के पास विशाल सेना थी , पर श्रीराम के पास मात्र अनुज लक्ष्मण थे , पर श्रीराम का सोच सही था , समीचीन था और समीचीन – सोच के बल पर वह साहस – पूर्वक आगे बढ़े । “ जहाँ चाह वहाँ राह ” होती ही होती है । श्रीराम बढ़ते रहे और उन्हें वीर हनुमान जैसे भक्त मिल गए , फिर देखते – ही – देखते विशाल समूह सहयोगियों का एकत्रित हो गया , अंत में रावण हार गया*
सोच को सही दिशा में बढ़ायें । यदि आप किसी बात को लेकर परेशान हैं , तो घबड़ायें न , हताश न हों , अपनी सोच की दिशा बदलें , आत्म – हत्या जैसे अपराध न करें ।
दुनिया बहुत सुंदर है , आप अपना पूर्ण जीवन जियें । आपको राह मिलेगी , आपका विकास होगा , मात्र आप अपनी सोच को सही दिशा में लगायें । सही – सोच ही सर्व – समस्याओं का सुलभ समाधान है । आओ , हम सोच को शुचिता प्रदान करें , विचारों को सही दिशा दें , जीवन में विकास प्राप्त करें
चिंता न करें , क्योंकि “ दिन बदलते देर नहीं लगती , सबके दिन एक से नहीं होते ।