भो ज्ञानी ! समझना । किसी का वध करने को दुनियाँ कहती है हिंसा , लेकिन तीर्थंकर कहते हैं , कि किसी को बदनाम करना भी हिंसा है । किसी का वध करना तो हिंसा है ही , बदनाम करना महान हिंसा है
क्योंकि आपने उसके प्राणों का विघात किया है, उसके परिणामों का विघात किया है , उसकी निर्मलता का विघात किया है । जैनदर्शन में दो प्रकार की हिंसा का कथन किया है । किसी के प्राणों का वियोग करा देना , इसका नाम द्रव्यहिंसा है और किसी को मारने के परिणाम कर लेना , इसका नाम भावहिंसा है ।
माताओ ! विचार करना , कि एक सियारनी जब जंगल से शिकार करके आती है , तो उसके नख लाल होते हैं मुख लाल होता है । कोई माँ अपने ओठों पर लिपिस्टक लगाये हो , नखों पर पालिश लगाये हो , तो कहना – प्रभु ! आपके चरणों में सियारनी बनकर आई हूँ , मेरा स्वरूप तो देख लो ।
मनीषियो ! अहिंसा की बात बड़ी सूक्ष्मदृष्टि है । जिनवाणी कह रही है , व्यर्थ में किसी का विघात मत करो । सत्ता भी सत्य से मिलती है । जिसदिन आचरण असत्य हो जायेगा , उसदिन रावण जैसी सत्ता भी समाप्त हो जायेगी
इसलिये वाणीसंयम का ध्यान रखना । बोल सको तो मधुर बोलना और बोलना न आता हो, तो मौन रहना परन्तु कटुक, कठोर शब्द का प्रयोग मत करना । जीवन में बाण से अधिक घातक यदि कोई है, तो वाणी है ।