जिस जीव ने चारों ओर से पाप किया, किसी को चारों ओर से कष्ट दिया वही कीड़ा बनकर तड़प रहा – आचार्य विशुद्धसागर जी

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हे जीव!! जब कर्म का उदय आता है तो चारो तरफ से कर्म घेरते है। एक कीड़े को मैंने आँखों से देखा। उसमें पचासों चींटी लगी थी ।जीवित कीड़ा तड़प रहा है सामने वाला फूंक भीं रहा है लेकिन कितनी कुरुर परिणामी चीटियां होती है छोड़ नही रही है ।

टूट जाती है लेकिन छोड़ती नहीं है हे भगवान इधर भी पीड़ा, उधर भी पीड़ा जिस जीव ने चारों ओर से पाप किया, किसी को चारों ओर से कष्ट दिया वही कीड़ा बनकर आया है इसलिए ज्ञानीयों ध्यान रखना परिणामो दशा को संभालोगे तो चींटियों से बच जाओगे और नहीं संभल पाये तो संसार में कोटि कोटि चीटियां है।।

हे श्रमण !!श्रावक से कुछ भी लेना देना उसकी श्रद्धा को तोड़ना है इसलिए श्रावकों से दूर ही रहना चाहिए।।

भो ज्ञानी !!जो साधु की साधना में जो वृद्धि हो वैसा ही द्रव्य देना चाहिए जो श्रावक असाधना के द्रव्य मुनियों को देता है उसे मुनि हत्या का दोष लगेगा।।ऐसा पुरूषार्थ सिद्धि उपाय में आया है।।

#vishudh_sagar