आगम ‘ शब्द सुनकर प्रभावित मत हो जाना । क्योंकि आजकल ऐसा समय चल रहा है , मन की कोई भी बात पुस्तक में छाप दी और जब छपकर आ जाती है तो आप ‘ जिनवाणी ‘ संज्ञा दे देते हो , ‘ आगम ‘ बोलने लगते हो ।
परन्तु मूल आगम से विपरीत कथन जिसने लिख उससे बड़ा हत्यारा जगत् में कोई दूसरा नहीं होगा ।
क्यों ? क्योंकि बच्चों की श्रद्धा विपरीत मार्ग में लगा रहे हैं* । पुण्य की तीव्रता में आगम के विरुद्ध रचना कर सकते हो , परन्तु भविष्य की अशुभ पर्याय तुम्हारा इंतजार कर रही है
पूर्व पुण्य की सत्ता में आप आगम के विरुद्ध बोल सकते हो । लोग आपको सुनने भी आयेंगे । वे ही आयेंगे जिनकी दुर्गति सुनिश्चित हो चुकी है ।
ज्ञानियो ! आगमविरुद्ध बोलने वाले के लिए भविष्य की अशुभ पर्याय मुख खोले बैठी हुई है ।
:- आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज
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