तीर्थ राज सम्मेद शिखर जी-13 पंथी कोठी- आचार्य रत्न विशुद्ध सागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
मायाचारी से पशु बनना पड़ेगा, भगवान नही बन पाओगे।।
तीर्थंकर जैसी धारा को प्राप्त करने के लिए, माया धर्म का आश्रय नही लेना पड़ता है, सत्यार्थ तत्व का निर्णय लेना पड़ता है।
तेरे कल्याण के दो ही हेतु है:- भगवान से मिलते रहोगे तो पाप क्षय, पुण्य बंध होता रहेगा और भावो से मिलते रहोगे तो पुण्य-पाप दोनों का क्षय करके भगवान बन ही जाओगे।।
समय देना सीखो। जैसे श्री जिनालय में समय देते हो ना, ऐसे अपने भावो में प्रवेश करने के लिए समय देना चाहिए।