जगत में जितने भी अनर्थ हुए हो रहे अथवा होंगे, उसके पीछे की वजह धन धरती व स्त्री ही है : आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी

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पारसनाथ तेरा पंथी कोठी के प्रवचन सभागार में उपस्थित सैकड़ों श्रद्धालुओं के बीच धर्म उपदेश देते हुए चर्या शिरोमणि आचार्य 108 विशुद्ध सागर जी महाराज कहते हैं, किसी भी कार्य की शुरुआत करने से पूर्व तीन तरह के मेल होना अत्यंत आवश्यक है। आस, विश्वास व पुरुषार्थ। विश्वास के साथ आस अाैर पुरुषार्थ जिस कार्य में हो उस कार्य की सिद्धि निश्चित होती है। सच्चे मन से किया गया पुरुषार्थ भाग्य व आस्था सिद्धि का साधन है।

धन व स्त्री का राग जगत का कोई भी संबंध नहीं देखता। जगत में जितने भी अनर्थ हुए हो रहे अथवा होंगे, उसके पीछे की वजह धन धरती व स्त्री ही है। स्त्री का रागी पुरुष जात, कुजात, कुल परंपरा, यश का ख्याल न रखते हुए केवल अपनी इच्छा पूर्ति के करना चाहता है। कामी पुरुष अपने यश को धूमिल कर जीवन को कलंकित कर भव भव में कष्ट को प्राप्त करता है। धर्म को छोड़ कर प्राणी नैतिकता शून्य जीवन जी रहा है। धन व धरती से मोहित अज्ञानी लोग अपने प्राण तक को देने में पीछे नहीं हट रहे।

धन एकत्रित कर लेना बड़ी बात नहीं धरती के स्वामी होना श्रेष्ठ नही परस्पर सहयोग भाव से समता पूर्वक जीवन जीवन जीना महत्वपूर्ण है। मनुष्य के भीतर मानवता होनी चाहिए। मानवीय मूल्यों के बिना मानव जीवन व्यर्थ है। स्वयं के लिए व्यक्ति जैसा व्यवहार चाहता है, वैसा ही दूसरे के लिए भी सोच बनाए। किसी के संपत्ति पर जबरन हकदार न बने, किसी से कलह न करे, जीवन को कलंकित न होने दें। मानव की मानवीयता तभी है जब वह देश समाज व अपने आस पास रहने वालों के लिए मानवता पूर्ण व्यवहार कर।

श्रेष्ठ व्यक्ति की पहचान है सुख दुख परिस्थिति चाहे जैसी भी ही सामने वाले के साथ हमेशा खड़ा रहने वाला ही महान कहलाता है।
– भास्कर न्यूज से साभार