आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ने तेरापंथी कोठी, शिखरजी में आज अपने प्रवचन में कहा कि
भो ज्ञानी !!ब्रह्ना की उपलब्धि तभी होगी जब अब्रह्ना का शत्रु विलीन हो जायेगा।।
भो ज्ञानी !! दुर्गति का मित्र है , कोई है उसका नाम है अब्रह्ना भाव है।।
भो ज्ञानी !! अपनी सोच के अनुसार मोक्ष मार्ग नहीं है,आगम अनुसार ही चिंतवन ही मोक्ष मार्ग है।।
भो ज्ञानी !!आपको चिंतवन को बदलने की आवश्यकता नहीं है लेकिन चिंतवन की धारा को बदलने की आवश्यकता है।।
जैसे पैसे आ रहे है तो आने देना लेकिन मित्र !!
पैसे को उपयोग कैसे करना है इसका विचार करना है कि पैसे सिनेमा घर में लगाना है कि जिन प्रतिमा विराजमान करना है।।
भो ज्ञानी @@ जो निमित्तों का नाश करके जो मुनि बनना चाहते है वे तो क्रूर परिणामी है
भो ज्ञानी !! उपादान सशक्त होता है निमित्त तटस्थ होता है।।
भो ज्ञानी!! हर घड़ी में मुस्कुराना चाहते हो तो बहिरंग निमित्त से दूर रहना पड़ेगा।।
भो ज्ञानी!! कर्कश वचन कभी मत बोलना जिससे दूसरे के दाँत किसकिसाने लगे ऐसे वचन मत बोलना।।