पेट भोजन से भरा जाता है, पेट रोटियों से भरा जाता है, पेटियों से नहीं भरा जाता फिर भी पता नहीं क्या ,जीव को आनंद आता है, जितना भोजन में आनंद नहीं आता है, उतना पेटियों में आनंद आता है
ऐसा द्रव्य आपके घर में रखा है जिसे आपने बरसों से देखा नहीं मकान के कोने में पता नहीं क्या क्या रखा हुआ है लेकिन यदि कोई गरीब मांगना चाहे तो कह देगा नहीं नहीं हमको काम आएगा आवश्यकता पड़ेगी
माताओं साड़ियाँ पेटियों में सड़ रही हैं एक गरीब मां फटे हुए वस्त्रों से अपना जीवन जी रही है लेकिन आप उसे दे नहीं सकते हो,भले ही वह सड़ जाए
“” अमृत चंद्र स्वामी जी कह रहे हैं कि जिसका उपयोग आप नहीं कर रहे हो ,जिसका उपयोग दूसरा कर नहीं पा रहा है ,तो आपको तीब्र अंतराय कर्म का आश्रव हो रहा है””
भैया तुम कितने कपड़े पहनते हो और रखते कितने हो आप ,अलमारियों में पेटियों में भी ऐसे वस्त्र होंगे,जिनको आपने वर्षो से हाथ नहीं लगाया लेकिन अंदर से गदगद भाव है कि मेरे पास है।
“जितना ये जीव परिग्रह का भोग रसना से नहीं करता, स्पर्श से नहीं करता उतना इन आंखों से कर रहा है बस देख देखकर ही ही खुश होता है।”
ज्ञानियों आश्रव होगा कि नहीं होगा
— आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज