20 तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि जहां के कण कण पूजनीय व वंदनीय है शास्त्रों में वर्णन है कि पारसनाथ पर्वत का भाव पूर्वक वंदना जो भी प्राणी करता है उस प्राणी को जन्म मरण तो होता है पर गति अच्छी होती है। इसका जैन शास्त्रों में श्लोक के माध्यम से बताया गया है। भाव सहित बन्दे जो कोई, ताहि नरक पशु गति नही होई।
शाश्वत तीर्थ सम्मेद शिखरजी की पावन भूमि पर इन दिनों दिगंबर समुदाय के महान आचार्य चर्या शिरोमणि आचार्य 108 विशुद्ध सागर जी महाराज 30 साधु के संघ सहित विराजते हुए प्रतिदिन प्रवचन देकर जन जन का कल्याण कर रहे हैं। जैन आगम के अनुसार व्याख्यान कर जन-जन के दिल दिमाग मे जैन आगम जिनवाणी के ज्ञान को अंतरात्मा तक पहुंचाते हुए जैन दर्शन के उद्घोषक भगवान महावीर के बताए हुए सूत्रों को आम आवाम को अपने जीवन मे आत्मसात कर सफल व सुखी जीवन की सलाह देते हुए आचार्य भगवंत बताते हैं। अहो ज्ञानियों चिंतनशील व्यक्ति योग्य अयोग्य हेय उपादेय करणीय अकरणीय, शुभाशुभ सुख दुख अच्छे बुरे का ज्ञान कर सुखद जीवन के लिए निरंतर पुरुषार्थ एवं प्रयत्न करता है।
अपनी जीवन उन्नति शांतिपूर्ण आनंद के लिए विवेकी मनुष्य हमेशा प्रयत्नशील रहता है। अहो आत्मनो हिंसापूर्ण भाव हिंसक वृति कलुषित परिणाम क्लेश ईर्ष्या परिणाम प्रतिस्पर्धा बुरी सोच स्वांवृति से युक्त जीवन शैली अनुशासन हीन लोग ही जीते हैं।अनुशासन हीन मानव मानवीयता से रिक्त अनैतिक जीवन जीता है। कलुषित भावों के साथ आप कितना भी पुरुषार्थ करो वह सफलता के रूप में फलित नही होता।