भव को सुधारना चाहते हो , तो भावों को सुधार लो । दुनियाँ में किसी से मिलने की जरूरत नहीं है । भाव सुधर गये तो नियम से भव सुधर जायेगा ।
भव से भवन नहीं सुधरता , भावों से सब सुधरता है । भव मेरा कैसा होगा ? ये तो किसी को मालूम नहीं , एकमात्र सर्वज्ञ को छोड़कर । जिसे मालूम है , वह सर्वज्ञ हमारे सामने नहीं है तो मेरा भव क्या होगा ?
ज्ञानी ! भव तेरे सामने नहीं है , भगवान् तेरे सामने नहीं हैं । तेरे सामने यदि कोई है , तो तेरा भाव है । भाव को निहार लीजिए , विश्वास रखना , भव तेरा वही होगा ।
कुटिल परिणाम चल रहे हैं , मायारूप परिणाम चल रहे हैं , भैया ! बड़े प्रेम से सुनना , आप पशु बन जाओगे ।
माताओं ! ध्यान रखना , आप जिनवाणी सुन रही हो । पुनः इसी पर्याय में आने के लिये सुन रही हो या नारीपर्याय से छूटने के लिए सुन रही हो ? हे माँ ! तेरे कहने मात्र से नारी पर्याय छूटने वाली नहीं है । नारीपर्याय से छूटना चाहती हो तो घर की मायाचारी करना छोड़ दो ।
परिवार के राग में , परिवार चलाने के राग में जो मायाचारी कर रही हो , परिवार चले या न चले , परंतु यह तेरा संसार नियम से चलेगा ।
एक में राग , दूसरे में द्वेष । किसमें कर रहा है मायाचारी ? उस मायाचारी के वश होकर तेरी पूरी साधना निकल जायेगी ।
:- आचार्य रत्न विशुद्ध सागर जी महाराज