तिलक और माला के राग में किसी को भी गुरु मत चुन लेना,माला फेरकर मुनि बनना सरल है लेकिन जिनवाणी को झेल कर मुनि बनना बहुत कठिन है – आचार्य विशुद्ध सागर जी

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● वीर शासन जयंती : जब तक पात्र नहीं होता तब तक भगवान की वाणी नहीं खिरती

सम्मेद शिखर जी: अध्यात्मयोगी संत आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शाश्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी स्थित 13 पंथी कोठी में आयोजित समारोह में कहा कि जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नही। जितनी योग्यता गुरु के अंदर होनी चाहिए उतनी योग्यता शिष्य के अंदर भी होनी चाहिए। 65 दिन निकल गए थे कैवल्य होने के बाद भी भगवान महावीर की वाणी नहीं ख़िरी थी जब तक पात्र नहीं होता है तब तक भगवान की वाणी नहीं खिरती है।

माला फेरकर मुनि बनना सरल है लेकिन जिनवाणी को झेल कर मुनि बनना बहुत कठिन है। धरती पर कोई क्षमा की मूर्ति कोई होती है उसका नाम दिंगबर मुनि है।

उन्होंने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि दिगम्बर मुनि कभी उपसर्ग करने वाले पर भी उपसर्ग नहीं करता है वह उसे दया से देखता है। जिसका संसार दीर्घ है वह क्षमा का भाव नहीं ला सकता है जिसकी जड़े सुखी है वे क्षमा नहीं कर सकता है लेकिन जिसकी लतयाएं ही गीली वह ही क्षमा को धारण कर पाता है।।

निर्ग्रंथ मुनि के पास धन संपत्ति, न कोई भवन नही होता है जैन मुनि के पास चारित्र का भवन होता है और रत्नत्रय की संपत्ति होती है।गुरु पूर्णिमा है आज देखकर ही गुरु बनाना चाहिये। तिलक और माला के राग में किसी को भी गुरु मत चुन लेना।

जैन दर्शन नाम को नहीं पूजता है जैन दर्शन तो मात्र गुण को पूजता है। निर्ग्रन्थ मुनि का मार्ग मांगने का मार्ग नहीं है। गुरु के प्रति असीम श्रद्धा होकर ही गुरु बनाना चाहिये। जो महावीर की चर्या से जो मिले उनसे मिलकर ही मन मिल पाता है। ये भिखारियों का मार्ग नहीं है ये भिक्षुओं मार्ग है।

प्रवीण जैन (पटना), अनुराग भैया सीहोरा