गणाचार्य श्री विराग सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य अध्यात्मयोगी दिगम्बराचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज का भगवान महावीर स्वामी के जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण भूमि नालंदा की धरती पर निर्ग्रन्थ मुनियों के बिहार यात्रा और कोरोना काल संकट पर ,बिहार का जैन दर्शन में महत्व पर चर्चा में कहा कि तीर्थंकर भगवंतों की कल्याणक भूमि बिहार प्रांत है अगर हम जैन दर्शन से बिहार को अलग रखते है तो जैन धर्म की बहुत सारी व्याख्यान अधूरी रह जाएगी। अनंतानंत चौबीस तीर्थंकर बिहार में भ्रमण किये। जैन श्रमण संस्कृति में बिहार प्रांत का विशेष स्थान है।
जैन मुनियों को मृत्यु से नही लगता है डर
कोरोना काल के बाद आगे की यात्रा क्या चुनौती भरी हो सकती है इस संकट को किस तरह पार कर सके इस पर उन्होंने कहा कि यदि साधक की साधना पवित्र है तो वह कठिन संकट को भी पार कर सकता है। कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जो भी निर्देश बताये गए वह तो जैन संत के जीवन में है। जैसे गर्म पानी, शुद्ध भोजन, साफ-सफाई, योगा तो हम योगी है ही। प्राणायाम तो हमलोगों का महामंत्र णमोकार का ध्यान, स्वाध्याय, आराधना चलती रहती है। हमलोगों की चर्या सहज होती है। सम्यक दृष्टि जीव को मृत्यु से डर नही लगता। जहां कोरोना काल में भय का माहौल था उस समय हम पूरे संघ निडर अपने साधना में लीन रहे। हम संयम समाधि के लिए मुनि बने है और उसकी साधना चल रही है। हमें कभी महसूस नही हुआ कि मृत्यु से डर लग रहा है। शासन प्रशासन के प्रति आभार जताते हुए कहा कि आसपास के समाज सभी का ध्यान हमारे संघ पर था। आचार्य श्री ने साथ में चल रहे संघपतियो के प्रति भी मंगल आशीर्वाद दिया जिन्होंने अपने घर परिवार से दूर रहकर कोविड संकट में भी 2 महीने मुनियों की सेवा में लगे रहे। इसलिए हमें किसी प्रकार की असुविधा भी महसूस नही हुई।
अंतर्मन की आवाज़ सुखी जीवन के लिए वैशाली में चातुर्मास
लॉकडाउन में 56 दिन एक स्थान पर रुके रहे पर 35 किलोमीटर दूर अपने तीर्थ स्थल पर नही गए इसका जवाब देते हुए आचार्य महाराज ने बताया कि वैशाली से हमलोग यात्रा करके आ चुके थे वह स्थान शहर और भीड़-भार से बिल्कुल दूर था, वहां पर्याप्त मात्रा में स्थान भी थी। साथ ही वैशाली की जो वातावरण थी तो हमलोगों को अपने ओर खींच रही थी। हमें ऐसा लग रहा था कि वहीं चलो। सम्मेद शिखर जी व स्थानीय समाज से भी समाचार आया कि शासन की अनुमति लेकर हम संघ का विहार करा सकते है। पर हमारे अंतर्मन ने कहा कि आप सुख से जीना चाहते हो तो वैशाली जाओ। यह अंदर की एक आवाज़ थी। तो विकल्प यही निकला कि वैशाली में चातुर्मास सम्पन्न हो और कोरोना की स्थिति सामान्य होते ही शासन की अनुमति से हमारा पूरा संघ चण्डी (नालंदा) से वैशाली की ओर विहार कर गए।
सम्पूर्ण समाज को मैत्री, सद्भावना का संदेश
आचार्य विशुद्ध सागर जी ने अपने लगभग 12 माह के बिहार यात्रा पर उन्होंने कहा कि बिहार तीर्थंकरों की भूमि है ऋषि मुनियों की भूमि है। इस भूमि पर सर्वत्र जैनत्व फैला हुआ है। सभी लोगों को मेरा यही उपदेश है कि सम्पूर्ण समाज मैत्री भाव, आपस में सद्भावना से रहे, धर्म अध्यात्म के साथ एक दूसरे के प्रति सहयोग प्रदान करें।
परमात्मा किसी को सुख-दुःख नही देता, बिहार में पूर्ण हुई ग्रंथ लेखन
आचार्य श्री ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान चंडी में 31 विषयों पर सत्यार्थ बोध नामक ग्रंथ का लेखन पूर्ण हुआ। जो आज बहुत बड़ा नीति शास्त्र का ग्रंथ बन चुका है। जिसमें पाश्चात्य संस्कृति से अशांत पथ भ्रमित मानव को अपनी संस्कृति के प्रति चेतना प्रदान कर मानवीय आदर्शों को जागृति प्रदान कर नैतिक पूर्ण जीवन निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। दूसरा ग्रंथ कर्म सिद्धान्त के ऊपर कर्म विपाक नामक ग्रंथ गया में पूर्ण किया गया। जो केशर की स्याही से लिखा गया। जिसका नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में विश्व का प्रथम केशर से लिखा गया ग्रंथ के रूप में नाम दर्ज हुआ। जिसमें जीव कैसे कर्म करता है, कैसे कर्म के फल को भोगता है, इसके साथ साथ जो लोगों की अवधारणा है कि कोई ईश्वर नाम की वस्तु है जो जीवों को सुख दुःख दे रही है। ये सब विकल्पों को वहां दूर किया गया है। परमात्मा किसी को सुख दुख नही देता है। हम स्वाधीन है। जो जैसा कर्म करेगा वैसा फल पाएगा इन सब बातों का जिक्र किया गया है। तीसरा ग्रंथ का शुभारंभ राजगृह में भगवान महावीर स्वामी की प्रथम देशना स्थली विपुलांचल पर्वत पर ताड़ पत्र पर लेखन किया।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जैन दर्शन के पास है पुरातात्विक सम्पत्ति
जहां पर प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी का अवशेष है वहां वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर 2500 वर्ष पूर्व साधना की। बौद्ध ने भगवान महावीर से प्रभावित स्थान को चुना। और उन्होंने वहां पर आकर साधना की। इसलिए दोनों की साधना स्थल को देखकर गुप्तकालीन में नालंदा यूनिवर्सिटी बनी। यहां शैल चित्र, भित्ति चित्र के बारे में जानकारी मिली। यदि हम पूरे राजगृह की वंदना कर लेता और सोन भंडार को जाकर नही देखता तो हमारी राजगृह की यात्रा अधूरी रह जाती। किसी भी दर्शन की सुरक्षा साहित्य और पुरातत्व से है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई पुरातात्विक सम्पत्ति किसी के पास है तो वह जैन दर्शन के पास है। विश्व में अहिंसा का प्रचार हो इसके लिए प्राचीन धरोहर रक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारत की सबसे प्राचीन श्रमण संस्कृति है वह आर्यों के आने के पहले श्रमण यहां थे।
भगवान महावीर जन्मभूमि को लेकर अलग अलग लोगों की अपनी धारणा
वर्तमान शासन नायक अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्म स्थली के सवाल पर आचार्य विशुद्ध सागर जी ने बिना कोई अपना मत देते हुए सीधे कहा कि अलग अलग लोगों की अपनी धारणा है। हर तीर्थ स्थान पूजनीय होता है। कल्याणक स्थली को लेकर विभिन्न मत हो सकते है पर आराधना तो एक ही होती है। आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने अपने निर्वाण भक्ति में लिखा है भारतवर्ष के विदेह क्षेत्र में कुण्डपुर ग्राम में भगवान महावीर का जन्म स्थान है। अब कुण्डलपुर विदेह क्षेत्र में है उस हिस्से को जानना चाहिए।
विश्व शांति, आनंदमयी विश्व के लिए शाकाहार जरूरी
मानवता की रक्षा करना मानव का धर्म है। पर मानवता को समझना चाहिए। प्राणी मात्र की रक्षा करना मानवता है। एक इन्द्रिय से लेकर पांच इन्द्रिय जीवों के प्रति सद्भावना रहे यही मानवता की पहचान है। कोरोना जैसे बीमारी से सबसे ज्यादा कोई पीड़ित हुए वह मांसाहारी लोग हुए है। और यह फैला भी मांसाहार से है। अगर विश्व शांति, विश्व मैत्री, विश्व को आनंदमय देखना चाहते है तो शाकाहार स्वीकार करना चाहिए। जिनका हृदय क्रूरता से ओत-प्रोत है वही मांस खाते है। जीव रक्षा ही श्रेष्ठ धर्म है।
इस प्रकार आचार्य भगवन श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने हमारे साक्षात्कार में कई महत्वपूर्ण सवालों का जवाब दिया, जिन्होंने इस संकट काल में भी मंगल यात्रा को सफल बनाया है यह बहुत ही प्रशंसनीय , प्रेणादायक रहा है। इन्होंने आत्मसंयम और धैर्य का काफी परिचय दिया।
– प्रवीण जैन (पटना)