गुणीजनों को देख हृदय में, मेरे प्रेम उमड़ आवे।
बने जहाँ तक उनकी सेवा, करके यह मन सुख पावे॥
होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे।
गुण ग्रहण का भाव रहे नित, दृष्टि न दोषों पर जावे॥
जब दो संत मिलते हैं, तो सहस्त्र रोम खिलते हैं, ऐसे दृश्य देखकर कर्मों के बंधन भी हिलते हैं , -आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी एवं मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज के मध्य वात्सल्य मिलन
आज 17-10-2021- आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज जी के आहार का सोभाग्य श्री मान दीपक जी बड़जात्या दुर्ग के चोके में गुणायतन में समपन्न हुए