यदि असाता का उदय है, तब कोई झाड़ा – फूंकी काम में आनेवाली नहीं , पर तुम कितने चबूतरों के चक्कर काट आते हो ? – आचार्य विशुद्ध सागर जी

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तू अनादिकाल से मोहरूपी मदिरा का पान कर रहा है । कुट रहा है , पिट रहा है , फिर भी वहीं पहुँच जाता है । देखो , यह वास्तविकता है ।
आपके बेटे कभी – कभी क्या – क्या नहीं बोल देते हैं । फिर सोचता है कि , हे भगवान् ! इससे अच्छा है कि नरक में चला जाता । और जैसे ही बेटे ने चरण छू लिए पिताजी के , वैसे ही पिताजी को स्वर्ग दिखने लगा । यह तुम्हारी दशा है ।
भो मुमुक्षु आत्माओ ! एकलाख परस्त्रियों का सेवन एकसाथ कोई जीव करे , उससे जितने पापका आस्रव होगा उससे चार गुना पाप का आस्रव एक बार मिथ्यात्व को नमस्कार करने में होगा । 💯
तत्त्व को समझो , एकलाख वेश्यावृत्ति से जो पाप का बंध होता है , ऐसे पाप का बंध एक बार के मिथ्यात्व को सिर टेकने में होता है । पूछो अपनी आत्मा से ।
तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी की शरण में आप विराजते हैं , लेकिन आपको पार्श्वनाथ पर विश्वास नहीं है । महाराज श्री ! हम लोग रोज पूजा करते हैं । पर आपको श्रद्धा नहीं है । बेटे को जरा – सी फुसी हो जाती है तो पत्नी कहती है- झड़ा लाओ , फँका लाओ , भभूत लगा लाओ ।
अहो भगवान् – आत्माओ ! क्या तुम को कर्मसिद्धान्त पर विश्वास नहीं है ? यदि असाता का उदय है , तब कोई झाड़ा – फूंकी भी काम में आनेवाली नहीं है । पर एक क्षण में तुम कहाँ – कहाँ जाने का सोचलेते हो , कितने चबूतरों के चक्कर काटकर आ जाते हो ?
:-आचार्य रत्न विशुद्ध सागर जी महाराज