18 जनवरी 2024 / पौष शुक्ल अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
॰ प्राचीन तीर्थ की रक्षा के साथ नवीन की रचना करो
॰ बाहर के साथ, भीतर की सफाई भी जरूरी
॰ सरोवर में नहीं, जिनवाणी में डुबकी लगाओ
॰ वृक्ष से फल के समान टैक्स ले सरकार, काटने की कोशिश न करें
‘पंचकल्याणक में भगवान को देखने आना, कैसे पाषाण भगवान बनते हैं, वहां आकर गैरों को देखना, मिठाई के डिब्बे में खटाई के समान है। यानि बाहर कुछ, भीतर कुछ। पूर्व भव में अच्छे पुण्य संचय से उच्च कुल, उच्च परिणाम मिलते हैं, पर तब भी परिणाम प्रशस्त न हो, तो समझ लेना आपके मिठाई के डिब्बे में खटाई है। जिसको अपने शरीर की शक्ति बचानी हो, उसे खटाई से बचना चाहिए। यह खटाई मार्बल तक को नष्ट कर सकती है, तो ऐसी खटाई तुम्हारे परिणाम और दृष्टि को नष्ट क्यों नहीं कर सकती? जरूर कर सकती है।’ यह कहते हुए आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी ने धारूहेड़ा पंचकल्याणक के जन्म कल्याणक के अवसर पर धर्मसभा में खटाई – खटास – खट्टा को जीवन से, व्यवहार से, खान-पान से दूर रखने का उद्घोष किया।
दिल्ली में आचार्य श्री द्वारा नौकरों से तीन काम – अरिहंत की पूजा, निर्ग्रन्थ को दान और नौकर से संतान, न कराने का सफल जीवन सूत्र दिया था, उसी कड़ी में यहां भी अपने सफल सूत्रों की कड़ी में ‘खटास’ पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि खटाई खाने, खट्टी बातों और खट्टे लोगों से सदा बचना चाहिए। खटाई का नाम लेने से ही जब दांत खट्टे हो जाते हैं, यहां कि सुनने वालों को भी, तब खट्टे का व्यवहार व संबंध, खटास ही लाता है।
कषाय की अनंतानुबंधी मत बनने देना, 6 माह से पहले ही गांठ खोल देना, वरना नरक-तिर्यंच गति के रास्ते स्वत: खुल जाते हैं। सान्ध्य महालक्ष्मी की नये तीर्थ के पंचकल्याणक के साथ पुराने तीर्थ के संरक्षण की अपील का स्वागत करते हुये आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी ने कहा कि सम्यग्दृष्टि जीव पुराने को सम्हालते, नये को बनाता है, वो भविष्य में भगवान बनता है। प्राचीन तीर्थ की रक्षा के साथ नवीन की रचना करो। नयों को प्रोत्साहन दो, पुरानों को सम्हालो।
उत्तर भारत की कड़ाके की ठण्ड में हो रहे पंचकल्याणक में उत्साहपूर्वक आये श्रावकों को प्रोत्साहित करते हुये कहा कि भूख-ठण्ड तो उनको लगती है, जिनको भगवान की भक्ति में आनंद नहीं आता। अपने तन को कितना गढ़ लो, चमका लो, पर साफ नहीं होता। वर्तमान को इतना अच्छा कर लो, कि भूत की गंदगी समाप्त हो जाये। जैनियों पर अंगुली उठाने वालों को अपने अंदर झांकना चाहिये।
सरोवर की डुबकियां भगवान नहीं बनाती। श्री कृष्ण ने कहा है – नदी-तालाबों में डुबकी लगाने से काम नहीं होगा। संयम-तप के साथ जिनवाणी में डुबकी लगाओ। जैसे ऊर्वरा भूमि में एक बीज अनेक बीज बना देता है और चट्टान पर पड़ा बीज नष्ट हो जाता है, उसी तरह दान भी दो, स्थान देखकर दो। योगियों के हाथ में दिया गया दान, कल्याण करेगा, किसी दुष्ट को दिया गया दान, नाश कर देगा।
जो लोग गुरु संतों के पास जाकर अनर्गल बातों से समय बर्बाद करते हैं, उनको सचेत करते हुए कहा कि गुरुओं का समय ज्यादा मत लो, उन्हें जिनवाणी में लगे रहने दो। उसी तरह विद्वानों को मत सताओ, वह खुश रहेगा तो बहुत कुछ ज्ञान दे पाएगा।
नीति शास्त्र कहता है कि जैसे वृक्ष से फल लो, पर ज्यादा के चक्कर में वृक्ष मत काटों, उसी तरह सरकार को उतना ही टैक्स लेना चाहिए, जिससे कि वह अगली बार खुशी-खुशी से दे, चोरी की भावना ना आये।
धारुहेड़ा पंचकल्याणक में माता-पिता अरूण जैन श्रीमति सिम्मी जैन – दरियागंज, सौधर्म इंद्र : शॅकी जैन – आँचल जैन – भोलानाथ नगर , धनपति कुबेर अनिल जैन – उर्मिल जैन – कनाडा, महायज्ञ नायक – अभय जैन – सुनीता जैन – प्रीत विहार दिल्ली, सानत कुमार इंद्र अजय जैन – आशा जैन – विवेकानंदपुरी, माहेंद्र इंद्र पवन जैन गोधा – प्रीति जैन गोधा – शक्तिनगर, ब्रह्म इंद्र राजेश जैन – मोनिका जैन वर्धमान ज्वैलर्स पश्चिम विहार, ब्रह्मोत्तर इंद्र अशोक जैन – मनीषा जैन – जयंती परिवार अलवर, लांतव इंद्र धरेन्द्र जैन -अंजू जैन – निर्माण विहार, कपिष्ठ इंद्र नीरज जैन -रुची जैन गुरुग्राम, शुक्र इंद्र प्रकाश बोहरा – मैना बोहरा – (किशनगढ), महाशुक्र इंद्र सुरेश जैन बोहरा – सरिता जैन – गगन विहार को सौभाग्य प्राप्त हुआ। विधिनायक प्रतिमा अजय जैन परिवार 114 ऋषभ विहार ने पुण्यार्जन किया। शिखर स्वर्ण कलश प्रदाता : राकेश जैन – लोटस परिवार – प्रीत विहार, शिखर स्वर्ण ध्वजा प्रदाता : अजय जैन – आशा जैन परिवार – विवेकानंदपुरी, श्री शांतिनाथ सहस्त्रकूट जिनालय के मुख्य द्वार प्रदाता : श्री लाला महावीर प्रसाद संजीव जैन – उमराव सिंह ज्वैलर्स परिवार भोगल रहे। पंचकल्याणक भव्यता से सम्पन्न हुआ। प्रतिष्ठाचार्य पंडित श्री नरेश जैन कांसल हस्तिनापुर ने सभी मांगलिक क्रियाएं कुशलता से पूर्ण कराई। श्री प्रद्युम्न जैन प्रमुख ट्रस्टी ने सभी व्यवस्थायें सुचारू रूप से बनाई तथा पंचकल्याणक को अद्वितीय रूप से सम्पन्न कराया।