इतिहास की वो बात जो बताई ही नहीं जाती – -स्वामी विवेकानंद जी को आज पूरी दुनिया जानती है, पर जिनके लिए उससे ज्यादा तालियां पीटी गई, उनको कोई नहीं, ऐसा क्यों?

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21 फरवरी 2023/ फाल्गुन शुक्ल एकम/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जानिए एक जैन रत्न की सचाई जो खुद शायदआज जैन समाज भी नही जानता।
विवेकानंद जयंती देश भर में धूम धाम से मनाई जाती है और मनानी भी चाहिए क्योकि विवेकानंद जी सन्मानित व्यक्ति है। विवेकानंद जी को ख्याति मिलीआज से 130 वर्ष पूर्व हुए विश्व धर्म संमेलन से ।

पर क्या आप जानते है की उस विश्व धर्म संमेलन में जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किसने किया था ??
वीर चन्द रागव जी गांधी ने विश्व धर्म संमेलन में जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था ।
इन्होंने जिस ढंग से जैन धर्म के विषय में उस सम्मेलन में जैन धर्म की बात रखी और व्याख्या की उस पर उस सम्मेलन में दुनिया भर के लोगो ने सबसे ज्यादा तालिया बजाकर उनको सम्मानित किया था ।

शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में यूएसए और अमेरिका के पश्चिम में 11 सितंबर 1893 को पहली बार लोगों ने प्राचीन भारत के दृढ़, उत्साही, प्रतिध्वनित स्वर और भारतीय दर्शन और संस्कृति का संदेश सुना। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले दो भारतीय प्रतिनिधियों ने भारत की आध्यात्मिक धरोहर को जगाया और पश्चिमी दुनिया में प्रवेश किया।
इनमें से एक स्वामी विवेकानंद थे जिनकी शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में सफलता आज हर किसी की याद में ताजा है। लेकिन उसी सम्मेलन में अन्य भारतीय जैन धर्म के प्रतिनिधि, वीरचंद राघव जैन गांधी भी थे , जिन्होंने सम्मेलन में अपने भाषण से धाक जमाई थी और भारत के वैभव का जोरदार प्रदर्शन किया था ।

शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन के लिए मूल निमंत्रण जैन आचार्य विजयानंदसूरिजी (आत्मारामजी) महाराज को भेजा गया था, लेकिन चूंकि वे जैन आचार संहिता के उल्लंघन के कारण विदेश यात्रा नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने जैन दर्शन के प्रख्यात विद्वान् वीरचंद जैन गांधी को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा था।
जैन धर्म पर वीरचंद राघवजी गांधी के व्याख्यानों की खास बात यह थी कि उन्होंने उस जैन विचारधारा को प्रदर्शित किया जो जीवन में अहिंसा और विचारों में अनेकांत का अभ्यास करती है।
ये इतिहास की वो बातें हैं जो बताई ही नहीं जातीं ।

यह दुखद है की जैन दुनिया में संख्या के आधार पर कम थे और भारत की मीडिया ने उस सम्मेलन की व्याख्या सही तरीके से नही की और जैन रत्न वीर चंद जी को उस समय उचित तरीके से देश के सामने प्रस्तुत नही किया
पर दुनिया भर के बुद्धिजीवियो ने जैन धर्म के इस रत्न की तारीफ की थी।

अगर भारत में भी उस वक्त मीडिया और जनता ने सही मायनो में उनको सन्मानित किया होता तो विवेकानंद जी की तरह हमारे जैन रत्न वीर चंद जी की भी सन्मान के साथ हमारे देश में जयंती मनाई जाती ।
पर दुःख की बात तो यह है की जैन समाज भी उस व्यक्ति के बारे में कभी भी नही बोलता और आज का 98% जैन लोग तो उनका नाम भी नहीं जानते । खैर हमारे आँख मूंद लेने से सच्चाई नही बदलेगी उस समय के दुनिया भर के बुद्धिजीवी इस सच के गवाह है की उस विश्व धर्म संमेलन में जैन धर्म का डंका श्री वीर चंद जी ने सबसे तेज और जोरदार बजाते हुए जैन धर्म को सर्व श्रेष्ठ साबित किया था।
जैन धर्म का लोहा उस जैन रत्न पुरुष वीर चन्द जी ने पूरी दुनिया को मनवाया था जो एक अटल सत्य है ।
ऐसे जैन रत्न का बार बार वंदन।