मुनि श्री विराट सागर जी महाराज की मातृभूमि पर भाव अगवानी पर नगर वासियो ने पलक बिछाकर की आगवानी

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जननी जनभूमि से सबसे बड़ा प्रेम है जिसे मे महसूस करता हु विराट सागर जी महाराज

हाटपिपलिया  18 फरवरी मध्यांन बेला हाटपिपलिया नगरी धन्य हो गयी असंभव को संभव करने वाले मुनि श्री संभव सागर जी महाराज संघ की भव्य अभूतपूर्व आगवानी हुई वही संघ में नगर गौरव विराट सागर जी महाराज की भी मुनि बनने की बाद प्रथम बार नगर आगमन हुआ नगर वसियो ने पलक फावड़े बिछाकर नगर में अभूतपूर्व आगवानी की हर कोई कोई गदगद दिखाई दे रहा था। सम्पूर्ण नगर दुल्हन की तरह सजा था मुनि संघ को जिनमंदिर लाया गया। जहां पर सर्वप्रथम ज्ञानोदय पाठशाला के बच्चो द्वारा अभूतपूर्व मंगलाचरण की प्रस्तुति दी। इस पुनीत प्रसंग पर अपना उदबोधन देते हुए मुनि श्री भाव विभोर हो गए। मुनि श्री ने कहा जननी जनभूमि स्वर्गादपि गरियसी उन्होंने कहा जननी जन्मभूमि से मुझे  सबसे बड़ा प्रेम है।जिसे मे महूसस करता हु मेरी जनभूमि का मुझ पर बड़ा उपकार है।उन्होंने मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज को ऋणी माना।उन्होंने कहा  इस धर्म मार्ग पर मुझे आरूढ़ किया वह मेरी माँ लेकिन वह अब नही है। मौजूद समुदाय भावुक हो उठा।

उन्होंने कहा बरसो से मेरी और आपकी प्रतीक्षा दी मैं यहाँ अपनी जन्मभूमि पर लौटकर आऊ। जहां का अन्न पानी खाकर मे बड़ा हुआ। इस धर्म मार्ग पर आरूढ़ मे अकेला नही चला इस मार्ग मे कही लोग सहायक है। उन्हीं का इस जन्मभूमि का मै सदा सदा ऋणी रहूँगा। उन्होंने भाव भीने शब्दों से कहा  मेरी दादी जिनके संस्कार और मेरे परिवार का उपकार जिन्होंने मुझे सींचा और धर्म मार्ग पर आरूढ़ किया सदा सदा ऋणी रहूँगा। 4 जुलाई 2004 घटनाक्रम ऐसा घटा जो मुझे इस मुकाम तक ले आया। उन्होंने कहा आदिनाथ भगवान और पार्शवनाथ भगवान की दुआ का प्रसाद है जो मुझे मुनि जीवन का स्वर्णिम अवसर मिला।

मुनि श्री ने कहा  अपने जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि मैं आभारी हूं इस नगर औरर यहां के लाेगाें का और  सभी समाजजनाें का जिन्हाेंने मुझे यह सम्मान दिया है। मैं अभिभूत हूं नगर के सभी सामाजिक लाेगाें का। इस नगर में अटूट प्रेम है। यहां न किसी प्रकार का कोई झगड़ा औरर न कोई विवाद है। मैं आभारी हूं मेरे माता-पिता, परिजनों औरर इष्टजनों का जिन्होंने मुझे यह जीवन दिया। हाटपिपल्या की भूमि धर्म की स्थापना करने वाली भूमि है। हाटपिपल्या के लाेग बड़े धार्मिक हैं, यहां सभी धर्म का समान रूप से सम्मान हाेता है।

अंत मे उन्होंने कहा मेरे अपने कर्मो का क्षय हो और समाधिमरण हो और सिद्ध पद की प्राप्ती कर सिद्धालय मे विराजमान हो जाऊं। आप सभी मेरे इस मार्ग में सहायक बने।

अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमडी की रिपोर्ट