सान्ध्य महालक्ष्मी / 18 सितंबर 2021
‘बैरं करेदि छत्तीसीं, मित्ती तेसट्ठ सया करेदि’। बैर के कारण जब दो व्यक्तियों में परस्पर विसम्वाद तनाव विरोध हो जाता है, तो वह 36 की स्थिति पर ला देता है और मैत्री 36 की दिशा को बदलकर 63 यानि प्रेम भाव, आनंद-खुशी – हर्षभाव को उत्पन्न कर देता है। मेरी भी सदैव यही भावना रहती है कि सारा संसार 63 के रूप में नजर आयें।
जब किसी के बीच 36 की स्थिति बन जाये तो समझना मंगल भी दंगल (झगड़े) में बदल जाता है, ऐसे दिनों में समझना चाहिए कि अब लक्ष्मी – क्षमा – शांति – बुद्धि – श्री आदि आदि देवियों के प्रस्थान का समय आ गया है। और 63 की स्थिति में व्यक्ति की ताकत दूनी हो जाती है, यानि दो भी 200, 2000 या 200000 के बराबर हो जाते हैं, इसी ताकत के बल पर तो राम-लक्ष्मण ने त्रिखम्डी रावण को जीता था।
बंधुओ! धन्य है हमारा जैन धर्म, गौरव है कि हमारे जीवन में एक दिन ऐसा आता है कि हमें सालभर की गंदगी साफ करने का मौका मिलता है। मनुष्य हैं तो कषाय-बैर विरोध हो सकता है, लेकिन उसे सदा बनाए रखना अच्छा नहीं है। बुद्धिमान समझतार व्यक्ति जैसे घर के कचरे को प्रतिदिन निकालते रहते हैं, क्योंकि झाड़ू लगती रहती है, तो घर साफ रहता है। यदि एक दिन भी धुले कपड़े न पहनो तो व्यक्ति बोलना तो दूर पास में बैठना भी पसंद नहीं करता, यानि उसका आदर-सम्मान कम हो जाता है। लेकिन घर-कपड़े – बर्तन आदि की सफाई के साथ मन को भी साफ रखें।
साधुजन सदैव तीर्थंकर की वाणी का पालन करते हुए प्रतिदिन खम्मामी सव्व जीवाणं की प्रार्थना करते हैं, अत: साधुओं की प्रतिदिन क्षमावाणी होती है। किसी ने कहा क्षमावाणी में नहीं हृदय से होना चाहिए? मैंने कहा – वाणी रूपी सुई के बिना हृदय का कांटा नहीं निकलता। वाणी में क्षमा आ जाए, तो निश्चित ही एक दिन हृदय में भी क्षमा आ जाएगी।