बिजली के बल्ब पर णमोकार मंत्र – हुनर उम्र की मोहताज नहीं होती- 70 साल के बुजुर्ग विमल चंद्र जैन ने साबित कर दिखाया

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हुनर उम्र की मोहताज नहीं होती है. ये साबित कर दिखाया है मध्य प्रदेश के ग्वालियर के 70 साल के बुजुर्ग विमल चंद्र जैन ने, जिन्होंने ढलती उम्र के बावजूद भी बिजली के बल्ब पर छेनी हथौड़ी से नक्काशी बनाने का हुनर दिखाया है. बिना चश्मे के बल्ब पर किए जाने वाले इनके हुनर को देख लोग दांतों तले अंगुलियां दबाने पर मजबूर हो जाते हैं. दानाओली निवासी जैन 15 साल की उम्र से स्टील और पीतल के बर्तनों पर नाम लिखने लगे. काम के दौरान उनकी तमन्ना थी कि कुछ नया किया जाए. बर्तनों पर नाम लिखने के बाद विमल चन्द्र ने शील्ड और ट्रॉफियों पर नाम लिखना शुरू किया.

कांच पर लिखते हैं नाम
विमल चन्द्र बताते हैं कि वे मोबाइल की स्क्रीन और घड़ी के कांच पर भी कई लोगों के नाम लिखे हैं. धीरे-धीरे उनके इस आर्ट को प्रदेश और देश मे पहचान मिल गई. विमल जैन के बनाई हुई कलात्मक सामानों की प्रदर्शनी देशभर में लग चुकी है. कलकत्ता, मुंबई, दिल्ली, जयपुर, उदयपुर, राजकोट आदि कई शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले विमल जैन को सैंकड़ों ट्रॉफियां, मेडल और सम्मान पत्र मिल चुके हैं.

15 साल की उम्र में शुरू हुआ ये सफर
विमल चंद्र जैन दानोली इलाके में रहते हैं। उनका कहना है कि इसकी शुरुआत 15 साल की उम्र में हुई थी। तभी उन्होंने बाजार में बर्तन की दुकानों पर काम करना शुरू किया। लगभग 55 साल पहले तब मशीनें नहीं थीं। बर्तनों पर नाम और पते लिखने की प्रथा थी, इसलिए इन नक्काशी और हस्तलेखन को छेनी और हथौड़ों की मदद से लिखा जाता था। 55 साल पहले अगर आपके हाथ में छेनी का हथौड़ा था तो आज तक आप उससे छुटकारा नहीं पा सकते थे। पहले कांस्य, फिर तांबे और फिर स्टील के बर्तनों से यात्रा अब बल्ब की बारीक कांच की नक्काशी तक पहुंच गई है।

विमल चन्द्र ने अपने हुनर को निखारा और इसके बाद पत्थर, अष्टधातु और ग्रेनाइट पर लिखना शुरू किया. इसके बाद उनका सपना कांच पर नक्काशी का था. उन्होने कांच पर नक्काशी का प्रयास किया तो मोटे कांच का यूज किया है, लेकिन इस पर जैसे ही नक्काशी बनाने की शुरुआत की तो वह टूट गया. इसके बाद उन्होंने निरंतर प्रयास किया, जिसके बाद उन्हेें सफलता मिल गई. अब विमल जैन बिजली के बल्ब पर णमोकार मंत्र सहित अन्य इबारतें लिख देते हैं. वह बताते हैं कि कांच के बल्ब पर सबसे पहले नमोकार मंत्र लिखने में सफलता मिली. इसके बाद वह इस पर नाम सहित लोगों की डिमांड के मुताबिक इस पर नक्काशी करने लगे.

पहले मोटे फिर महीन कांच पर काम किया जाता है
विमल चंद्र जैन कहते हैं, शुरुआत में जब उन्होंने कांच पर नक्काशी करने की कोशिश की, तो उन्होंने पहले मोटे कांच का इस्तेमाल किया, लेकिन जैसे ही उन्होंने कांच पर छेनी रखी और हथौड़े से वार किया, कांच टूट गया। इसके बाद उन्होंने लगातार प्रयास किया और सफलता हासिल की। धीरे-धीरे उनकी इस कला की मांग शहर के साथ-साथ देश के अन्य शहरों में भी होने लगी। उनकी बनाई इस कला को पूरे देश में प्रदर्शित किया गया है। अब तक कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, जयपुर, उदयपुर, राजकोट समेत कई शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन कर उन्हें सम्मान मिल चुका है.

मोबाइल स्क्रीन पर भी नक्काशी की गई है
उनका प्रयास कुछ नया करने का था, इसलिए उन्होंने बर्तनों पर नाम लिखकर शील्ड और ट्राफियों पर नाम लिखना शुरू कर दिया। साथ ही उन्होंने पत्थर, अष्टधातु और ग्रेनाइट पर लिखना शुरू किया। विमल चंद्र बताते हैं कि जब उन्हें पहले कांच के बल्ब पर णमोकार मंत्र लिखने में सफलता मिली, उसके बाद उन्होंने नाम सहित लोगों की मांग के अनुसार इसे तराशना शुरू किया। साथ ही उन्होंने मोबाइल की स्क्रीन और घड़ी के शीशे पर कई लोगों के नाम लिखे हैं।
परिवार और समाज के लोग उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हैं।

विमल चंद्र जैन के परिवार में पत्नी विजया, पुत्र गोलू उर्फ नितिन जैन, बहू वंदना, पौत्र रूहान्स (3 वर्ष) हैं। ससुर के इस हुनर पर उनकी बहू वंदना जैन भी काफी खुश हैं. वंदना कहती हैं कि पापा ने उनकी चूड़ियां भी खुदी हैं। वहीं, पड़ोस में रहने वाले सचिन का कहना है कि वह विमल चंद जैन उर्फ बाबूजी से कई सालों से जुड़े हुए हैं। उनका हुनर भी उभरता हुआ नजर आया है। सचिन का कहना है कि विमल चंद्र जैन के इस हुनर का पूरा जैन समाज सम्मान करता है. देश के बड़े शहरों में उनकी कला को देखकर उन्हें मेडल, शील्ड और ट्राफियां मिली हैं।