॰ आचार्य श्री विमद सागरजी के बड़े भाई दबाव में पलटे
॰ आत्महत्या के लिये क्या मजबूर और प्रताड़ित किया गया
॰ EXCLUSIVE बात SHO व सेवादार से
॰ अचानक उसी शाम का जबरन विहार के पीछे क्या कारण था?
॰ अगर कोई गलती हुई भी तो इतनी बड़ी सजा क्यों?
॰ प्रायश्चित की बजाय प्रताड़ना का अधिकार किसने दिया?
सान्ध्य महालक्ष्मी / 03 नवंबर 2021
शीर्षक पढ़ कर चौक जरूर जाएंगे, क्योंकि कोई समाज ऐसा नहीं कर सकता, सपने में भी नहीं सोच सकता, पर आगे बढ़ने से पहले चिंतन कीजिए – क्यों हमारे त्यागी, तपस्वी, पूरे समाज और देश को सही दिशा देने वाली हजारों-लाखों का कल्याण करने वाले हमारे पूजनीय, वंदनीय संत, जो सबको बताते हैं कि जीवन में दुख-कष्ट आते हैं, पर आत्महत्या का मार्ग कभी नहीं अपनाना, और वहीं उस कदम को उठाने को मजबूर हो जाये, जिनके पास ना पैसे की टेंशन, न परिवार का, फिर कौन उनको इतना प्रताड़ित कर देता है। पिछले 3 साल से इस पर सान्ध्य महालक्ष्मी काफी बारीक नजर रखे हुये हैं और ऐसी 6 दुखद घटनायें हो चुकी हैं, 30 अक्टूबर 2018 को भागलपुर (बिहार) में मुनि श्री विप्रणन सागरजी से 30 अक्टूबर 2021 तक आचार्य श्री विमद सागरजी (इन्दौर) तक।
पहले आपको बताते हैं श्री संतोष जैन जी, आचार्य श्री के गृहस्थ अवस्था के बढ़े भाई जो सागर में रहते हैं, जो अपने भाई को जन्म से जानते हैं। उन्होंने आचार्य श्री के बारे में कई बातें बतार्इं। बचपन में साइकिल से गिरने से हाथ की हड्डी टूट गई थी, फिर वहां से हड्डी इतनी बढ़ी कि हाथ ऊपर ही नहीं उठता, तो 12 फुट ऊंची छत पर एक हाथ से फांसी का फंदा कैसे बना सकते हैं। दूसरी बात कही कि उनका एक तरफ किसी परम्परा को लेकर विरोध करने वाले भी थे। पर इन्हीं संतोषजी ने 31 अक्टूबर को कई आरोप लगाये और फिर एक नवंबर को थाने में चिट्ठी दे अपनी बातों से यू-टर्न ले लिया। हमने उनसे काफी सम्पर्क करने की कोशिश की, पर वे शायद किसी के दबाव में दिखे। इस चिट्ठी में लिखा है –
‘इन्दौर पहुंचने के तुरंत बाद, घटना की पूर्ण जानकारी किये बिना, लोगों-परिजनों से चर्चा किये बिना, छोटे भाई के प्रति अधिक वात्सल्य होने के कारण, उत्तेजना में मेरे द्वारा, घटना के संबंध में, कुछ शंकायें जताई गई थी। मैंने उनकी जांच की मांग की थी। (इसके बाद जो लिखो वो काफी हैरानगी वाला और संशय खड़ा करने वाला है) साधु संत अपनी तपस्या के दौरान कई मंत्रों आदि का जाप, अनुष्ठान करते रहते हैं, जिससे देवी-देवता प्रकट होते हैं, मंत्रोच्चार करने वाले पर हावी हो जाते हैं। हो सकता है कि ऐसा ही कुछ हुआ है। लोगों से सम्पर्क करने- मिलने पर घटना के संबंध में मुझे जानकारी मिली, जिससे में घटना से अवगत हुआ (उनका यह कहना एक नये तथ्य को उजागर करता है, जो अब तक ज्यादातर को नहीं मालूम था, कौन हैं वो लोग?) उन्होंने आगे लिखा कि स्थानीय पुलिस प्रशासन की छानबीन से मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं। घर आने पर बड़े-बूढ़ों से चर्चा के बाद मुझे इंदौर के किसी व्यक्ति या संस्था पर कोई शक नहीं है। मेरे गृहस्थ आश्रम के छोटे भाई आचार्य विमद सागर की मृत्यु के संबंध में मुझे एवं मेरे परिवार को कोई शक नहीं है। आगे हम कोई जांच नहीं चाहते।’
उनका आगे जांच ना चाहना, क्या फाइल को ‘सुसाइड’ लिख कर बंद करने के रास्ते में एक दस्तावेज बन जाएगा। इस बात की हमें बहुत चिंता थी। क्या पिछली 5 दुर्घटनाओं की तरह, यह भी वैसे ही समाप्त और आगे के लिये विराम नहीं। सान्ध्य महालक्ष्मी ने इस बारे में डीएसपी निहित उपाध्याय और परदेशी पुरा के थाना प्रभारी से सीधी बात की, जिन्होंने निष्पक्ष जांच का पूरा आश्वासन दिया और स्पष्ट कहा कि किसी के लैटर देने या वापस लेने से कोई असर नहीं पड़ता। यह एक संत का मामला है और जांच पूरी निष्पक्ष होगी।
तीन दिन में अब तक कहा पुहंचे हैं, तो उनका जवाब था, अभी कुछ नहीं मिला और पूरी जानकारी जांच के बाद दे सकेंगे, पोस्टमार्टम की भी अभी रिपोर्ट उनके पास नहीं आई है। (इस पूरी बातचीत को आप चैनल महालक्ष्मी के 03 नवंबर को जारी 773वें एपिसोड में सुन सकते हैं)।
पर यहां इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस द्वारा निष्पक्ष दावे खूब होते हैं, पर फाइलें भी जल्द बंद कर दी जाती हैं।
आखिर उस दिन हुआ क्या था? दोपहर 12 बजे से सायं 5 बजे तक ऐसा क्या हुआ? इस बारे में उनके साथ जुड़े रहे 39 वर्षीय सेवादर अनिल से सान्ध्य महालक्ष्मी ने एक्स्लूजिव बात की और उसने दोपहर 12 से सायं 5 बजे तक का सिलसिलेवार घटनाक्रम बताया और संशय की अंगुली 12 से पौने दो बजे के बीच के घटनाक्रम पर उठ जाती है, उस बीच कौन-कौन आये, क्या-क्या बात हुई।
सेवादार अनिल ने बताया कि 30 तारीख को 12 बजे तक सब क्रियायें हो गई तब समाजके अध्यक्ष शीतल प्रसाद जैन जी और 2-3 लोग धोती-दुपट्टे में आचार्य श्री के पास आये, शायद वे दूसरे महाराज को छोड़ने आये थे। मैं वहां से चला गया, वो 10-15 मिनट महाराज जी से बात करते रहे। सवा बारह बजे आचार्य श्री सामायिक में बैठ गये। और मैं अपने कमरे में सो गया। पौने दो बजे आचार्य श्री मेरे कमरे में आये और पूछा किसी का फोन तो नहीं आया। मेरे मना करने पर उन्होंने 2-3 फोन लगाने को कहा। उसके बाद आचार्य श्री ने कहा कि आज शाम 4 बजे या कल सुबह यहां से विहार करना है। उसके बाद आचार्य श्री मुझे अपने कपड़े धोने को कहकर कमरे में चले गये, कमरा बंद कर लिया। ढाई बजे स्थानीय समाज के 10-15 लोग आये, वे विहार कराने आये थे। (यानि अचानक विहार, क्या जबरन हो रहा था या कारण कुछ और था?) तब मैंने आचार्य श्री के 20 साल से खास भक्त संतोष जी, उज्जैन को फोन किया कि आप आ जाओ। 10 मिनट में वो आ गये। उन्होंने समाज के लोगों से कहा कि आपको कल महाराजजी नहीं दिखेंगे, हम विहार करा देंगे। महाराज का दरवाजा तब भी बंद रहा। स्वाध्याय के लिए 4 बजे भी नहीं खुला। तब संतोषजी भी चले गये। पांच बजे हमें चैन नहीं हुआ, हमने चार कुर्सी रखी, उस पर समाज के एक व्यक्ति ने देखा और बोला – यह तो काम हो गया। तब क्षुल्लकजी की सहायता से जाली से कुंडी खोली, क्योंकि दरवाजा तोड़ने में दो घंटे लग जाते। महाराज लटके हुये थे, और नाक से खून आ रहा था।
उसकी इस बात से कई सवाल उभरते हैं,
12 बजे अध्यक्ष महोदय से 10-15 मिनट क्या चर्चा हुई?
अचानक शाम को ही विहार करने के लिये महाराज ने क्यों कहा?
समाज क्या उनका जबरन विहार करवाना चाहता था?
महाराज जी ने 20 साल से खास भक्त को तुरंत क्यों बुलाया?
खास भक्त ने आते ही समाज से क्यों कहा कि महाराज का विहार करा देंगें, कल आपको नहीं दिखेंगें ?
अचानक विहार कराने के पीछे क्या कारण था?
कौन-सी गलती पर लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था?
इन सबके जवाब इस पूरे घटनाक्रम से पर्दा उठा सकते हैं। पर सच बोलेगा कौन? शायद यह किसी में हिम्मत नहीं, क्योंकि हम खुलासा नहीं, दबाना चाहते हैं।
पिछले 23 साल के दीक्षा जीवन में जिसके चारित्र पर आज तक अंगुली नहीं उठी, न कोई धाम के लफड़े में, न किसी और चक्कर में। एक दिन उपवास, एक दिन आहार करने वाले, लेखन व प्रवचन में गजब की महारथ, इस बारे में कुछ चातुर्मास स्थलों पर लोगों से बातचीत भी की, हर जगह उनकी प्रशंसा ही मिली और यही कारण था कि उनके अंतिम संस्कार में 30-35 फीसदी स्थानीय लोग और 60-70 फीसदी बाहर से आये, जहां – जहां उनके चातुर्मास हुये। किस गलती पर वे प्रताड़ित हो रहे थे, इनका संकेत उनके पिछले कुछ दिनों के नेगेटिव मुक्तक भी संकेत दे रहे थे। ऐसी क्या गलती थी, संत की गलती के लिये प्रायश्चित लिया जाता है, गुरुवर को बताया जाता है, पर यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ, संत को इतना प्रताड़ित कर दो कि वह ऐसा कदम उठाने को मजबूर हो जाये, समाज में कितने भी ऊंचे पद पर कोई भी, क्यों न हो, उसे न कोई कानून अनुमति देता है, न कोई आगम का ग्रंथ।
यह आत्महत्या नहीं, हत्या है, समाज ने की है हत्या? यह खुलासा कर रहे हैं एक साथ बढ़े, स्कूल से उनके साथ रहे, और अभी बासवाड़ा में चातुर्मास कर रहे आचार्य श्री विभव सागरजी। वे भी शाहगढ़, सागर के हैं, एक ही स्कूल में पढ़े, एक साथ 14 दिसंबर 1998 को दीक्षित हुए। उन्होंने जो कहा वह पूरी तरह स्तब्ध करने वाला है। बिना आग के धुआं नहीं निकलता, उनका स्पष्ट कहना है कि यह आत्महत्या नहीं, समाज द्वारा संत की गई हत्या है।
आचार्य श्री विमव सागरजी ने कहा कि तुम्हारी दो रोटियों का भुगतान उसकी विशुद्धि नष्ट करके, उसके प्राण लेकर, संकलेश्ता में डुबो दो, आज मोबाइल उपकरण के रूप में मिला था, पर उसे हथियार बना दिया। साधु समाज के भीतर सुरक्षित नहीं है, वरिष्ठ-प्रमुख पदाधिकारी अपनी भाषा से प्रताड़ित कर, तनाव में डाल देते हैं। यह दर्दनाक घटना समाज की दी हुई पीड़ा का परिणाम है। अगर साधु से कोई त्रुटि हो जाये, तो गुरु को बताना चहिए, पर उन्हें बताने की बजाय इतना संक्लेश पैदा कर दिया। वचनों के तीर हृदय में चुभाये। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में लिखा है कि बालक, स्त्री, साधु की हत्या नहीं करना चाहिये, लेकिन यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाज द्वारा की गई साधु की हत्या है। यह परोक्ष या वचनों या संक्लेश के रूप में की, पर समाज द्वारा की गई। कितना निर्दोष सिद्ध करोगे अपने को। साधु को गलती पर, प्रेम से समझाना चाहिए, गुरुजन को बतायें। पर समाज स्वयं निर्णय लेकर पहुंच, उस साधु को इतने तीव्र संक्लेश में डाल दे, कि वह आगे-पीछे का भी ना सोच पाये। समाज ने अपने स्वयं की अज्ञानता व अहंकारता के कारण एक साधु को लील लिया।
अगर कहीं त्रुटि दिखती भी, तो बुद्धि का परिचय देते, पर उन्हें लगातार प्रताड़ित करते रहे, इतनी बड़ी बात का कलंक किसी पर जाता है, तो वह समाज के माथे पर जाता है।
हर कोई यू-टर्न लेता आ रहा है, पहले दिन उनके गृहस्थ जीवन के बड़े भाई संतोष जैन जी कुछ दावे करते हैं, अगले दिन यूटर्न लेते हैं। नौ साल से आचार्य श्री की सेवा में लगा सेवादार अनिल पहले कुछ कहता है, अब उसे क्या हुआ, पता ही नहीं होता। गुरु भाई आचार्य श्री विमद सागरजी श्रद्धांजलि सभा में कई गंभीर बाते कहते हैं, 12 घंटे में उस वीडियो को हटाना पड़ता है। चैनल महालक्ष्मी कहीं खुलासा नहीं कर दे, एकाएक सोशल मीडिया पर एक मुहिम छेड़ दी जाती है, कि वह कुछ ना बोले। क्या यह सब एक सिलसिेवार साजिश के तहत हो रहा है। इन नकाबपोशों को बाहर निकालने के लिये सेवादार, उनके खास भक्त व इन्दौर के स्थानीय समाज को आगे आना होगा। पर फर्क किसे पड़ता है, संत उनका रिश्तेदार तो है नहीं, उसे निजशासन का अनमोल हीरा माना ही कब है? यही जैन समाज को शर्मसार करने वाला है।
पूरा वीडियो यू-ट्यूब पर चैनल महालक्ष्मी के 03 नवम्बर को जारी 773वें एपिसोड – खुलासा – यह आत्महत्या नहीं, हत्या है, दोषी बेनकाब।