इंदौर में दिगंबर जैन संत विमद सागर महाराज की आत्महत्या पर परिवार ने सवाल खड़े कर दिए हैं। परिवार ने जो वजह गिनाईं हैं, उससे संत का फांसी लगाना संदिग्ध हो गया है। विमद सागर महाराज के बड़े भाई संतोष जैन ने बताया कि महाराज का एक हाथ टूटा था। सिर से ऊपर नहीं जाता था। सोचने वाली बात है कि 12 फीट ऊपर फंदा कैसे लगाएंगे? संत समाधि लेता है, आत्महत्या नहीं करता। पढ़िए उन्हीं के शब्दों में…
‘वो कभी ऐसा कर ही नहीं सकते। जो सत्संग में दूसरों को जीने की सीख देते थे, वे ऐसा क्यों करेंगे। कहा जा रहा है उन्होंने फांसी लगा ली। उनका फांसी लगाना संभव ही नहीं है। बचपन में साइकिल से गिरने पर उनका एक हाथ टूट गया था। इस वजह से उनके हाथ की हड्डी बढ़ गई थी। इसके बाद से हाथ सिर से ऊपर जाता ही नहीं था। एक हाथ से आप कुर्सी उठाकर तो देख लीजिए। 12 फीट पर कैसे पहुंच जाएगा। एक हाथ से कैसे एक आदमी फंदा लगा लेगा।’
बीमारी से परेशानी वाली बात पर कहा
‘शुगर कोई बड़ी बीमारी है क्या। पाइल्स भी कोई बीमारी नहीं है। दवा लेंगे, सही हो जाएंगी। बीमारी से परेशानी है तो संत समाधि लेगा, आत्महत्या नहीं करेगा। उनके 1100 उपवास चल रहे थे। एक दिन आहार, दूसरे दिन उपवास कर रहे थे। कोई टेंशन नहीं था। वह अनुशासनप्रिय थे। जो बात करते थे, साफ करते थे। निडर थे। संकट से कभी डरे नहीं, तो ऐसा कदम उठाने का तो सोच ही नहीं सकते। मां को कोरोना हो गया था तो उन्होंने ही प्रोत्साहित किया था।’
विरोधियों का षड्यंत्र हो सकता है…
‘जांच की जानी चाहिए। जो इस षड्यंत्र के पीछे हैं, वह सलाखों के पीछे होने चाहिए। घटना के पीछे निश्चित ही उनके विरोधी लोग हैं, जो उनकी बढ़ती लोकप्रियता से डर रहे थे। हो सकता है कि उन्हीं की करतूत हो। शंका तो नहीं है किसी पर, लेकिन कमरे में रस्सी कहां से आई। बड़ा सवाल है। कई ऐसी शंकाएं हैं, जो इस ओर इशारा करती हैं कि ये आत्महत्या नहीं है। षड्यंत्र के तहत घटना को अंजाम दिया गया। उन्होंने आत्महत्या नहीं की।’
घटना को आत्महत्या बताकर उछाला गया...
‘6 सात दिन पहले आखिरी बात हुई थी। स्वास्थ्य वगैरह की जानकारी दी थी। आशीर्वाद दिया था। इंदौर पुलिस और प्रशासन से अनुरोध है कि जिस प्रकार से घटना को आत्महत्या बताकर उछाला गया है, वो गलत है। निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। सच्चे उभरते हुए युवा संत का स्वर्गलोक गमन हुआ है, ऐसा दोबारा न हो, इसके लिए जांच होनी चाहिए।’
आचार्यश्री के पिता शीलचंद जैन -छलक उठे पिता के आंसू
आचार्यश्री के अंतिम संस्कार के बाद पिता शील चंद जैन की आंखों से आंसू छलक उठे। उन्होंने बताया कि 8 साल की उम्र से ही वह धर्म के मार्ग पर चलने लगे थे। बचपन में जो भी रुपए मिले, वो साधु की सेवा में लगाते थे। पिता ने कहा कि शाहगढ़ (सागर) में एक मंदिर तैयार हो रहा है, जिसका पंचकल्याण आचार्य के हाथों ही होना था। मार्च में वहां कार्यक्रम होने वाला है।
(दैनिक भास्कर को आचार्य विमद सागर जी के बड़े भाई का साक्षात्कार)