18 साल से 48 घंटे में एक बार लेते थे आहार : सवाल अभी जस का तस खड़ा है कि जैन संत क्यों ऐसा कदम उठाने को मज़बूर हुए

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किसी बात से नहीं लगा कि वे ऐसा कुछ करने जा रहे हैं
सुबह प्रवचन में जीवन की गतियों का वर्णन किया और दोपहर को यह क्या कर लिया

मंदिर से जुड़े श्रद्धालुओं के अनुसार, आचार्य ने सुबह 9 बजे मंदिर में दिए प्रवचन में कर्म के महत्व व जीवन की गतियों का वर्णन

गणाचार्य श्री विराग सागर जी के शिष्य आचार्य श्री विमद सागर जी महाराज नंदानगर स्थित जैन मंदिर की धर्मशाला के कमरे में शनिवार दोपहर पंखे से फांसी पर लटके मिले। कमरा अंदर से बंद था। वहां से कोई नोट नहीं मिला है। समाजजन दुख में डूबे हैं। सभी एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि जो दूसरों के तनाव दूर करते थे, उन्होंने ये कदम कैसे उठाया। जांच अधिकारी के अनुसार, वे आहार के बाद एक बजे सामायिक के लिए कमरे में गए। ढाई बजे तक बाहर नहीं आए तो सेवादार ने दरवाजा खटखटाया। काफी प्रयास के बाद भी नहीं खुला तो ऊपर से झांककर देखा। आचार्य फंदे पर लटके दिखे। उसने समाजजन को सूचना दी। लोगांे ने आचार्य को फंदे से उतारा। पुलिस पार्थिव देह एमवाय ले गई, जहां विशेष अनुमति से रात को ही पोस्टमॉर्टम किया गया। आचार्य नंदानगर में तीन दिन से रुके हुए थे। हालांकि वे 10 मार्च को इंदौर आए थे। लॉकडाउन के कारण यहीं रुक गए थे। गुमाश्तानगर में चातुर्मास कर विभिन्न मंदिर होते हुए यहां आए थे।

18 साल से 48 घंटे में एक बार लेते थे आहार
2003 सेे 1234 उपवास का कठिन तप कर रहे थे। 48 घंटे में एक बार आहार करते थे। 1100 उपवास पूरे कर चुके थे।
चार तरह के रस, तेल, नमक, शकर और दही का आजीवन त्याग कर चुके थे।
सुबह प्रवचन में जीवन की गतियों का वर्णन किया और दोपहर को यह क्या कर लिया
मंदिर से जुड़े श्रद्धालुओं के अनुसार, आचार्य ने सुबह 9 बजे मंदिर में दिए प्रवचन में कर्म के महत्व व जीवन की गतियों का वर्णन किया। दो दिन पहले मुक्ति के बारे में प्रवचन किए। अहारचर्या के लिए व्यापारी अशोक जैन के यहां पहुंचे तो वहां भी लोगों के सवालों के जवाब दिए।

सामायिक के लिए कमरे में गए; टेबल पर चढ़कर नायलॉन की रस्सी का फंदा बनाया और पंखे से झूल गए
आचार्य जब आहार के लिए आए तो उनके चेहरे पर किसी तरह का तनाव नजर नहीं आया। उन्होंने घर में मौजूद लोगों के सवालों के जवाब दिए। इस दौरान किसी बात से ऐसा नहीं लगा कि वे इस तरह का कोई कदम उठाने जा रहे हैं।
– अशोक जैन, (जिनके यहां आचार्य ने आहार किया)

परदेशीपुरा टीआई पंकज द्विवेदी व एफएसएल एक्सपर्ट डॉ. बीएल मंडलोई ने बताया कि परिस्थितियां खुदकुशी का ही इशारा कर रही हैं। अंदेशा है, वे नायलॉन की रस्सी लेकर कमरे में गए, वहां रखी टेबल पर चढ़कर पंखे से फांसी लगा ली। गले में भी रस्सी से लटकने के निशान हंै। उनके पास रस्सी कहां से आई इसका खुलासा नहीं हो पाया है।
आचार्य मूल रूप से सागर के रहने वाले थे। जन्म 9 नवंबर 1976 में हुआ था। 20 वर्ष की उम्र में आचार्य विरागसागर महाराज से दीक्षा ली।
पिता का नाम शीलचंद जैन व मां का नाम सुशीला जैन है। एक भाई व तीन बहन हैं।
पूर्व नाम संजय जैन था। परिवार का शाहगढ़ में बिजनेस है।

नंदानगर से शनिवार को ही विहार कर फिर गुमाश्ता नगर जाने वाले थे, वहां होने वाला पिच्छी परिवर्तन का कार्यक्रम
बड़ा सवाल नायलॉन की रस्सी उनके पास कहां से आई?
आचार्य के फांसी पर मिलने की खबर से संत सदन के बाहर रात तक भक्तों की भीड़ जमा रही।
समाजजन के अनुसार, आचार्य श्री का अंतिम संस्कार 31 अक्टूबर को सुबह 10 बजे गोम्मटगिरि से आगे समर्थ सिटी जैन मंदिर के पीछे, ड्रीम वर्ल्ड के सामने स्थित मैदान में होगा। उनके महाप्रयाण की सूचना मिलने पर सागर से उनके परिजन भी इंदौर के लिए निकल चुके हैं।
गोम्मटगिरि से आगे आज होगा अंतिम संस्कार

विमद सागर जी महाराज का संक्षिप्त परिचय
१) पूज्यश्री का नाम -आचार्य श्री 108 विमद सागर जी महाराज
(२) गृहस्थावस्था नाम- श्री संजय कुमार जैन
(३) जन्मस्थान – शाहगढ़ (सागर) म. प्र.

(४) जन्मतिथि व दिनाँक – 9 नवम्बर, 1976
(५) जाति – जैन गोलापूरब
(६) गोत्र – बनोनया
(७)(A) माता का नाम श्रीमति सुशीला जैन
(B) पिता का नाम श्री शीलचंद जैन (मलेरिया इंसपेक्टर)
(८) लौकिक शिक्षा – 9 वीं कक्षा पास
(९) आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत/प्रतिमा-व्रत ग्रहण करने का विवरण – आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत, 8 अक्टूबर, 1992
द्वारा – परम पूज्य आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज

(१०) क्षुल्लक/क्षुल्लिका दीक्षा तिथि, दिनाँक व स्थान -28 जनवरी, 1996 सागर (मंगलगिरि)
क्षुल्लक/क्षुल्लिका दीक्षा गुरु -आचार्य श्री विरागसागर जी महाराज

(११) ऐलक दीक्षा तिथि, दिनाँक व स्थान -25 जून, 1998 शोरीपुर बटेश्वर (शिकोहाबाद)
ऐलक दीक्षा गुरु -आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज

(१२) मुनि दीक्षा तिथि, दिनाँक व स्थान – 14 दिसम्बर, 1998 अतिशय क्षेत्र बरासो (भिण्ड)
मुनि दीक्षा गुरु – आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज

(१३)आर्यिका दीक्षा तिथि, दिनाँक व स्थान -क्षु. पद्मश्री की र्आियका दीक्षा दो नाम
आर्यिका दीक्षा गुरु -.आर्यिका वियोग श्रीमाताजी दीक्षा स्थल (छतरपुर) म. प्र.

(१४)आचार्य/उपाध्याय/गणिनी आदि पदारोहण तिथि व स्थान – 13 फरवरी, 2005 कुंथुगिरी महाराष्ट्र, आचार्य पद संस्कार ३१ मार्च, २००७ औरंगाबाद महाराष्ट्र राजा बाजार आचार्य पद प्रदाता गणाचार्य

पदारोहणकर्ता – श्री 108 विराग सागर जी महाराज

(१५)साहित्यिक कृतित्व -. ‘1. स्तुति पुष्प, 2. वन्दना पुष्प, 3. एक लोटा में दूध, 4. भावा में थोडा तो 5. जीवन है दीपक की ज्योत, 6. भवभव में है गुरूवर, ७. मेरे गीत तेरे नाम, ८. गीतों का गुलदस्ता, ९. कविताओं का करिश्मा, १०, भक्ति के क्षण चालीसा, ११. शहद वन्दना प्रवचन, १२. मैं सोच रहा कब से, १३. आदमी की आदत, १४. मत बिगाड़ों जीवन की दशा, १५. चिटियों की रक्षा बेटियों की हत्या, १६. कृपया इसे न पढ़े, १७, मौत का मुहूर्त नहीं होता, १८. कफन में जेब नहीं होती, १९. मौत क पुकार, २०. मुनि श्री जेल में, २१. माँ मुझे कमङ्काल पकडना सिखाओ, २२. पडौसी सुनता है, 23. चार लड़के, २४. वाणी बनी नित बाणी, २५. अर्हंत सूत्र संग्रह/लेख, २६. मौन कथाएँ, २७. कुछ बच्चों के लिए, २८. भक्तामर चमत्कार, 29. अर्चना विधि, 30. श्रावक प्रतिक्रमण’