॰ आचार्य श्री सुनील सागरजी के अन्न त्याग की घोषणा व फटकार के बाद पुलिस हरकत में
॰ आर्यिका श्री श्रुतमति माताजी को, ये होगी सार्थक विनयांजलि
॰ सुरक्षित विहार की बातें मानें, सरकार पथमार्ग बनायें
18 फरवरी 2025/ फाल्गुन कृष्णा षष्ठी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन /
एक बार फिर बैक-टू-बैक दो दिन विहार में बड़े दर्दनाक हादसे हुए, यह पहली बार नहीं हुआ। अब तो जैन समाज के साथ यह एक आम बात हो गई है। लापरवाही का शोर मचाते हम असल तह तक नहीं पहुंच पाते। आइये विहार सीन… सॉरी क्राइम स्पॉट को दोबारा क्रिएट करते हैं, ऐसा ही तो करती है पुलिस इन्वेस्टिगेशन के लिए। 13 तारीख की शाम 3 ही बजे थे घड़ी में। निर्यापक श्रमण श्री वीर सागरजी का विहार आगे बढ़ चला, दिशा थी डोंगरगढ़ की ओर, हां, नागपुर से चार क्षुल्लक महाराज के साथ बढ़ रहे थे। नागपुर समाज के ट्रस्टी शीतल प्रसाद जी अगुवाई कर रहे थे। विहार में बच्चे भी जोश में थे। गर्मी की तपन थी। पौने चार बजे उन्होंने ही गाड़ी से कुछ पानी की बोतलें निकाल कर उनको दी थी प्यास बुझाने के लिये। हां, विहार सही दिशा में हो रहा था, जी हां, सड़क के बायीं ओर नहीं, उसी दिशा में सामने जिधर से ट्रैफिक आ रहा हो, आमने-सामने, इस बात को हम-आपको भी ध्यान रखना चाहिये और गाड़ी दूसरी दिशा में चल रही थी।
साढ़े चार बजे थे यानि 45 मिनट और गुजर गये, गर्मी से गला सूख रहा था। शीतल प्रसाद जैन संकेत समझ गये थे। सड़क की दूसरी तरफ गाड़ी चल रही थी, शीतल जी ने पीछे आ रहे ट्रक को हाथ दिखाकर रुकने का इशारा किया, उसने ब्रेक मार दी। शीतलजी आगे बढ़े, गाड़ी से 8-10 बोतल हाथ में ली और सड़क की दूसरी तरफ विहार वालों की तरफ बढ़े। ऐसा वह बरसों से करते आ रहे थे। ऐसे कोई संत नहीं, जो उधर से गुजरे हों और उन्होंने विहार न कराया हो। देवरी से 5-7 किमी बाद या कहें सावंगी से 4-5 किमी पहले की हो तो बात थी। बोतलें हाथ में थीं, एक पल उस रुके ट्रक की ओर बीच सड़क से देखा। नहीं संभल पाये वो, ट्रक से उनका सर जोर से टकराया। नहीं सोच सकता कोई, जो ट्रक रुका हुआ था, उनके चलते ही चल पड़ेगा। वर्षों से ट्रक चलाने वाले का पैर लाखों-करोड़ों बार एक्सलेटर और ब्रेक पर सही समय रखा गया, पर इस बार नहीं। क्या यह संभव है? देवरी आरोग्य धाम तक पहुंचते-पहुंचते सांसों ने साथ छोड़ दिया। क्या यह सिर्फ हादसा था, या दर्दनाक हत्या की एक साजिश। फैसला तो जांच टीम करेगी, पर जांच की फाइल चलेगी तब ना। कौन चलायेगा, शायद कोई नहीं, बंद हो चुकी होगी, एक दुर्घटना के नाम पर।
14 तारीख की सुबह तो सूर्योदय के साथ सूर्यास्त की इबारत लिखने की जैसे दाहैद के पास मजबूर हो गई थी सुबह। आचार्य श्री सुनील सागरजी ससंघ मीरखेड़ी स्कूल में विराजमान थे, दाहोद में प्रवेश से बस 15 कि.मी. दूर। वहीं 12-14 किमी दूर उन्हीं की शिष्या आर्यिका श्री श्रुतमति माताजी रात भर जैसे नींद को भगाते आतुर हो रही थी, आखिर तीन वर्ष बाद गुरुवर के चरण दर्शन कर पाएंगी। तीन साल पहले उन्हें बदमाश-डॉन नगरी मुम्बई में (आचार्य श्री के शब्दों में) प्रभावना का अवसर मिला और अपनी चर्या और प्रभावना से सबको धर्ममय कर दिया था। 2010 में उन्होंने तपस्वी सम्राट से श्रुत पंचमी को दीक्षा ली थी, तब 23वें सावन से गुजर रही थीं। पिछले 15 सालों के अपने दीक्षा जीवन में स्वाध्याय करते-करते हर ऊंचाई को छुआ।
हां, घड़ी 7 बजा रही थी। श्रावकों का विहार के लिये जुड़ना शुरू ही हुआ था। पर वे तो बेसब्री की घड़िया खत्म करने को आतुर थीं। पूर्णिमा के बाद की किरणें आकाश में उजियारा कर चुकी थीं। अहमदाबाद-इन्दौर राष्ट्रीय राजमार्ग पर लिसखेड़ा के कबोई गांव से वो निकली, साथ ही एक श्रावक को, चंद कदमों पीछे ऋतुजा और मुस्कान दीदी और पीछे श्रावक आते जा रहे थे। शायद 70-80 कदम ही बढ़ी होंगी। वो हाइवे चार लेन का था। डिवाइडर के दोनों ओर डबल लेन और उसके बाहर 4 इंच की सफेद पट्टी। उस पट्टी के काफी भीतर उनके नंगे पांव तेजी से बढ़ रहे थे। अचानक बढ़ी तेज आवाज के साथ दो चीखों ने पूरे शांत वातावरण को अशांत कर दिया। बोलोरो पिकअप वेन दोनों को मानो ले उड़ी। लगभग 200 मीटर घसीटते माताजी का शरीर उस गाड़ी से छिटककर सड़क पर खून से लथपथ दिखा, बोलोरो वाला फरार। घटनास्थल पर ही, दो शरीर तड़पते शांत हो गये। लगभग 8.10 पर ऋतुजा दीदी आचार्य श्री सुनील सागरजी के सामने खड़ी थीं। उनको देख आचार्य श्री के चेहरे पर खुशी नहीं बिखरी। तपस्वी संत चेहरा देख सब पढ़ लेते हैं। गीली आंखों से निकलते आंसू से ही, वो सब समझ गये कि कुछ अनहोनी हो गई है। दीदी ने आंखों देखी सारी घटना को दोहराया।
आचार्य श्री के शब्दों में – मुझे नहीं पता था कि आज सूर्योदय के साथ ही सूर्यास्त हो जाएगा। हमारी तीन छोरियां बदमाशों और डॉन की नगरी मुम्बई में तो तीन साल खूब प्रभावना करती रही और सुरक्षित समझे जाने वाले गुजरात में दूसरे दिन ही ऐसा हो जाएगा, यह तो सोचा भी नहीं था। एक दिन पहले संघ में गुरुवर सहित अधिकांश का उपवास था। अब 11 बजे तक न कोई नेता, न कोई पुलिसवाले वहां थे। कितना अजीब है, वैसे तो नेता संतों के चरणों में आशीर्वाद लेने भागे फिरते हैं। पर मौके पर अपने ही समाज के और वह भी प्रदेश के गृहमंत्री सुध भी नहीं लेते। आचार्य श्री ने चंद शब्दों से स्पष्ट कर दिया कि जब तक दोषी पकड़ नहीं लिया जाएगा, तब तक उनका अन्न-जल का त्याग रहेगा।
एक संत के मुख से निकली आवाज जंगल की आग बन गई। मीडिया का जमावड़ा हो गया। पांच घंटे बाद पुलिस भी हरकत में आई। आचार्य श्री ने फटकार भी लगाई अपने ही शब्दों में – जिसका यहां उल्लेख नहीं कर रहे।
आचार्य श्री ने अन्न-जल त्यागा, यानि इस हादसे को यूं ही नहीं मानना होगा। पुलिस महानिरीक्षक आर.वी. अंसारी (पंचमहल गोधरा रेंज), पुलिस अधीक्षक राजदीप सिंह, उप पुलिस अधीक्षक एम.बी. व्यास के निर्देशन में 130 पुलिस वालों की 8 टीमें बनीं और 100 सीसीटीवी खंगाले। पता चला वह पिकअप वैन जाली वाली केवल दो ही हैं। महिन्द्रा शोरूम से उसकी पुष्टि हुई। उधर भठवाड़ा टोल नाका में प्रवेश करते वो मिली। हर पुलिस पोस्ट पर जानकारी पहुंची। गरबाड़ा चौक से दहोद की ओर जाती पकड़ ली गई। उसका मालिक पिकअप ड्राइवर जावेद उर्फ असलम भाई शेख निकला। सब कुछ अगले 3-4 घंटे में हो गया। क्या गजब की पुलिस की वर्किंग होती है, पांच घंटे तक सोती रही पुलिस को जब फटकार पड़ी, तो केस सुलझाने में तीन घंटे नहीं लगते, दोषी पकड़ा भी जाता है।
पुलिस अपनी पीठ थपथपवाने आचार्य श्री के पास पहुंचती है और उस हादसे को दुर्घटना बताते हुए कहती है कि ड्राइवर दो दिन से सोया नहीं था, झपकी आ गई थी, इसलिये यह सब हो गया। फाइल पूरी करने में भी देर नहीं लगी। यह जांच पूरी है या अधूरी, हर कोई समझ सकता है। अनेक संतों ने आवाज उठाई, पहले कम, इस बार ज्यादा। जूम पर 10-12 संत और इतने ही समाज के लोग भी बोले। कुछ जगह विनयांजलि सभायें हुई, पर क्या इन हादसों का यह अंत था?
सान्ध्य महालक्ष्मी चिंतन : गुजरात-राजस्थान की बेल्ट पर जैन साधुओं के साथ यह पहली बार नहीं, तीन सालों में लगभग 20वीं दुर्घटना है। इत्तफाक नहीं हो सकते। क्या समाज संतों के विहार के लिये गंभीर है? क्या सुरक्षित विहार में कहीं न कहीं प्रशासन की, समाज की चूक नहीं रही? पैदल पथ यात्रियों, कांवड़ लेकर चलने वाले, पग विहार करने वाले, हमारे पूजनीय संतों, चाहे वो किसी भी धर्म या मजहब के हों, उनके प्रति क्या सरकार – प्रशासन गंभीर है?
आम आदमी की भरपाई तो हो सकती है, पर संतों की भरपाई क्या हो सकती है? सुरक्षित विहार के लिये क्या कोई निश्चित गाइडलाइंस की जरूरत नहीं? चैनल महालक्ष्मी ने पिछले तीन माह में विहार की खबरों में कम से कम बीस बार इस पर सावधानी की अपील बार-बार की है। हर दुर्घटना पर जोरदार रूप से सावधानी की अपील करता रहा है। पर हम लापरवाह हैं और प्रशासन आंख मूंद कर बैठा है। चैनल महालक्ष्मी एक बार फिर निम्न निर्देशों का सख्ती से पालन करने की अपील करता है:-
1. विहार की पूर्व सूचना पुलिस को, पूरे निश्चित रूट के साथ दी जाये, विहार व्यवस्थित रूप से हो, तथा पुलिस की निगरानी में हो।
2. अगर विहार में उचित संख्या में श्रावक नहीं हैं, तो आप भुगतान कर सुरक्षा गार्डों की उपस्थिति में विहार करायें।
3. अब जिस तरह से वाहन वाला घुस आ रहा था, ऐसे में विहार के आगे व पीछे वाहन चलने की व्यवस्था रखें।
4. विहार सड़क के बायीं ओर नहीं, दायीं ओर यानि सामने से आते ट्रैफिक की दिशा में ही करें, जिससे सामने आते वाहन की दृष्टि में आप हों। बायीं ओर चलने से वाहन पीछे से आते पैदल चलते दिखाई नहीं देते।
5. विहार पर्याप्त रोशनी में ही हो, हाइवे आदि पर विहार में झंडे, चमकने वाले कपड़े आदि साथ हों और एक फर्स्ट एड किट विहार में जरूर साथ लेकर चलें।
6. सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि सड़कें केवल वाहनों के लिये ही नहीं, पैदल यात्रियों के लिए भी सुरक्षित पथ बने। उनके लिये सफेद पट्टी की तरफ अलग पथ मार्ग बनाया जाये। संतों के विहार में इस तरह की कड़ी सुरक्षा रखी जाये। कांवड़, अन्य धर्मयात्री भी उनका उपयोग कर पाएंगे।
आज आर्यिका श्री श्रुतमति जी के लिये विनयांजलि में उनके गुणगान की कोई जरूरत नहीं। सार्थक तभी होगी, जब समाज और प्रशासन आगे साधुओं को सुरक्षित विहार करवा पायें और वही सही मायने में सान्ध्य महालक्ष्मी – चैनल महालक्ष्मी की अपील रूपी सही विनयांजलि होगी। और विशेष बात, समाज की जिम्मेदारी की शुरूआत इसी बात से होगी कि दाहोद समाज स्वयं दुर्घटना का संज्ञान लेकर निष्पक्ष जांच करायें तथा यही काम नागुपर समाज को भी करना होगा।)
(इस पूरे प्रकरण की जानकारी चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 3159 एवं 3162 देख सकते हैं।)