महरौनी- आर्यिका रत्न श्री विज्ञान मति माता जी की शिष्या आर्यिका श्री संभव मति माता जी की समाधि शुक्रवार रात्रिबेला में हुई। उनकी अन्तिम डोला यात्रा श्री दि जैन मन्दिर महरौनी से निकली। जिसमें हजारों भक्तों ने पहुचकर अपनी विंनाजलि अर्पित की।
इस अवसर पर विज्ञानमती माताजी ने कहा साधना करना सरल है, साधना को सल्लेखना में बदलना कठिन है। पल पल देह का क्षरण होते देखकर भी देह से मोह को छोड़ कर परिणामों को संभावना साधना कहलाती हैं। उन्होनें कहा माताजी स्मृतियो को ताजा बनाये रखते हुए समाधि के प्रति सावधान थी। और संघ भी समाधि की साधना पूर्ण हो, इस हेतु हर पल सावधान था। और हुआ भी वही।
एक परिचय
बीस वर्षों तक की रत्नत्रय की आराधना
आर्यिका श्री संभव मति माता जी ने बीस वर्ष तक रत्नत्रय की आराधना करते हुए 2 उपवास तीन उपवास की आराधना करते हुए, सन 2008 तेंदूखेड़ा चातुर्मास में ग्यारह उपवास की उत्कृष्ट तप साधना की। वे सहज सरल स्वभाव की धनी व निर्मल परिणामी थी। परम पूज्य आर्यिका रत्न श्री विज्ञान मति माता जी की आज्ञा से धर्म प्रभावना के लिए पृथक विहार कर जैन धर्म की महती प्रभावना की।व युवा पीढ़ी को धर्म के संस्कारों से जोड़ती रहीं।
समाधि के प्रति संघ सजग था व माताजी भी सावधान थी आदित्य मति माताजी
इस अवसर पर आर्यिका श्री आदित्य मति माता जी ने कहा कि आर्यिका श्री संभवमति माताजी जी समाधि के प्रति बहुत सावधान थी। उतना ही संघ भी सजग था। संघ में सभी आर्यिका माताजी ने उनकी भरपुर सेवा का लाभ लिया।
उन्होंने कहा परम पूज्य गुरु माॅ की सन्निधि हमारे विश्वास को मजबूत करतीं रही। माता जी की दृढ़ता देखने लायक थी। हम सब ने उनसे पल पल सीखा। उनका धर्म ध्यान निरन्तर प्रगति की ओर था। इसका परिणाम रहा कि उनकी सफल समाधि हुईं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमडी