जिस प्रकार मेहंदी घिसने के बाद रंग देती है ठीक उसी प्रकार मानव को ठोकर खाने के बाद अकल आती है: गुरु मां विज्ञाश्री माताजी

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28 मार्च 2023/ चैत्र शुक्ल सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / कोटा/ पारस जैन पार्श्वमणि

कोटा आर के पुरम स्थित श्रीमुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन में प. पू. भारत गौरव गणिनी आर्यिका 105 विज्ञाश्री माताजी ने धर्मसभा में उपस्थित जनसमूह को उद्बोधन देते हुए कहा कि – जिंदगी में खेल तो खेले लेकिन अपने लक्ष्य को ध्यान में रखें । क्यों कि लक्ष्य रहित जिंदगी दीमक लगे पेड़ व बिना नींव के महल की भांति है । यदि आप बिना लक्ष्य के कोई कार्य करते है तो उसमें असफलता ही प्राप्त होगी । जिस प्रकार मेहंदी घिसने के बाद रंग देती है ठीक उसी प्रकार मानव को ठोकर खाने के बाद अकल आती है । आप सोचे कि बिना लक्ष्य के हर कार्य सम्भव है तो सबसे पहले आपको अपने अंदर की यही सोच बदलनी पड़ेगी । आप सोचे की एक मिनट में हम जिंदगी बदल लें तो यह मुमकिन नहीं लेकिन इतना अवश्य सम्भव है आपके द्वारा लिया गया एक मिनट का निर्णय आपकी जिंदगी बदल सकता है ।

धर्म सभा के प्रारंभ में मंगलाचरण पाठ पारस जैन पार्श्वमणि ने अपनी मधुर आवाज में करते हुए श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया । मंदिर समिति के अध्यक्ष महावीर जैन महामंत्री पवन पाटोदी कोषा अध्यक्ष ज्ञानचंद जैन ने बताया कि धर्म सभा में चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन शास्त्र भेंट की क्रियाएं कृष्णा नगर दिगंबर जैन मंदिर के इंद्र कुमार, पदम पाटनी, जयकुमार जैन सी ए, संजय बाकलीवाल, निर्मल जैन के द्वारा की गई। गुरु का पाद प्रक्षालन का भी इन्होंने किया। धर्म सभा का सफल संचालन पारस जैन पार्श्वमणि एवम मनोज शास्त्री ने किया।

आगे गुरु माताजी ने सभी समाज , राष्ट्र में जागृति लाने के उद्देश्य से कहा कि भरत के भारत ने हमें साधना करना सिखाया अंग्रेजों ने India को साधन प्रदान किये। विज्ञान के साधनों में फंसकर हम अपनी साधना , संस्कृति और संस्कारों को भूलते जा रहे है। विज्ञान के साधनों जैसे टी.वी. , मोबाईल आदि से जितना हमारे शरीर को नुकसान हो रहा है उससे कई ज्यादा नुकसान हमारे देश , राष्ट्र व समाज को हो रहा है । धर्म व संस्कृति का लोप हो रहा है । बच्चों से लेकर वृद्धजनों तक के संस्कारों में कमी आ रही है । सभी अपने लक्ष्य से भटक गए हैं । इसलिए सबसे पहले तो हमें विज्ञान के साधनों को छोड़कर साधना का मार्ग अपनाना चाहिए । जिससे धर्म के साथ साथ संस्कारों में भी वृद्धि हो और देश में अनुशासन भंग अर्थात लड़ाई – झगड़े होने से बचें । हर तरफ सुख – शांति – और समृद्धि बनी रहे।

माताजी ने शरीर के साथ साथ आत्मा की बात करते हुए कहा कि जैसे नदी दो तटों के बीच सुरक्षित रहती है उसी प्रकार हमारी आत्मा, हमारा ज्ञान – दर्शन संयम अर्थात कंट्रोल करने से सुरक्षित रहता है। हम जितना साधन – सुविधाओं पर कंट्रोल करेंगे साधना उतनी प्रबल होती जाएगी । इसलिए साधन छोड़ों साधना करो यही मेरा तुम सभी के लिए आशीर्वाद है ।