संस्मरण: चरण ही क्यों तुम तो आचरण भी छू सकते हो -आचार्य श्री #विद्यासागर जी

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चरण, शरण, आचरण ये कुछ ऐसे शब्द हैं जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। वैसे इन पर चिंतन किया जाये और अमल किया जाये तो मरण सार्थक हो सकता है। चरण हर किसी के पूज्य नहीं होते, निर्दोष आचरण से चरण पूज्य हो जाते हैं और उन पूज्य चरणों से आचरण का संकेत मिलता है। सम्यग्दृष्टि जीव गुरु के चरण छूता है, उनकी शरण में रहता है एवं उनके आचरणों को भी स्वीकार करता है। क्योंकि, गुरु के चरण सान्निध्य में वह सब कुछ प्राप्त हो जाता है जो जीवन में प्राप्तव्य होता है। गुरु चरण, गुणों की खान हुआ करते हैं।
एक बार एक सज्जन गुरुदेव से बोले कि – मैं आपके चरण छू सकता हूँ। तो आचार्य भगवन् मुस्कुरा कर बोले – चरण ही क्यों तुम तो आचरण भी छू सकते हो। वह सज्जन यह सुनकर गुरुदेव की ओर एकटक देखते ही रह गये मानो गुरुदेव ने उसे सब कुछ दे दिया हो।

सच है
गुरु चरणों से संकेत मिलता आचरण का
गुरु, चरण छूने से नहीं बल्कि आचरण छूने से खुश होते हैं और हमेशा जीवन में सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। कभी-कभी विनोद भाव से कही गयी बात भी हमारे जीवन को बदल देती है और साधन से साध्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है। इन गुरु की कृपा का हम वर्णन नहीं कर सकते जो जीवन भर जिनवाणी का अध्ययन करते और कराते हैं। आचरण का पालन स्वयंकरते हैं और दूसरों को कराते हैं।

गुरु-चरणों की शरण में, प्रभु पर हो विश्वास।
अक्षय-सुख के विषय में, संशय का हो नाश।।