बात सन् 2001 की है, आचार्य भगवन 108 श्री विद्या सागर जी महाराज, छत्तीसगढ़ के पेंड्रा रोड नामक शहर में थे, जहाँ से उन्हें विहार करके चातुर्मास के लिये अमरकंटक जाना था, चातुर्मास स्थापना के कुछ ही दिन शेष बचे थे
एक रात्रि अचानक आचार्य श्री को पैर में घुटने के नीचे पिंडली में दर्द होने लगा
दर्द रात्रि में हुआ तो किसी से कहाँ भी नही, लेकिन सुबह जब सभी मुनिराजों ने देखा गुरूजी के चेहरे पर प्रतिदिन जैसी मुस्कान नही है, तो एक मुनिश्री ने पूछ लिया, तब आचार्य श्री ने बताया की कल रात्री से हमारे पैर में दर्द हो रहा है, सोचा था सुबह तक ठीक हो जायेगा परन्तु अब तो और बढ़ गया, जब ये बात वहाँ की कमेटी को पता चला तो वो एक वैधजी को बुला लाये, वैधजी ने गुरुदेव के पैर में एक लेप लगाया तो लेप लगाते ही दर्द और बढ़ गया, उसके बाद कई और वैध हकीम अपनी अपनी दवा और लेप लेकर आये, लेकिन दर्द कम होने की जगह और बढ़ रहा था, और बढ़कर घुटने से ऐड़ी तक पहुंच गया, अब तो गुरूदेव आहार चर्या में भी नही जा पा रहे थे, आचार्य श्री के स्वास्थ की खबर जंगल की आग की तरह देशभर में फैल गई, जगह जगह गुरूदेव के अच्छे स्वास्थ के लिये विधान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान होने लगे, आचार्य श्री के शिष्य-शिष्या जहाँ जहाँ थे वो सभी गुरूजी के स्वास्थ के लिये जाप, उपवास, फलों और रसों का त्याग करके अपनी विशुध्दि बढाने लगे
इतनी वेदनीय स्थिति में भी आचार्य भगवन् ने अपनी दैनिक चर्या में कोई परिवर्तन नही किया
एक रात्री में गुरूजी को असहनीय पीड़ा हो रही थी तो वह सिर्फ एक भी नाम की माला जप रहे थे
आचार्य श्री ज्ञान सागर जी की जय
आचार्य श्री ज्ञान सागर जी की जय
उसी दिन तड़के ४ बजे एक व्यक्ति वहाँ आया और दिन निकलने का इंतजार करने लगा जैसे ही दिन निकला तो लोग आने लगे, उसने लोगो से कहा, हमे पता चला है आपके गुरु महाराज के पैर में बहुत दर्द हो रहा है, एक बार हम भी ठीक करके देखना चाहते हैं, लोगो ने उससे कहा भाई जब बड़े बड़े वैध हकीम जब कुछ नही कर सके तो तुम क्या करोगे, लेकिन उसके बार बार आग्रह पर वहाँ उपस्थित लोगों ने ये बात आचार्य श्री तक पहुंचा दी, तो आचार्य श्री ने कहा अब इतने लोग देख गए तो उसे भी देख लेने दो
वो ऊपर गया तो आचार्य श्री तखत पर बैठे हुये थे, उसने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और नीचे बैठकर अपने एक हाथ से आचार्य श्री के पैर का अंगूठा पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी जेब से एक लकड़ी निकाली और आचार्य श्री की पिंडली पर घिसने लगा, आचार्य श्री के चेहरे को देखकर लग रहा था की पीड़ा और बढ़ गई, लेकिन वो आदमी आचार्य श्री को देखे बिना लकडी घिसता रहा था और कुछ बुदबुदाता रहा, फिर धीरे धीरे आचार्य श्री के चेहरे के भाव सामान्य होने लगे, थोड़ी देर बाद वह आदमी खड़ा हुआ और बोला अभी थोड़ा समय लगेगा आपको ठीक होने में, लेकिन अब पहले जितना दर्द नही होगा, वो जाने लगा तो, साथ में खड़े मुनि श्री पुराण सागर जी महाराज ने उससे कहा भैया ये जादुई लकडी हमे दे जाओ हम भी सुबह शाम ऐसे ही घिस दिया करेंगे, पर उसने कहा अब जरूरत नही पड़ेगी, उससे पूछा आप कहाँ से आये हो तो उसने बताया की फ़ला गांव से आया हूँ, और नीचे उतर गया, उतरने के बाद उसे किसी ने नही देखा कि वो कहा गायब हो गया, लोगों ने उसके गांव में पता करवाया लेकिन नही मिला
अब आचार्य श्री थोड़ा अच्छा महसूस कर रहे थे, मुनिराजों ने गुरूदेव से कहा पता नही आचार्य श्री वो आदमी कहाँ से आया था कही मिला ही नही, तो आचार्य श्री बोले शायद उसे आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने भेजा होगा, साथ में खड़े मुनिश्री पुराण सागर जी महाराज ने कहा हाँ आप सही कह रहे हो आचार्य श्री..! ! आप रातभर से आचार्य ज्ञानसागर जी को ही तो याद कर रहे हो
उसके बाद बाहर के कई बड़े डॉक्टर वहाँ पहुंचे और बताया की इस बीमारी का नाम है हर्पीज
हर्पीज होने से शरीर पर लाल दाने आ जाते हैं, और इस रोग को ठीक होने में २१ दिन लगते हैं
आचार्य श्री को डॉक्टर ने २ किलोमीटर से अधिक चलने के लिये मना किया था लेकिन आचार्य श्री तो एक बार में १० – १० किलोमीटर चलकर अमरकंटक पहुंचे,
और धीरे धीरे दर्द भी ठीक हो गया
जब हमें किसी प्रकार का कोई कष्ट होता है तो हम गुरुवर आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज को याद करते हैं, वैसे ही आचार्य श्री ने भी अपनी पीड़ा हरने के लिये अपने गुरूदेव आचार्य ज्ञानसागर जी का स्मरण किया
अर्थात्
हर पिता का एक पिता होता है, हर गुरू का एक गुरू होता है
नोट ~ ये संस्मरण मुनि श्री पुराण सागर जी महाराज द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार है