यूं तो जब जब आचार्यश्री के पावन चरण चलायमान होते है अधिकांश तीर्थो, समाजों, गुरुभक्तों की धड़कनें बढ़ जाती है
अमरकंटक में जन्मी मेकल कन्या कही जाने वाली नर्मदा रेवा नदी की अविरल धारा और गुरुचरणों की दिशायें सदा एक सी रही है।
फिर चाहे अमरकंटक हो जबलपुर या नर्मदा का नाभिकेंद्र नेमावर ही क्यों न हो
वही आचार्यश्रेष्ठ के सानिध्य में बहुत कुछ पाने वाले सागर का भी अपना गौरवशाली इतिहास है
सन 1980 के पूर्वतक तक हम जैसे साधारण श्रावकों की छोड़ो बड़े बड़े पण्डित विद्वान भी ग्रँथराज षट खण्डागम के ग्रन्थ धवलाजी के मात्र दर्शन कर अतृप्त रहते थे
लेकिन जब 1980 में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर श्रुत पंचमी तक सागर के मोराजी में षट खण्डागम धवला जी की वाचना में देश के मूर्धन्य विद्वान पण्डित जन अपने को पुण्यशाली मान उपस्थित रहते थे जन समुदाय के समक्ष जब जैनागम के इन ग्रन्थों का वाचन होता तब सभी आत्मविभोर हो कर झूम उठते
इन युवाचार्य की निर्दोष, त्याग, तपस्या, साधना देख सागर एवम आस पास के युवा युवतियां ऐसे रीझे कि सब कुछ छोड़ इनके संग हो लिए
और दर्जनों मुनिराज अर्धशतक आर्यिका माताएं आचार्यश्री के संघ में सुशोभित है
भाग्योदय और ऐतिहासिक सर्वतोभद्र जिनालय सागर के लिये आचार्यश्री के अतिशयकारी,आशीर्वाद की अनमोल भेंट है
जहां एक ओर पिछले 22 वर्षों से चातुर्मास की आस लगाए प्यासा सागर चातक वत शरदपूर्णिमा के चंदा के सानिध्य पाने लालायित है
आचार्यश्री के चरणों की आहट से इनदिनों सागर के गुरु भक्तों के गुरुचरणों के सानिध्य के भावों के ज्वार का उफान चरम पर है।
लेकिन नर्मदा तट पर अवस्थित तिलवारा जबलपुर के नए नवेले पूर्णायु को लगता है कि पूर्णायु इतिहास के पन्नो पर हजारों वर्ष तक चिरायु बने रहने के लिये आचार्यश्री के चातुर्मास छत्रछाया जरूर मिलेगी
वैसे इन अनियत विहारी श्रमणेश्वर के चलायमान चरणों की थाप का कोई आंकलन नही कर सकता
बड़े बाबा के नेटवर्क से सीधे जुड़े इन छोटे बाबा के चरण किस ओर बढ़ जाए कहा नही जा सकता…
● आज रात्रि विश्राम-
कन्या विद्यालय, रेहटी।
● कल की संभावित आहार चर्या-
अन्नपूर्णा धर्मशाला, छोटा मठ, सलकनपुर
(रेहटी से 5-6 किमी)
●राजेश जैन भिलाई