हैरान मत होइए, विद्याधर जी को अजमेर जाना था दादागुरु श्री ज्ञान सागर जी के पास, पर जाने के लिए किराये के पैसे कहाँ से आएं, ये सोच कर विद्याधर परेशान थे, घर से मांग नहीं सकते थे, अगर उन्हें पता चल जायेगा तो वो जा नहीं सकेंगे और जानते है आप , जाने से पहले एक रात उन्होंने मस्जिद में बिताई क्योंकि उन्हें तड़के ही जाना था और हाँ तब किराये के लिए अवशय 12 रुपये दिए एक मित्र ने, उनकी इस मदद को पूरा जैन समाज नहीं भूल सकता, आज भी हम सब उनके ऋणी हैं, क्योंकि उसी किराये से विद्याधर अजमेर पहुंचे और उन्हें तराशकर दादा गुरु ने दुनिया को दिए सबके वंदनीय संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज
मारुति और विद्याधर मित्रता की अद्भुत मिशाल ऐसी पवित्र मित्रता को नमन
आज मित्रता दिवस है और वर्तमान में मित्रता का इससे उत्कृष्ठ परिणाम कहीं और नहीं मिल सकता।
हाँ वही मित्रता जो विद्याधर के बाल सखा मारुति ने निभाई थी।
उन्होंने मूंगफली बेचकर 12 रुपए विद्याधर को दिए थे जो उनकी मेहनत की कमाई थी।
और वो अन्तर्यात्री महापुरुष उन पैसों से यात्रा कर धन्य धरा अजमेर पहुंचे थे।
तब भला कौन जानता था वो अनियत विहारी मोक्ष मार्ग पर पहुंचे थे।
मारुति की मित्रता के वो 12 रूपए अब मूल्य की मर्यादा से परे हो गए हैं। इससे उत्कृष्ठ परिणाम कहीं और नहीं मिल सकता।
क्योंकि उस मित्र के सहयोग से बालक विद्याधर आज राष्ट्रसंत विद्यासागर जी हो गए हैं।
ऐसी मित्रता को नमन ऐसे मित्र को नमन