45 साल बाद भी आचार्य श्री नहीं बदले, पर मंदिर कमेटी अब चरण पकड़ने लगी
यह घटना 1975 की है जब आचार्यश्री के संघ में मात्र 4 क्षुल्लक थे। एक बार खजुराहो के ऐतिहासिक जिनालय में विराजित भगवान शांतिनाथ के दर्शन हेतु खजुराहो पहुचे थे।
उन दिनों मंदिर कमेटी के मैनेजर द्वारा मुनि संघो के विहार हेतु माली और कर्मचारियों को चटाई पाटे लेकर भेजा जाता था जो घने बियावान जंगलों में सुरक्षित स्थान पर संघ के विश्राम की व्यवस्था करते थे।
लेकिन इसके लिए मुनिसंघो को एकदिन पहले मैनेजर को सूचना भिजबना पड़ता था मैनेजर जानकरी मिलाकर रुकने की व्यवस्था करता था और उसकी जानकारी से ही संघ विहार करते थे।
आचार्य श्री तो अनियत विहारी आरम्भ से ही रहे है दोपहर में सामायिक ध्यान के बाद आचार्यश्री ने विहार कर दिया।
जब कुछ देर बाद विहार की जानकारी मैनेजर को मिली तो वह आग बबूला हो गया उसने माली और कर्मचारियों ने स्पस्ट कह दिया कि संघ ने तो विहार के लिए मुझे सूचित नही किया और ना कोई जानकारी ली और नही मुझे बताया अतः आप लोगो में से कोई भी विहार में व्यवस्था में नही जाएगा।
आचार्यश्री अपने हाथों में पीछी कमण्डल लिये पन्ना के घने बियावान भयंकर घने जंगल की पहाडियो से बढ़ते जा रहे थे।
सन्ध्याकाल में आचार्य श्री एक पेड़ के नीचे शिला पर विराजित हो गये आचार्य भक्ति के बाद आचार्यश्री ने संघ को कहा कि इस बियावान जंगल में शेर चीता भालू जंगली जानवर है वे हमारे शरीर की गंध सूंघ कर आ सकते है अतः हम सब अभी यही समाधि ले लेवे और कोई भी रात में आँखे बंद न करे कभी भी कुछ भी हो सकता है यदि कल जीवन बचा तो ही कुछ ग्रहण करेंगे अन्यथा सब त्याग कर सिर्फ समाधि। पर स्वयं भगवान को कोन जीव नुकसान पहुँचा सकता है उनकी करुणा के आगे तो सिंह भी चरणों मे बैठ जाता है सभी मुनियों ने रात अपने ध्यान में जाग कर बिताई और सुबहा सकुशल विहार प्रारंभ किया
कुछ बर्षो बाद दूसरी बार जब आचार्यश्री अपने बड़े संघ सहित खजुराहो पहुचे तब वह मैनेजर आचार्यश्री के चरणों से लिपट कर फफक फफक कर रो रहा था उसने बार बार क्षमा मांगी आचार्यश्री ने मुस्कुरा कर उसे भरपूर आशीर्वाद दिया।
जब आचार्यश्री इसी जंगल से दूसरी बार विहार कर रहे थे तब पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी भी संघ में थे पूज्यश्री ने वह शिला देखी जहा संघ ने रात बिताई थी। बियाबान भयानक जंगल की वह शिला देखने के बाद पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी ने आचार्यश्री से कहा, “आचार्यश्री, उस दिन शेर-चीता-भालू ने आपका शिकार नही किया आप बच गए, यह आपका पूण्य नही था!”
आचार्यश्री मुस्कुराते रहे, मुनिपुंगव ने आगे कहा, “गुरुदेव! यह तो हमारा पूण्य था जो आपको कुछ नही हुआ, क्योकि हमारा पूण्य नही होता तो हम आपसे दीक्षा कैसे ले पाते!” आचार्यश्री ने स्मित मुस्कान से कहा “अपने मुह से मिया मिठ्ठू बन रहे हो।”
ऐसे है मेरे जगत वंदनीय गुरुदेव…
हो अर्ध निशा का सन्नाटा,वन में वनचारी चरते हो…
तुम शांत निराकुल चेतन तुम,तत्वों का चिंतन करते हो!