23/08/2021 ,पूर्णायु परिसर – दयोदय तीर्थ गौशाला – जबलपुर
आचार्यश्री गुरुवर विद्यासागर जी महाराज में बताया की एक बार एक राजा ने अपने दरबार में एक समस्या रखी जो लोगों के बुद्धि का परीक्षण थी , राजा ने कहा कि कल सुबह तक मुझे एक घड़े में भर के ओस- कोहरे की बूंदों का पानी चाहिए,
लोग असमंजस में पड़ गए कि कैसे एक साथ ओस का पानी घड़े में इकट्ठा किया जा सकता है, लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा आपका आदेश हुआ है महाराज यह काम हो जाएगा ,
अगले दिन वह एक घड़ा लाया उसमे ओस की बूंदों से संग्रहित जल था , लेकर दरबार में उपस्थित हो गया अनेक दरबारियों ने यह प्रश्न किया कि यह कैसे संभव है कि एक ही रात में एक घड़ा भर ओस की बूंदों को इकट्ठा किया जा सके।
बुद्धिमान व्यक्ति ने बताया कि उसने एक धोती का कपड़ा लिया उसे तिनकों -घांस के ऊपर घुमाया जिससे तिनको में जमी ओस की बूंदे कपड़े में आ गई , उसे निचोड़ कर घड़ा भर दिया और महाराज की सेवा में समर्पित कर दिया। महर्षि आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि इसी तरह हम बहुत थोड़ी-थोड़ी, छोटी-छोटी बूंदों की तरह धन संचित करते हैं लेकिन हमें दान पुण्य और सेवा कार्यों के लिए संचित किया धन जब बड़ी मात्रा में एकत्र हो जाता है तो उसे समर्पित करना चाहिए ,
यदि छोटी छोटी मात्रा में धन दान किया जाता है तो उसका कोई उपयोग नहीं होता लेकिन यदि घड़े में संचित जल की तरह धन का उपयोग सेवा कार्यो में किया जाता है तभी धन का सदुपयोग होता है। हमें संचित धन का उपयोग सेवा कार्यों में करना चाहिए।तभी मानवता की सेवा हो सकती है।