दयोदय तीर्थ गौशाला दिनांक 9 अगस्त 2021, पूर्णायु परिसर में आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज ने कहा किसी पदार्थ के निर्माण के लिए कई पदार्थों का मिश्रण होता है लेकिन संसार से मुक्ति पाने के लिए इस मिश्रण का उपयुक्त होना आवश्यक है। योगदान के लिए योग्य निमित्य होना आवश्यक है जिस तरह मिश्रित वस्तु को मिलाने के लिए उसे हम अग्नि में गर्म किया जाता है, तो बीच-बीच में देखते रहते हैं कि मिश्रण ठीक से बन रहा है या नहीं , यदि आपके कार्य ठीक है तो मिश्रण ठीक होगा ।
आचार्य श्री जी ने कहा कि दिगंबरत्व धारण कर लेने और मुनि बन जाने अकेले से मुक्ति हो जाए यह अनिवार्य नहीं है कर्म सिद्धांत से ज्ञात होता है कि मुनि को भी श्रेष्ठ आचार – विचार और मुनि की क्रिया का श्रेष्ठता से पालन करना चाहिए तभी मुक्ति संभव है। शास्त्रों में लिखित सूत्र है कि पुण्य कार्य आवश्यक है। आप समझो कि यह मैं करके रहूंगा का विश्वास रखने वाले भी सब कुछ नहीं कर सकते, हाथ में खींची भाग्य की रेखाएं भी कर्म के साथ बदलती जाती जब है आप के भाव और कर्मों में कोई कमी नहीं होती है तो श्रेष्ठ परिणाम आपको मिलते हैं। भाग्य शब्द का अर्थ बहुत व्यापक होता है जो आपको प्राप्त नहीं है तो लाभ कैसे मिलेगा , जैसे स्वाति नक्षत्र में समुद्र के अंदर रहने वाली सीप बाहर निकल कर वर्षा के एक बून्द को अपने मुख में सीधे ग्रहण करती है तब मोती का निर्माण होता है, यह प्रकृति का नियम है इसी तरह मनुष्य के उत्तम व्यवहार के नियम का पालन करने से श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं ।
आचार्य श्री जी कहते हैं कि मुक्ति प्राप्त करने के लिए दिगंबरत्व के साथ मुनि चर्या का पालन करना पड़ेगा, प्रभु पर विश्वास रखना होगा तभी मुक्ति संभव है ।
आचार्य श्री जी ने कहा कि श्रम बेकार नहीं जाता लेकिन श्रम विधिवत हो तभी साकार होता है ।
श्रम एवं कार्यों पर घमंड नहीं करना चाहिए , घमंड करने पर गिरने की संभावना है राजा ,राणा, छत्रपति भी रंक हो सकते हैं और श्रेष्ठ कार्य करने वाला रंक भी राजा हो सकता है ,आप श्रेष्ठ कार्य करते जाइए उत्तम फल जरुर मिलेगा आपके किए गए सदकार्य, सेवा कार्य आपके हाथों की रेखाएं भी बदल देते हैं ।
लोगों को सोना, वैभव ,धन ,संपत्ति मिलते ही वह भगवान को भूल जाते हैं लेकिन भगवान की दृष्टि आप पर है, इसलिए यह हमारा है ,हमारा है ना कर यह सब का है यह भावना रखनी चाहिए।