यदि आप अच्छा स्वास्थ्य चाहते हो तो चटक – मटक और बड़े – बड़े होटलों के नाम से जो आपके मुह में पानी आ जाता है उन सबसे दूर रहने कि आवश्यकता है : आचार्यश्री विद्यासागरजी

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11 जून 2022/ आषाढ़ कृष्ण अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
दिगंबर जैन परंपरा के महान तपस्वी सन्त शिरोमणि आचार्यश्री 108 विद्यासागरजी महामुनिराज ने अपने अनमोल वचन में कहा कि जैनियो का धर्म मे बहुत कठिन है इंसमे त्याग की महत्वता है।
तीर्थ क्षेत्र चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में प्रतिदिन की तरह प्रातःकाल साढ़े आठ बजे संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के मंगल प्रवचन सन्त भवन के हाल में हुए आचार्य श्री ने बताया कि

जैनियो का धर्म बहुत कठिन
आचार्यश्री ने कहा कि प्रायः सुनने में आता है कि जैनियों का धर्म बहुत कठिन होता है | ऐसा आप लोगो को भी सुनने को मिलता होगा | सही भी है | आयुर्वेद में लिखा है कि बादाम खाने से बुद्धि मिलती है और पिस्ता पिस पिस खाने से बुद्धि मिलती है | हम कहते हैं कि “ठोकर खाने से बुद्धि मिलती है” | जैन धर्म इसलिए कठिन है क्योंकि यहाँ त्याग को महत्त्व दिया गया है | एक प्रकार से बुद्धि मिलती है नमक न खाने से | इसलिए कहते हैं बड़े – बड़े जो ग्रन्थ है उन ग्रंथों में प्रवेश पाने के लिये आचार्यों ने श्रावकों को जागृत रहने के लिये कहा कि आप रसों से दूर रहिये | यदि आप अच्छा स्वास्थ्य चाहते हो तो चटक – मटक और बड़े – बड़े होटलों के नाम से जो आपके मुह में पानी आ जाता है उन सबसे दूर रहने कि आवश्यकता है | इस सब के सेवन से आँतों में पानी नहीं आएगा उस पर भार बढ़ते जायेगा तो आंत कमजोर हो जाएगी |

सर्वप्रथम जब बच्चा ६ माह का होता है तो उसे प्रायः विशेष रस नहीं दिया जाता है जबकि उसे दूध, शक्कर पानी, घी और गाय के दूध में थोडा पानी मिलाकर दिया जाता है जो सबसे अच्छा है | विषयों से बचिए और भीतरी प्रतिभा, चेतना के साथ जिसके पास बहुत उन्नति कि क्षमता विद्यमान है | उस क्षमता को उदीप्त करना चाहोगे, तीखी बनाना चाहोगे, सार को ग्रहण करना चाहोगे तो निरंतर व्यसनों से दूर रहिये | सल्लेखना के लिये अनसन अनिवार्य है | अभी सारा खान – पान के ऊपर आयुर्वेद, मूलाचार खड़ा है | ऐषणा समिति, चार तप में भी रस का परित्याग, त्याग रहता है | परित्याग और त्याग में भी अंतर होता है | छोटे बच्चे से लेकर बूढ़े तक को स्वास्थ्य के हिसाब से थोडा – बहुत लिया करो बोलते हैं तो वे थोडा को छोड़ देते हैं और बहुत ले लेते हैं इससे उनके स्वास्थ्य में प्रभाव पड़ता है इसलिए हम अब बहुत थोडा लिया करो कहते हैं | ठोकर खाने से बुद्धि आती है | मुनि महाराज के लिये ठोकर – आलस, रसों कि ओर नज़र रखना, कठिनाइयों से बचना आदि है |

दक्षिण में पचास साठ हाथ नीचे पानी
आचार्यश्री ने कहा कि टियूब जिसे पाइप भी कहते हैं वेल मतलब कूप यहाँ टियूब वेल करने के लिये ५०० – ५०० फीट खोदा जाता है और पानी के बूंद तक नहीं मिलती है | दक्षिण में कूप ही खोदा जाता है वहाँ 40 हाँथ ५० हाँथ ६० हाँथ निचे पानी मिलना प्रारंभ हो जाता है और कभी –कभी पाषाण खंड को चुरचुर कर पानी फौवारें कि तरह बाहर आता है | साल भर पानी लबालब भरे रहता है | गर्मी में जब लू चलती है तब भी कूप का जल ठंडा रहता है | एक साथ तत्व हाँथ में नहीं आता इसके लिये प्रयास कि आवश्यकता होती है |

रस गन्ध स्पर्श आआत्मा का वैभव नहीं
आचार्यश्री ने आगे कहा कि रस गन्ध स्पर्श आत्मा का वैभव नहीं है गुरूदेव ने अपने जीवन मे त्याग के बारे में बताते हुए कहा कि एक बार मैने गुरु जी से 1 माह का नमक त्याग का नियम लिया था फिर प्रत्येक दिन गिन – गिन कर निकलता था और 1 माह कब होगा यह विकल्प रहता था | जैसे ही एक माह हुआ मै गुरु जी के पास गया और कहा 1 माह नमक त्याग का अभ्यास हो गया लेकिन नंबर कम आया | बार – बार इसी का विकल्प रहता था फिर मैंने ठान लिया कि अब इसे जीवन पर्यन्त के लिये त्याग दूंगा जिससे सारा विकल्प ही समाप्त हो गया | क्योंकि ये सारे के सारे रस, गंध, स्पर्श, जन्म, मरण पुदगल का ही है | आत्मा इससे भिन्न है ये रस, गंध, स्पर्श, जन्म, मरण आत्मा का वैभव नहीं है | जहाँ आत्मस्थ हो जाओ चेतना वहीँ खड़ी मिलेगी | यह शब्दातीत है | विद्यार्थी जब १६ वी कक्षा पास कर शोध के लिये जाता है तो वह पूरे पुस्तक भंडार से अपने काम कि पुस्तकों से शोध से सम्बंधित विषय को बहुत जल्दी – जल्दी पढ़कर खोज लेता है | यहाँ उसको ज्यादा पुरुषार्थ कि आवश्यकता नहीं पड़ती है | कुछ छात्र कहते हैं कि महाराज हमें कुछ याद नहीं होता | हमने कहा बहुत अच्छा है आपको कुछ स्मरण नहीं रहता है | सब भूल जाओ कौन आपका बैरी है कौन आपका परम मित्र है उसे सबसे पहले भूलो तभी सल्लेखना सफल होगी |
सुरेंद्र जैन– रायपूर छ.ग.