जिसे वैराग्य होता है, वह धरती का पूत होता है। जो दीक्षाएं लेने जा रहे हैं, इनकी कुंडली पहले से लिखी जा चुकी है: आचार्यश्री

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कुण्डलपुर महा महोत्सव में रविवार दीक्षाएं हुई। छुल्लक की दीक्षा लेने के साथ ही 18 ब्रह्मचारी भैया अब दो वस्त्र (लंगोटी व दुपट्टा) ही पहनने होंगे। छुल्लक की दीक्षा लेने वालों का जीवन मुनि की कठोर जीवन से थोड़ा हल्का रहता है।

वे जीवन में संयम व कठोर व्रत धारण करते है। इसके बाद एेलक (एक वस्त्र धारण करने वाला) की राह पर अग्रसर हो जाते हैं। दीक्षा लेने के बाद जैन आश्रम में उनका जीवन गुजरेगा। इसके अलावा आचार्यश्री जहां भी दीक्षा, प्रवचन, चातुर्मास करेंगे, वहां उनके साथ रहेंगे।

मुनि की दीक्षा में सम्पूर्ण वस्त्र का त्याग करना पड़ता है। मुनि की दीक्षा लेने वाले को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। इस अवसर पर आचार्यश्री ने कहा कि जिसे वैराग्य होता है, वह धरती का पूत होता है। जो दीक्षाएं लेने जा रहे हैं, इनकी कुंडली पहले से लिखी जा चुकी है। यह अब घर में रहने वाले नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि वैराग्य का तो रोना-धोना होता ही है, क्योंकि बालक वैराग्य की राह पर चल निकले हैं। इसलिए दीक्षा की प्रक्रिया आगे बढ़ाओ, पालकी उठाकर आगे बढ़ो। दीक्षा के दौरान आचार्यश्री ने कहा कि पहले क्षुल्लक चौके में जाकर कटोरे में आहार लाया करते थे और फिर एक स्थान पर बैठकर, जल लाकर उसको ग्रहण करते थे । पर अभी प्रचलन नहीं रहा है। पिछली बार की तरह किसी को पिच्ची प्रदान नहीं की। सफेद वस्त्र धारण कराए।

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