जैसे अलग-अलग दाल को निकालने के लिए अलग-अलग मूंगरा चाहिए, उसी तरह कर्मों के लिए भी मिथ्यात्व, साम्यक्त्व मिथ्यात्व और सम्यक प्रकृति होनी चाहिए : आचार्यश्री

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कुण्डलपुर में विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने मंगलवार को मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि जैसे रोग मिटाने के लिए कटुक कड़वी औषधी का सेवन करना लाभकारी है, उसी तरह गुरुओं से हमेशा मिलने वाले ज्ञान और जिनवाणी की आराधना करने से जीवन को अनंत सुख की ओर ले जा सकते हैं।

आयुर्वेद चिकित्सा का सूत्र है कि देश काल के अनुसार औषधियों का प्रयोग किया जाता है।

उन्होंने कहा खुराक भोजन के रूप में खुरापाती भी हो सकती हैं और खुराक औषधी के रूप में कड़वी होने के बाद भी अमृत होती है। जैसे भोजन में राजस्थान में बाजरा खाने से शरीर स्वस्थ रहता है और मट्ठा उपयोगी है पर दक्षिण में नुकसान पहुंचा सकता है और वहां ज्वार और खीचड़ा उपयोगी है।

तीर्थंकर और ज्ञानी लोग समझाने की हठ नहीं किया करते। जैसे अलग-अलग दाल को निकालने के लिए अलग-अलग मूंगरा चाहिए पड़ते हैं, उसी तरह कर्मों के लिए भी मिथ्यात्व, साम्यक्त्व मिथ्यात्व और सम्यक प्रकृति होनी चाहिए।