जैसे योद्धा लोग वीरता देखते हैं उसी तरह वीर बनकर अपने भावों का हरण करो, कर्मों की निर्जरा अनिवार्य है : आचार्य श्री विद्यासागर जी

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संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने धर्मोपदेश देते हुए कहा कि 28 मूल गुणों में से एक गुण प्रतिक्रमण के साथ सब होता रहता है, कोई देख रहा है या नहीं, लेकिन भगवान सबको देख रहे है। जो व्यक्ति नवनीत की तरह होते हैं वो तर जाते हैं क्योंकि नवनीत थोड़ी ही ऊष्मा से पिघल जाता है, जो पिघलता नहीं वो नूतन पर्याय की प्रतीक्षा नहीं करें।

प्रतिक्रमण के समय आंसू निकलते हैं पर किसी के वश की बात नहीं है। जैसे योद्धा लोग वीरता देखते हैं उसी तरह वीर बनकर अपने भावों का हरण करो, कर्मों की निर्जरा अनिवार्य है। उठो पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते रहो जिससे हमारा जीवन सार्थक बनता है, तीर्थंकर भी क्यों न हो उनके लिए भी कहा गया है कि ओम नमः सिध्धेयभाः।

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