धर्म का ज्ञान अनुभूत रास्ता- मुनिश्री #कुन्थुसागर जी महाराज
गरजने वाले और बरसने वाले बादल बहुत होते हैं लेकिन, भीतर से आर्द्र पानी बरसने वाले बादल दुर्लभ होते हैं। वैसे ही उपदेश सभी लोग देते हैं लेकिन कल्याण का उपदेश देने वाले दुर्लभ हैं। अनुभूति की कड़ाव में से तलकर आ रहे शब्दों से उपदेश देने वाले कम ही होते हैं। ध्यान रखना, मानसूनी बरसात ही लाभप्रद होती है लौकल वर्षा नहीं। करुणा के बिना वक्ता का स्वभाव सही नहीं माना जाता है, करुणा में भींगे शब्द ही असर कारक होते हैं। उपदेश देने वाला चारित्रवान होना चाहिए वरना, उसका कोई असर नहीं पड़ता।
यह उपदेश गरुदेव के मुख से हम सभी लोग सुन रहे थे तभी एक सज्जन ने कहा – आचार्य श्री जी, उपदेश से भी तो स्व-पर का कल्याण किया जा सकता है। आचार्य भगवन्त बोले – “जिसका उद्देश्य मात्र उपदेश देना ही है इसलिए त्यागी का वेश धारण करता है तो, समझना वह सब्जी में पड़ी चम्मच के समान है जो स्वयं कुछ भी स्वाद नहीं ले पाता। मेरी कुशलता किसमें है यह जानना ही हितकारी है। ध्यान रखो, जो युक्ति और आगम के आधार पर धर्म को धारण करता है वह भव्य है”।
गुरुदेव स्वयंधर्म का पान करते हैं एवं दूसरों को धर्म का ज्ञान ही नहीं धर्म का पान भी कराते हैं। वे मात्र कान ही नहीं फूँकते बल्कि प्राण भी फूँकते हैं। हाँ, संयम के प्राण रत्नत्रय रूपी जीवन प्रदान करते हैं। हमें अपने जीवन को उपदेश देने से पहले उपदेश मय बना लेना चाहिए ताकि स्वयं उस उपदेश से/धर्म से आनंदित हो सकें, उसका स्वाद ले सकें।
ऐसा आता भाव है, मन में बारम्बार।
पर दुःख को यदि ना, मिटा सकता जीवन भार॥
अतिशय क्षेत्र #बीनाबारहा जी – 25.07.2005