सान्ध्य महालक्ष्मी
आचार्य श्री विद्यासागरजी की हर मुद्रा कुछ कहती है, शब्दों की बैसाखियों के बिना, हम लोगों को वो सब कह देती है, जो घंटों प्रवचन सुनने के भीतर झनझनाहट, तरंगे उत्पन्न नहीं कर पाती। आज कैमरे से अचानक कैद की गई, वैसी अनोखी आचार्य श्री की 8 मुद्रायें, शब्दों के बिना, सब कुछ कह जायें, आपके समक्ष पेश कर रहे हैं:-
1. हर वक्त संत का हाथ श्रावकों के मस्तक पर आशीर्वाद के रूप में रहता है, उल्टी हथेली उसी का प्रतीक है, पर दिन में एक बार यह उसी श्रावक के आगे खुल जाता है, इसलिये नहीं, कि आहार लेना है, पर तेरे द्वार जाकर, बल्कि तेरा पुण्य संवर्धन करना है।
2. चारों प्रकार के दान के लिये श्रावकों के दोनों हाथ सदा आगे रहने चाहिये, उल्टी हथेलियां उसी का प्रतीक हैं।
3. पंचपरमेष्ठी का सदा रखो ध्यान, संयम – तप – त्याग भी आपको बनायेगा महान।
4. फिर पुण्य इतना मिलेगा कि दोनों हाथों से तुम्हारी झोली भरती रहेगी और उसी पुण्य के बल पर संत के कर पात्र, आहार के लिये आपके द्वार की ओर बढ़ेंगे।
5. हमेशा छोटे-छोटे नियमों से शुरूआत करो, संयम के मार्ग पर छोटे- छोटे कदम से आगे बढ़ते चलो, यही छोटे-छोटे नियम और कदम, एक दिन बड़े हो जाएंगे।
6. नवकार मंत्र ही श्रेष्ठतम मंत्र है, महामंत्र है, अपराजित मंत्र है, अभी तक तुमने इसे सही से जपा ही कहां है, जिस दिन इसमें डूब जाओगे, उस दिन भव-भव से तर जाओगे।
7. जब-जब तुम भक्ति में, श्रद्धा में समर्पित रहते हो, गुरु का आशीर्वाद सदा आपके साथ रहता है, चाहें कष्टों को दूर नहीं करता, पर उन्हें जीतने में मदद जरूर करता है।
8. जीवन भर मुस्काते रहोगे जब तक, मान में मस्तक नहीं उठाओगे, नीचे झुक कर सेवा करोगे, यही सफलता का मूल मंत्र है।
प्रात: स्मरणीय, वंदनीय संत शिरोमणि आचार्य श्री के चरणों में बारम्बार नमन।
(सभी मुद्राएं देखने के लिये चैनल महालक्ष्मी का एपिसोड नं. 866 देखिये लिंक -https://youtu.be/Luawy76SK9Y