30 जून सन 1968 आषाण शुक्ला पंचमी का वह शुभ दिन जिस दिन अजमेर नगर में विराजमान महान कवि ह्रदय आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज ने एक 22 वर्षीय दक्षिण भारत से आये नोजवान को मुनि दीक्षा के संस्कार देकर हम सभी को उपकृत किया ,, जी हां चौकिये नहीं हम सभी को ही उपकृत किया क्योंकि उस वक़्त कोई मुनि बनता ही नही था और अगर बनता भी था तो तब जब आधी उम्र बीत जाती थी ,, बालक विद्याधर के जन्म से ही ऐसे संस्कार थे कि उन्होंने आचार्य ज्ञान सागर को प्रभावित किया और उस दिन से अजमेर नगर की प्रसिद्धि जो दूसरे कारणों से हुआ करती थी विद्यासागर की दीक्षा स्थली के रूप में प्रसिद्ध हो गयी
विश्व में यह पहला उदाहरण था जब किसी आचार्य ने अपने आचार्य पद का स्वयं त्याग किया हो और अपने शिष्य को आचार्य बना कर उनका शिष्यत्व स्वीकार कर उनसे अपनी समाधि करवाने हेतु विनय की हो,,, मुझे तो लगता हैं आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज को दीक्षांत समारोह में ही इस बात की भनक लग गयी होगी कि उनका यह शिष्य बड़ा ही होनहार हैं और आगे जाकर विश्व मे जैन धर्म के नाम को आगे बढ़ाने का कार्य बड़ी ही सहजता से कर सकेगा बस इसी विश्वास और उम्मीद को पूरा करने आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने गुरु आज्ञा से बुंदेलखंड क्षेत्र की ओर विहार किया और तब से लेकर आज तक कई सारे बालब्रह्मचारी युवाओं को दीक्षा देकर हम सभी पर उपकार कर चुके हैं
देवयोग से कल आषाण शुक्ला पंचमी हैं और हमारा सौभाग्य कि हम उनकी दीक्षा की 54 वी सालगिरह मनाएंगे,, में निर्बुद्धि जिसे शब्दो का भी ज्ञान नही हैं उनके बारे में लिखने का प्रयास कर रहा हूं जो स्वयं साक्षात महान विद्वान कवि हैं जिनके लिखे हुये मूकमाटी जैसे महाकाव्य पर कई कॉलेजों में हजारों विधार्थी शोध कार्य मे लगे हुए है,, जो अपने आप मे पूर्ण है जिनकी तुलना किसी से भी नही की जा सकती ,, सूरज चांद सितारे मिलकर भी इतनी चमक नही बिखेर सकते जितना तेज उनके चेहरे से झलकता हैं ,, हमारी जितनी उम्र नही हैं उससे कही अधिक वर्ष तो उन्होंने साधना कर ली हैं और साधना भी ऐसी वैसी नही इतनी कठोर कि दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाये ,, कहने को तो बातें बहुत छोटी हैं कि टिकना नही हैं, थूकना नही हैं, सोते समय हिलना नही हैं, नमक नही खाना , शक्कर नही खाना, सब्जियां नही खाना, अनियत /अथिति की तरह जीवन का निर्वाह्न करना आदि आदि
सैकड़ो चैतन्य और हजारों अचेतन तीर्थ को बनाने वाले महान साधक आचार्य विद्यासागर जी महाराज वर्तमान में देश को आयुर्वेद से जोड़कर अहिंसक और शुध्दता की गारंटी वाली औसधि के निर्माण को आशीर्वाद देकर सुप्त हो चुके जादुई उपचार को बढ़ावा देने हेतु पूर्णायु जबलपुर की ओर बड़ रहें हैं भीषण गर्मी और झुलसाने वाली धूप में भी वे विहार करते हुए आगे बढ़ रहे हैं उनका जज्बा और हौसला काबिले तारीफ हैं जो हमें प्रेरणा देता हैं कि साधना साधक को उसका मनचाहा वरदान देती हैं अब साधक की मर्जी हैं वह उसे किस तरह उपयोग करता हैं
वात्सल्य मूर्ति अमृत की खान आचार्य विद्यासागर जी महाराज के दीक्षांत समारोह को भव्यातिभव्य तरीके से मनाते हुए कृतज्ञता ज्ञापित करें और उनके जैसा बनने की प्रेरणा ले,,अपना जीवन सफल बनायें,,
आचार्य श्रेस्ठ का आशीर्वाद इसी मंगल कामना के साथ
श्रीश ललितपुर