भावी आचार्य होंगे श्री समय सागरजी, पदारोहण बड़े बाबा के दरबार में- चंद्रगिरि से एकता का शंखनाद और अनुशासन की सख्त आवाज

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॰ अंगूठा छाप पर, लौकिक शिक्षा से नहीं, आगम- सिद्धांत पर कसो
॰ गुरुवर के वटवृक्ष को अब न पानी की चिंता, न अकाल की
॰ अब शब्दों में मत खेलना, गुरुवर आदेशों का एक स्वर से पालन करना
॰ वरिष्ठता को मानो, सहजता से स्वीकारो
॰ आचार्य श्री पर बेबुनियाद बातों पर लगाओ विराम, ली सल्लेखना
पूरी जागृति के साथ और आचार्य पद त्याग, नये का दिया नाम
॰ भारत रत्न की मांग, अनेक जगह कल्याणकारी योजनायें, स्मारक, प्रतिमा

01 मार्च 2024 / फाल्गुन कृष्ण षष्ठी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
गत रविवार 25 फरवरी को चंद्रगिरि, डोंगरगढ़ की अगुवाई में एक साथ अनेकों जगहों पर, देश में ही नहीं, विदेशों में भी, जैनों द्वारा ही नहीं, हिंदू – सिख – मुस्लिम – ईसाई – बौद्ध अनुयायियों द्वारा भी, राजनीतिक व सामाजिक गलयिारे से भी विश्व के वर्तमान के महानतम संत, तप-त्याग की चतुर्थ कालीन पराकाष्ठा को जीवंत रखने वाले, भारतीय शिक्षा को पाश्चात्य से वापस गुरुकुल की ओर मोड़ने का शंखनाद करने वाले, गुलामी के प्रतीक इंडिया से वापस सोने की चिड़िया स्वरूपी, भरत चक्रवर्ती के नाम पर ‘भारत’ की ओर रुख करने पर जोर देने वाले, नौकरी की बजाय स्वावलम्बन की दिशा में गांव-गांव हथकरघा की प्रेरणा देने वाले, ऐसी माता, जिनके स्तनों से झरते दूध को बचपन से वृद्ध तक के पीने वाले, उन माताओं की शालायें स्थापित करने की पुरजोर बात करने वाले, वर्तमान के वर्द्धमान कहें, तो कुछ बड़े बाबा के छोटे बाबा से उद्घोष करने वाले आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज को विनयांजलि के लिये सब के भाव को पिरोने के लिये शब्द भी बौने पड़ गये। नि:शब्द हो गये। छत्तीसगढ़ सरकार ने जहां रायपुर में एक बड़ी गौशाला के लिए जगह, रायपुर में एक विद्यापीठ और उनके नाम को चिर अंकित करने के लिए शासन द्वारा दिये जाने वाले एक पुरस्कार आचार्य श्री के नाम पर हर वर्ष देने की घोषणाओं के साथ कई जगह भारत रत्न देने की प्रधानमंत्री से मांग, तो कई जगह उनकी प्रतिमा लगाने, और भी कई तरह की घोषणायें हुर्इं।

पर चन्द्रगिरि से भावकुता के साथ बड़े संकेत भी दिये गये, एकता को अखंड रखने की बात भी की गई। पट्टाचार्य के लिये निर्यापक श्रमण श्री समय सागरजी के नाम की एक स्वर से घोषणा हुई, और उनके द्वारा अपने को अंगूठा छाप तक कहने के बाद स्पष्ट कह दिया कि यह अब गुरुजी के वट वृक्ष को न पानी की आवश्यकता है, न किसी अकाल की चिंता, जो संघ की ओर से, मीठी भाषा में स्पष्ट सख्त अनुशासनात्मक संदेश थे।

आचार्य श्री की चन्द्रगिरि में आयोजित विनयांजलि सभा में निर्यापक श्रमण श्री समय सागरजी ने सबसे अंत में सबकी सुनने के बाद, अपने उद्बोधन की शुरुआत कुछ इस तरह की – जिन सभी ने गुरु के प्रति समर्पण भाव अभिव्यक्त किये, उन सभी को पढ़ रहा हूं, सुन रहा हूं। आपकी और श्रमणों की प्रकृति में जमीन-आसमान का अंतर होता है। मैंने मनन किया है। मैं आप सबके सामने बोलना नहीं चाहता, बोलना आसान है, पर बोलने के अनुसार कार्यान्वयन करना कठिन जरूर है। सबने अपने भक्ति-भाव प्रदर्शित किये, पर भक्ति और सिद्धांत में अंतर है। भक्ति भाव में विशेषण तो कई लगाये जा सकते हैं, पर वो मेरे में फिट हो रहे या नहीं, उन्हें सिद्धांत की कसौटी पर तौला जा सकता है, अभी प्रत्येक व्यक्ति का मन व्यथित है। ऐसे में शब्द नहीं मिल पाते जिनसे गुरु का गुणानुवाद कर सकें, क्योंकि उस गहराई तक पहुंचे बिना, कैसे हो? शब्दों से गीत गाना और उन्हें आत्मसात करना कठिन है। शब्दों में कभी उलझना नहीं, पूरा संसार शब्दों से प्रभावित है, भावों तक पहुंचना खेल नहीं, लौकिक शिक्षा में अपने को अल्पज्ञानी मानते हुये उन्होंने कहा कि मैं केवल दसवीं पास हूं, पासिंग मार्क्स ही मिले। हमसे अधिक अंक पाकर राष्ट्रपति से पुरस्कृत भी हुये होंगे, उतना ज्ञान का प्रकाश मेरे में नहीं। लौकिक शिक्षा में ऐसे भी जिन का द्रव्य श्रुत शून्य है, जैसे शिवभूति, जिन्हें णमोकार का ज्ञान नही, पर पंच परमेष्ठी के प्रति आस्था कूट-कूट कर भरी थी।

आज लोग सूत्र मांगते हैं, मैं सूत्रकार नहीं। यह भावपूर्ण धर्म है, शब्द बोध नहीं बोध शोध नहीं। साथ ही, अनेक ये समझे कि उनके भाई के कारण उनका नाम आचार्य श्री ने दिया, संभवत: उन सभी को इंगित करते हुए 1975 का संस्करण सुनाते कहा कि तब उनकी सभा में एक कोने पर बैठा रहता, वे व्यक्ति विशेष पर दृष्टि नहीं डालते थे। जब तक मैंने ड्रेस नहीं बदली, उनकी दृष्टि मेरे पर नहीं पड़ी। सामान्य रूप से देशना करते रहते। फिर जब अजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया, ड्रेस परिवर्तन हुई, आगे बैठा, फिर मंगलाचरण शुरु हुआ।

आचार्य श्री की सल्लेखना पर उन्होंने कहा कि आम जनता उनको आज समझ नहीं पाई, वे अनुपात से ले रहे, शून्य करते रहे, पर कोई समझ नहीं पाये। गंज बसौदा में पता चला कि उन्हें पीलिया हो गया, सब आदेश का पालन करें। उचित-अनुचित देखते बढ़ते रहे। इतने में योग सागरजी पहुंच गये, तब उन्होंने सोचा – पता नहीं, कितने संघ इधर बढ़ रहे हैं, स्टे लगाना उचित है, इसलिये सब जहां हैं, वहीं ठहरे। इसलिये हम सिवनी रुक गये। फिर समता सागर जी भी यहां पहुंच गये और पता चला स्थिति बिगड़ रही है। तब सोचा, गुरु के चरणों में नहीं, तो पास तो पहुंचे। फिर बालाघाट से सलोना गांव पहुंचे और पौने बारह बजे समाचार मिलने लगा, वीडियो कॉल से देखा। व्यवहार से जरूर अनुपस्थित रहे पर जिन के अंदर आस्था की किरण है, उनमें वो विराजमान हैं। प्रत्येक पल वो कहते हैं – आगम को साधो। आगम को अलग करके, कभी मत सोचो।
संघ की मजबूती पर उन्होंने कहा कि जब बीज वृक्ष बन जाये, तो पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती, जड़े गहरी होती हैं, आकाल की भी चिंता नहीं। युवा-प्रौढ़ -श्रमण यहां हैं, बाहर भी हैं। आप सब श्रमण की जो भावना होगी। मैंने अपने मुंह से नहीं बोला, भविष्य की बात अलग है। लक्ष्य मोक्ष मार्ग है।

निर्यापक श्रमण योग सागर जी महाराज की डायरी का राज
इससे पूर्व निर्यापक श्रमण श्री योग सागर जी पर सबकी नजरें केन्द्रित थी, क्योंकि 09 फरवरी को आचार्य श्री ने उनसे ऐसा क्या कहा था, जो उन्होंने तुरंत डायरी में लिख भी लिया। डायरी से उन्होंने पढ़ा ‘देखो, मैंने आचार्य पद त्यागने का संकल्प ले लिया और फिर बड़Þा प्रतिक्रमण किया। संघ की दायित्व और जिम्मेदारी से अब मैं मुक्त हूं। मैं पूर्ण निवृत हूं। मुझे किसी भी प्रकार का विकल्प नहीं है। मेरी संकल्पपूर्वक संल्लेखना चल रही है। लोगों को मेरी समाधि के बाद अच्छी तरह से रख देना और उचित समय पर निर्यापक और सम्पूर्ण संघ मिलकर ज्येष्ठ मुनिराज समय सागर जी को पद पर प्रतिष्ठित कर देना।’
आचार्य श्री के पास सबसे नजदीक वे रहे। आचार्य श्री ने पूरी दृढ़ता के साथ सल्लेखना के बाद समाधि को प्राप्त किया।

आचार्य पद पर समय सागर जी का आरोहण कुंडलपुर में
निर्यापक श्रमण श्री समता सागरजी ने स्पष्ट रूप से निर्यापक श्रमण समय सागरजी को आचार्य पद के लिये पूरे संघ की सहमति व गुरुजी के आदेश से उनका नाम की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि आचार्य श्री का सिंहासन अधिक समय तक खाली नहीं रखना है। सारा संघ तय कर चुका है हमारे नये आचार्य ज्येष्ठ श्रेष्ठ श्री समय सागर जी महाराज होंगे। अब कोई चर्चा नहीं, कोई संदेह नहीं, कोई पर्ची नहीं। सभी कनिष्ठ व वरिष्ठ की अनुमोदना है। छोटे बाबा की अधिकृत व्यवस्था बड़े बाबा के दरबार में होगी। हमारे गुरु जी को वो क्षेत्र बड़ा फला-फूला है, आगे भी वहीं क्षेत्र फलेगा। संघ का अनुशासन, संगठन, जब तक सूरज चांद रहेगा, वो तब तक रहेगा।
कदम-कदम बढ़ाये जा, गुरुदेव का नाम गाये जा।
जिंदगी गुरुदेव की, गुरुदेव पर लुटाये जा।।

गुरुवर के हर भक्त शिष्य-शिष्या, ब्रह्मचारी भाई-बहनों में यह भावना आ रही है, अब उनको हृदय में नहीं छिपायेंगे, अपनी-अपनी मुद्रा में उनका चेहरा दिखायेंगे। गुरुवर की सेवा में हर ब्रह्मचारी विधान -प्रतिष्ठान – अनुष्ठान करते रहें। ब्र. विनय भैय्या, अशोक भैय्या, अनिल भैय्या, अभय भैय्या, संजय भैय्या, सुनील भैय्या, दीपक भैय्या का नाम भी लिया। उन्होंने कहा कि कुछ अंधेरा मैं हटाता हूं, कुछ तुम हटाओ। वो तीर्थंकर बनें और हम उनके समोशरण में बैठें, ऐसी भावना भाता हूं।

निर्यापक श्रमण श्री अभय सागर जी ने अपनी संक्षिप्त विनयांजलि में कहा कि निर्दोष से सल्लेखना करने वाले 2-3 भवों से 7-8 भवों में सिद्धत्व में स्थान पा जाते हैं, आगम के इस कथन को हम सब मानते हैं।

मुनि श्री अजित सागर जी ने रुंधे गले से कहा कि बोलने को शब्द नहीं, लिखने को कलम-स्याही नहीं, चिंतन के लिए उतना मानस नहीं। बंजर को उर्वरा भूमि बनाने की सजगता वाले श्रेष्ठ किसान थे, बुंदेलखंड की बंजर भूमि को उर्वरा बनाया। कुण्डलपुर 2022 का अपना अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा कि एक दिन उपवास किया, गुरुवर के आहार के बाद छत्रछाया में बैठा, वहीं रखी एक पत्रिका से एक दोहा पढ़ा-
साधु का घर दूर है, जैसे पेड़ खजूर
चढ़े तो मीठे फल चखे, गिरे तो चकनाचूर।


आचार्य श्री ने सुना और फिर कहा सुनाओ। उसके बाद उन्होंने आचार्य श्री गुरुवर ज्ञानसागर जी को याद करते बार-बार कहा कि जैसी आपने उत्तम समाधि प्राप्त की, आप के आशीर्वाद से मैं भी वैसी ही प्राप्त करूंगा।

असंभव को संभव कर दें….
निर्यापक श्रमण श्री संभव सागर जी ने इस अवसर पर कहा कि बिल्कुल निकट पहुंच गया, उनकी चरण वंदना के लिये अंतिम समय नहीं पहुंच पाया। 2019 चातुर्मास के बाद दिसंबर के अंत में विहार चल रहा था। शीत लहर परम पर थी, बड़वा प्रवेश तक सीने में ठंड बैठ गई। हम कहते रहे, थोड़ा विश्राम कर लें, फिर आगे बढ़े, संघ चला, चल नहीं पा रहे थे, तब 200 कदम चले, विश्राम, फिर रुके, फिर चले, इस तरह एक जनवरी तक पहुंचे। 5-10 किमी.के बाद एक अनुकूल स्थान को देख सबने कहा 4-5 दिन यहीं रुक जाये। पर दोपहर सामायिक के बाद गुरु जी बोले आगे का क्या सोचा है? तब विनम्रता से कहा कि चिकित्सकों ने कहा है मौसम अनुकूल होने और थोड़ा स्वास्थ्य ठीक होने के लिये 4-5 दिन यहीं रुक जाते हैं। तब गुरुवर पिच्छी कमंडल उठाकर मेरे पास आये और कान में बोले तुम्हारा नारा काम आयेगा अब असंभव को संभव बनाने वाले……और कर दिया विहार।

2014 में उन्होंने दो प्रयाश्चित ग्रंथ दिये कि ये समय सागर को दे देना। मैंने उनको दिये, पर उन्होंने कहा अभी नहीं। स्पष्ट था कि तब ही आचार्य श्री ने निर्णय कर लिया था और 2015 में उन्हें अलग इन्दौर चातुर्मास के लिये भेज दिया।

क्षपक कभी वैय्यावृत्ति नहीं कराते
मुनि श्री चन्द्र सागर जी ने कहा कि वो बार-बार कहते ज्यादा प्रश्न मत करा करो, सुना करो। 20 जनवरी की बात है, तब मेरा एक उपवास, एक आहार का क्रम था, उन्होंने वैय्यावृत्ति कराने को मना कर दिया, यहां तक कि रात्रि में ठहरने को भी मना कर दिया। कहते उपवास से शरीर कमजोर होता है, व्यंतर का प्रभाव हो सकता है। स्पष्ट था उनकी संल्लेखना तब चल रही थी।

गिनते थे आहार-पानी को
उन्होंने स्पष्ट बताया कि हम उनके आहार व जल की अंजुली रोज गिनते थे, 2-2 करके कम करते जा रहे थे। आज पूछते हो, संशय करते हो। 56 साल तक निर्दोष आचरण करने वाले पर संशय। 14 तक गुरु जी ने हजारों को रोजाना दर्शन दिये, और पूछते हैं कि वे क्या जागृत अवस्था में थे? क्या वो कोमा में दर्शन दे रहे थे? 15 को 3 अंजुली जल लिया बस। जल क्या जागृत अवस्था में या सुप्त अवस्था में लिया जाता है। 16 को उपवास के बाद 17 को योगसागर जी ने कहा आज जल तो लो, तब उन्होंने इतना ही कहा शांत तो रहो।

पद छोड़ा या नहीं, जागृति थी या नहीं,संल्लेखना ग्रहण की या नहीं

त्यागियों के उद्बोधन में सबसे पहले एलक धैर्य सागर जी ने शुरुआत की, कुछ के अंदर उठते सवालों के साथ ही। उन्होंने कहा कि आज दोपहर को योगसागर जी महाराज से पूछा था कि 09 फरवरी को क्या हुआ? आज सबको बता देना, तब उन्होंने कहा कि जरूर मैंने तभी सब डायरी में लिख लिया था। आप लोग सवाल कर रहे हो कि जागृति में थे या नहीं, बिना देखे सवाल करते हो। चार तारीख से रोजाना 4 बजे आप सबको दर्शन दे रहे हैं। दरवाजा खुलते ही आप नमोस्तु के साथ शोर मचा देते हो, सोचा? कभी अस्वस्थता में उनको कितनी तकलीफ होती होगी। पीलिया में सिर दर्द की कल्पना आप नहीं कर सकते। 7-8 को वैद्यों ने आहार बदलने को कहा, तो गुरुवर ने मना कर दिया, अब ठोस पदार्थ नहीं, तब केवल चापर की लस्सी और छाछ लेना शुरु किया और कम करते गये। उन्होंने किसी को बताने से मना कर दिया लाखों टूट पड़ेंगे, फिर कैसे समाधि होगी? ठण्डे बसते में ही मन को रखना मोक्ष मार्ग है। दोष ना लगे, इसलिये किसी को नहीं बताते, इसलिये किसी को नहीं बताया।