दुनिया नश्वर शरीर को देखती रही, उधर विद्या के सागर 33 सागर वाले बन गये

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18 फरवरी 2024/ माघ शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
प्रथम तीर्थंकर का मोक्षकल्याणक 2024 में मनाने के 9 दिन बाद माघ कृष्ण की नवमी जो आई ही नहीं, सीधा अष्टमी के बाद दशमी, ठीक उसी तरह जैसे 18 फरवरी रविवार को सूर्योदय के अंगड़ाई लेने, मध्यलोक की परिक्रमा करते हुए डोंगरगढ़ में प्राप्त साढ़े छह बजे उठता था, पर उससे पहले ही 800 योजन ऊपर चमकते सूर्य ने अपनी दिशा हम को चार घंटे पूर्व ही देवलोक की ओर मोड़ दिया।

78 साल पुराने कपड़े, जो चिथड़े हो रहे थे, उनको दैवीय वस्त्रों में बदलने में दो समय का ही वक्त लगा होगा। यहां नश्वर काया को देख धर्म जगत शोकाकुल हो रहा था, वहां देवलोक में महामहोत्सव चल रहा होगा। बीमारी-पीड़ा – दर्द – अस्वस्थता, जो उनके शरीर पर नंगा तांडव कर रही थी, उसको भी आंख-मिचौनी के खेल में पराजित करते हुए जैसे कह रहे थे, खेल तू इस मिट्टी के साथ, तू मेरा कुछ न कर पाई थी, न कभी कर पाएगी।

सुना था डर के आगे जीत है, पर गुरुवर ने तो बता दिया, निडरता ही जीवन है, जिओ ऐेसे कि यहां महोत्सव मृत्यु का मनायें और ऊपर जन्म का।
कुंडलपुर में आचार्य श्री ने कहा भी था, अब ऊपर जाना है, वहां कुंद कुंद आचार्य मिलेंगे, दादा गुरु मिलेंगे, बहुत समय मिलेगा, सागरों में (जी हां, वहीं हुआ 18 फरवरी, तड़के ब्रह्म मुहूर्त में)।

सबसे बड़ा खुलासा

आज सान्ध्य महालक्ष्मी पहली बार खुलासा करता है कि आचार्य श्री ने 26 जनवरी को ब्र. विनोद जी टीकमगढ़, डॉ. आकाश जैन (प्राचार्य स्याद्वाद विद्यालय, काशी) को स्पष्ट बता दिया था कि हमारी सल्लेखना चल रही है। मैंने अपने-पराये का भेद खत्म कर दिया है।

यह तक बात हुई कि आपको कोई शल्य तो नहीं है, उस पर आचार्य श्री का कहना था कि शल्य तो मेरे गुरु जी समाप्त कर गये थे, नि:शल्य व्रती। उन्होंने कहा कि मैंने कर्तव्यबुद्धि से काम किया है, कर्ताबुद्धि से नहीं। यह मेरा समय है, मुझे एकांत में साधना करने दो, मुझे कोई निकट नहीं चाहिए। व्रत स्वयं के लिये है, उनको प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं।

विश्वास कीजिये, उन्हें पता था कि मेरा कितना आयुकर्म बचा है, तभी तो दो दिन पहले फार्म हाउस पहुंचे, उससे पहले जल भी त्याग दिया था और वहां जाकर वापस चन्द्रगिरि तीर्थपर ले जाने का संकेत कर दिया और ओम शब्द के साथ इस नश्वर शरीर के कवच को तोड़ते हुये अंतरात्मा से परमात्मा की ओर उर्ध्व गमन कर लिया। मात्र 78 वर्ष की अल्पायु को छोड़ 33 सागर की आयु वाले नवें स्वर्ग में संभवत: दो समय में पहुंच ही गये।

अभी इंतजार करना होगा आचार्य पदारोहण का?
वैसे तो आचार्य श्री ने मंगलवार, 06 फरवरी को निर्यापक श्रमण श्री योग सागरजी को स्पष्ट बता दिया था कि अब संघ की जिम्मेदारी समयसागर मुनिराज के कंधों पर होगी, मैंने अपना पद त्याग दिया है। सान्ध्य महालक्ष्मी यह संभावना व्यक्त करता है कि अभी आचार्य पदारोहण के लिये कुछ समय का इंतजार करना पड़ सकता है, जिसके लिये एक बार फिर संघ को एक जगह जोड़ा जाएगा, और फिर सर्वसम्मति से वह आयोजन होगा। यह सान्ध्य महालक्ष्मी की संभावना ही माने, हकीकत तो समय बताएगा।