08 फरवरी 2024/ माघ कृष्ण चतुर्दशी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
॰ अपील-डोंगरगढ़ ना जायें, अपने-अपने क्षेत्र से गुरुवर के लिये प्रार्थना करें
छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ का चन्द्रगिरि तीर्थ आज सबकी नजरों में है और सबकी जुबान पर आज चर्चा भी सिमट कर रह गई है। अब जैन समाज को इन सुर्खियों से कोई मतलब नहीं कि सुप्रीम कोर्ट कहे कि चंडीगढ़ में लोकतंत्र की हत्या हो गई, संसद में मोदी जी अगले चुनावों में 370 सीटें जीतने का फार्मूला बतायें, राहुल गांधी की बढ़ती न्याय जोड़ो यात्रा में पार्टियों के टूटने की खबरें आती रहे, दिल्ली-बिहार- झारखण्ड में विधायकों की खरीद -फरोख्त के आरोपों का शोर हो, क्रिकेटिया बुखार के चलते भारत ने अग्रेजों को पटखनी दी हो, यहां तक कि लगातार 3 दिनों में तीन तीर्थंकरों के चार कल्याणक जन्म-तप-ज्ञान-मोक्ष कल्याणकों का पावन अवसर हो, सब ने एक ही चिंता को अपने भीतर समेट लिया।
गुरुवर कैसे हैं?
छोटे बाबा का स्वास्थ अब कैसा है?
कितना अभी सुधार हुआ?
उनकी मुस्कुराहट कब वापस लौटेगी?
कब आचार्य श्री हमें उद्बोधन देंगे? ऐसे अनेकों सवाल हर के जहन में सुबह उठते ही शाम को सोने तक, उठते-बैठते, मिलते, खाने के समय, मंदिर या मीटिंग में पहला और अंतिम सवाल यही होता है।
इन सबसे बड़ी खुशखबरी जो निर्यापक श्रमण योगसागर जी ने बताई कि अब आचार्य श्री का आहार पहले से बेहतर हो रहा है। उनका स्वास्थ सुधार पर है।
ना था ना होगा, भूमंडल पर तुमसा वीर
स्वास्थ शतायु हो सदा, इस युग के हो महावीर
हजारों किमी की यात्रा करके आते दर्शनार्थियों को घंटों पलके बिछाये इंतजार रहता है। गुरुवर के दर्शनों का और एक मिनट से भी कम समय के दर्शन, हां इतने में कहां संतुष्टि होती है। चौथे काल में अगर सौधर्म इन्द्र को तीर्थंकर बालक को पूरे शरीर पर सहस्त्र नेत्रों से भी देखते तृप्ति नहीं होती, तो इस पंचम काल में हम लोगों को महज दो आंखों से चंद सैकेंड में कहां तृप्ति होगी।
मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी ठीक कहते हैं, कि कोई देवता, विद्याधर, चाहे मेरी सारी जमा पूंजी ले ले, पर अपनी रिद्धि-सिद्धि से मुझे गुरु चरणों तक पहुंचा दे। बस इतना ही श्रावक चाहते हैं, बेपलक गुरुवर को निहारते रहे। इस जीवन में कोई पुण्य अर्जित किया हो, वो हमारे गुरुवर को पूर्ण स्वस्थ करने में लग जाये। कोई कहता है, ऐसा हो नहीं सकता। क्यों नहीं हो सकता? अगर श्री कृष्ण जी चावल के एक दाने से ऋषि दुर्वासा सहित 5-6 ब्राह्मणों की पूरी क्षुधा शांत कर दी थी, तो क्यों नहीं, आज हम सबकी पुण्य वर्गणाएं आचार्यश्री के स्वास्थ हेतु नहीं लग सकती? लग सकती हैं, जरूर लग सकती हैं। हम सबको गुरुवर के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए माला, जाप, विधान, अर्चना, शांतिधारा सब कुछ करना होगा, निर्मल भावों के साथ।
गुरुवर की चरण वंदना के लिये सबसे पहले निर्यापक श्रमण योग सागर जी ससंघ के गुरुवर को देखकर आसूं भी पलकों से नीचे नहीं उतरे।
गुरुवर की चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं ठहर पा रही। वैसे भी 77 साल की उम्र में जब कोई बीमार पड़ता है, तो वह बिस्तर पकड़ लेता है। पर हम सबके गुरुवर ने, 1968 को 30 जून से जो चर्या का पालन शुरु किया वो दिन-प्रतिदिन शिखर की ओर बढ़ता ही गया, निर्दोष चर्यावान, चलत-फिरते तीर्थ का शरीर मुरझा गया हो, पर आत्मबल आज भी वही है। तभी तो कहते हैं मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। आज बीमारी लाख हमला करे, पर उनका आत्मबल, उसमें पूरी तरह अहिंसक युद्ध लड़ रहा है और जीत भी रहा है।
मुनि श्री योग सागर जी के चरण देखें या मुनि श्री प्रमाण सागर जी के, या उस तरफ पग विहार को भी मैराथन की तरह तेज कदमों से, चर्या समिति का पूरा पालन करते, बढ़ते, तलवे छिल गये हैं, फट गये हैं,
एक कदम आगे बढ़ाना मुश्किल है, पर गुरुवर जब दिल में बसे हो, मुख पर उनका नाम हो, तो थकना क्या? अगर वानर सेना ने पत्थर पर ‘श्री राम’ लिखकर, समुद्र में फेकें तो वे तैरने लगते हैं, तो क्या आज अगर गुरुवर का दिल से नाम लेकर कड़कड़ाती ठंड में, पथरीले, कंटीले, ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर भक्ति से ओत-प्रोत शिष्य जब बढ़ते हैं, तो पैर छिल तो सकते हैं, पर रुक नहीं सकते।
मंगलवार 06 फरवरी को वहां जमा हजारों भक्तों की भीड़ देखकर निर्यापक श्रमण योग सागरजी को अपील जारी करनी पड़ी कि सभी संत जहां हैं वहीं रुक जाये, भक्त अभी डोंगरगढ़ ना आये। गुरुवर का स्वास्थ सुधार की ओर है। वहां उनके स्वास्थ्य की ओर सबका ध्यान लगा रहे। आज दुनिया में शायद ही ऐसा कोई आस्तिक बचा हो, जो गुरुवर के लिये प्रार्थना न कर रहा हो।
अपनी चतुर्थकालीन दुर्लभ साधना करते हुए, शरीर के सभी परीषहों को जीतते हुए इतना सहज-सरल रहना, यह गुरुवर का एक अजूबा कहलाता है। शरीर तोड़ दे, पर मुख पर शिकन नहीं, तनाव नहीं, जैसे अंदर विराजित आत्मा भी ललकार रही है, तेरा-मेरा कोई मेल नहीं, तू शरीर को जितना दुखाती है, मैं उतना ही ज्यादा तप कर कुंदन बन रहा हूं।
वहां पहुंच रहे भक्तों को आशीर्वाद देने का क्रम आज भी जारी है, हमारे नमोस्तु आदि चीख-चीखकर, जोर-जोर से करने से उनकी बीमारी में, उन्हें कितनी तकलीफ पहुंचती होगी। इसका हम अनुभव कहां कर सकते हैं। हमें शांति का परिचय देना चाहिये और गुरुवर के पास जाने की बजाय, तीर्थों पर, मंदिरों में जाकर प्रार्थना करनी चाहिये, जाप करें, माला करें, अर्चना करें, विधान करें कि बड़े बाबा आप छोटे बाबा को शीघ्र स्वस्थ करें।