57वें दीक्षा दिवस पर जानिए : जवान छोकरा को दीक्षा क्यों?आचार्य श्री की दीक्षा पर उठा बड़ा सवाल, फिर क्या हुआ

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10 जुलाई 2024// आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी //चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/रजत जैन भिलाई /
मुनि विद्यासागर जी की मुनि दीक्षा के पूर्व अजमेर समाज के कुछ लोगों ने बतंगड़ बनाया कि गोरानारा जवान छोकरा है और दक्षिण का है पता नहीं कैसे संस्कार हैं ? और फिर साधना का अभी एक ही वर्ष हुआ है। अत: ज्ञानसागर जी महाराज को सीधे मुनि दीक्षा नहीं देना चाहिए। यह बात गुरु महाराज को हमने जाकर कही तब ज्ञानसागर जी महाराज ने समाज के समक्ष कहा- ‘ब्रह्मचारी विद्याधर जी को हमने हर तरह से देखा परखा है। मेरी हर परीक्षा में वह खरा उतरा है। इसलिए मैं सीधे मुनि दीक्षा दूँगा। यदि आप लोग मना करोगे तो, मैं जंगल में जाकर दूँगा, लेकिन दूँगा।

‘इसके दूसरे दिन ब्रह्मचारी विद्याधर जी का प्रवचन हुआ। अजमेर समाज ने सुना, तो सुनते ही रह गया। प्रवचन सुनने के बाद सभा में सभी लोग एक मत से कहने लगे कि यह ब्रह्मचारी तो मुनि बनने के काबिल है इनकी दीक्षा हो जानी चाहिए। फिर भी २-३ लोगों ने सर सेठ भागचंद जी सोनी से पूँछा-क्या आप ऐसी दीक्षा से संतुष्ट हैं ? तब सेठजी ने कहा-मैं ५-७ दिन बाद जवाब दूंगा और सेठ जी ने ब्रह्मचारी विद्याधर जी की परीक्षा की। रात्रि ३ बजे से रात्रि ११ बजे तक ब्रह्मचारी जी अपनी साधना में निरत रहते, उनकी चर्या, साधना, वैराग्य एवं नग्न अवस्था में सामायिक करते देखकर सेठ जी बड़े प्रभावित हुए और वे कैसे आहार लेते हैं ? यह भी देखा। तब ब्रह्मचारी जी को खड़े होकर हाथ में आहार लेते और नीचे कुछ भी नहीं गिरता देखा, न ही उनकी दृष्टि इधर-उधर देखी एवं आहार में नमक, मीठा का त्याग देखा। तो सेठ जी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने एक दिन प्रवचन की सभा में सम्पूर्ण समाज के सामने खड़े होकर कहा-मेरी परीक्षा में ब्रह्मचारी विद्याधर जी पूर्णतया पास हो गए हैं और आज मैं मुक्त कण्ठ से घोषणा करता हूँ कि वे दिगम्बर-मुनि दीक्षा लेने के सर्वतः योग्य पात्र हैं और इसके लिए सकल जैन समाज अजमेर को भव्य तैयारियाँ करनी चाहिए।

सोनी जी के द्वारा परीक्षा में पास और दीक्षा की घोषणा को सुनकर सम्पूर्ण समाज की श्रद्धा के आँसू बह पड़े, तालियों से सभा गूँज उठी और गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज का जयकारा आकाश में अनहदनाद कर उठा।” इस तरह सर सेठ भागचंद जी सोनी ने ब्रह्मचारी विद्याधर जी की अन्तिम परीक्षा ली और उन्हें सर्व योग्यताओं से सुसज्जित ब्रह्मचारी जी को सीधे मुनि दीक्षा से सम्बन्धित प्रतिवाद का पटाक्षेप करने वाला संस्मरण सुनाया तो मेरी आँखे भर आई, हृदय गद्गद् हो उठा, रोमरोम रोमांचित हो उठे, जन्मजात महापुरुषत्व के वैशिष्ट्य गुणों से समृद्ध गुरुवर की सहजोपलब्धि विजय को देख मेरी चेतना गौरव का अनुभव करने लगी। ऐसे सहज उत्तीर्ण साधक को नमन करता हुआ…