पैरों में कहां दम था इरादों ने पहाड़ चढ़ा दिए
महान दिगम्बरचार्य आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज
दयोदय तिलवाराघाट में प्रवेश शाम हुआ, गुरूदेव ने 31 दिन में तय की 360 किमी की यात्रा
गुरूदेव की उक्त पंक्तियां हरपीस रोग के बाद पेंड्रारोड़ से अमरकंटक के सफर की थी। पर इस बार भी जब आचार्य भगवन का विहार सिद्धोदय सिध्दक्षेत्र से हुआ तो लग रहा था कि इतना लंबा सफर ऊपर से मौसम की मार ,गुरु जी के स्वास्थ्य की प्रतिकूलता और उम्र की अवस्था इन सबको देख कर हर किसी को लग रहा था कि गुरुदेव संस्कारधानी नही पंहुच पाएंगे
पर गुरुदेव ,गुरुदेव है जिनके दृढ़ निश्चय ,और परोपकार की भावना के सामने हिमालय भी बौने हो जाते है। उन्होंने जो ठान लिया वह जरूर पूर्ण करते है।
गुरुदेव का विचार इन दिनों देश को आयुर्वेद चिकित्सा संस्थान एवं महाविद्यालय सौंपने का है।जिससे हर दीन दुखी की सेवा की जाए उसी बात को लक्ष्य लेकर हम सबके भगवन ने 31 दिन में लगभग 360 किमी का सफर तय किया
धन्य है गुरुदेव जो हम सबके उद्धार के लिए हम सबके कल्याण के लिए निरन्तर संलग्न रहते है। मैं तो बस इतना कहता हूं ऐसे व्यक्ति ही तीर्थंकर बनते है जिनके ह्रदय में प्राणी मात्र के प्रति करुणा भाव समाहित रहता है
– शुभांशु जैन शहपुरा