10 नवंबर 2022/ मंगसिर कृष्ण दौज /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जागृति एन्क्लेव स्थित श्री पार्श्वनाथ दि. जैन मंदिर में श्रमण श्री विभंजन सागरजी का दो दिन का प्रवास समाज के लिये संजीवनी बूटी साबित हुआ। ऐसा लगा मानो पटपड़गंज चातुर्मास के पश्चात् सूरजमल विहार होता हुआ जागृति एन्क्लेव में समोशरण आया हो। मुनि श्री का प्रात: शांतिधारा, मांगलिक प्रवचन, आहारचर्या, दोपहर की शास्त्र स्वाध्याय फिर क्लास तथा सायं गुरु भक्ति, आरती ज्ञान की बातें और प्रश्न मंच, वैयावृत्ति – सचमुच दो दिन – 48 घंटे पूरे धर्ममय हो गये, जैसा लगा चातुर्मास जारी है और तीनों समय न केवल जागृति एन्क्लेव बल्कि पटपड़गंज, सूरजमल विहार, कृष्णा नगर, उस्मानपुर आदि अनेक क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं तीनों समय मुनिश्री की वाणी का लाभ उठा रहे थे।
मुनि श्री ने कहा कि मेरी तो भगवान पार्श्वनाथ की यात्रा चल रही है। पटपड़गंज में 4 माह भ. पार्श्वनाथ, फिर सूरजमल विहार में और अब जागृति एन्क्लेव में भी भगवान पार्श्वनाथ। हम उस कुल में जन्मे हैं जहां अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। जैसे पानी का स्वभाव शीतलता है, वैसे ही आत्मा का धर्म ज्ञातादृष्टा है। जागृति – जहां सभी लोग जगे हैं, जो जगा हो, उसकी प्रगति होती है। जहां श्रावकों के पुण्य का संचय होता है, वहां मुनि का विहार होता है। आज बच्चों में संस्कार डालने की आवश्यकता है। धर्म वही मंगल, उत्कृष्ट है जो अहिंसा, संयम, तप से सहित हो। जिन दर्शन में निज दर्शन और सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र से मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है। आप भूत को उखाड़ों नहीं, भविष्य की सोचो मत, वर्तमान के समय का लाभ उठाओ।
सत्संग में बैठना और स्वर्ग में निवास करना दोनों बराबर है। दुनिया में कोई भी देव-देवी आपका अच्छा-बुरा नहीं कर सकते, सिर्फ आपके कर्म ही इसका कारण हैं। भगवान कुछ करते नहीं, पर भगवान के बिना कुछ होता नहीं। धर्म से पुण्य संचय होता है और फिर वह उदय में आता है तो कार्य पूरा हो जाता है। मुनिश्री ने कहा कि जो सबको साथ लेकर चले, समाज को जोड़े, बच्चों का खिलौना, युवाओं का साथी, बुजुर्गों की लाठी बने, वह सच्चा साधु है।
दोपहर की क्लास में मुनिश्री ने शास्त्र अध्ययन व कुन्द कुन्द माता द्वारा उन्हें बचपन में सुनाई जाने वाली लोरी का मर्म समझाया। उन्होंने कहा बिल्ली चूहे के लिये शांत बैठी है, योगी आत्मा के लिये। भोगों में डूबेगा तो विशुद्धि से गिर जाएगा। एकांतवादी नहीं, अनेकांतवादी बनें। जो पुरुषोत्तम होते हैं, वे मर्यादा से बंधे होते हैं।
एक पलक झपकने के समय बराबर भी संयम लेने से महाव्रतों के संस्कार पड़ जाते हैं। संगीत भगवान की भक्ति के लिये है तो वह कर्मों की निर्जरा है और रासलीला के लिये है तो वह कर्मबंध का कारण बनता है। सायं प्रश्नमंच में श्री राहुल जैन – मयूरा जैन (आनंद विहार वार्ड से आप निगम प्रत्याशी) एवं महिला मंडल ने पुरस्कारों का वितरण किया।